छत्तीसगढ़

जनसंपर्क अधिकारी ने पत्रकार को ‘अपराधी’ लिखकर भेजा 1 करोड़ का नोटिस— PMO तक पहुंची शिकायत, FIR की मांग तेज

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रायगढ़/जशपुर। छत्तीसगढ़ में पत्रकारों के अधिकार, सरकारी जवाबदेही और अफसरशाही के अहंकार का टकराव एक बार फिर सुर्खियों में है। जशपुर जिले में एक स्वतंत्र पत्रकार और जनसंपर्क विभाग की एक राजपत्रित अधिकारी के बीच विवाद अब इतना बढ़ गया है कि इसकी गूंज सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) तक पहुंच गई है। पत्रकार ने आरोप लगाया है कि एक पीड़ित कर्मचारी की आवाज उठाना और विभागीय भ्रष्टाचार को उजागर करना उन्हें इतना महंगा पड़ा कि एक सरकारी अधिकारी ने उन्हें बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के लिखित में ‘अपराधी’ घोषित कर दिया और इसके बाद ₹1 करोड़ का मानहानि नोटिस भेजकर दबाव बनाने की कोशिश की।
यह पूरा मामला सहायक संचालक (जनसंपर्क), जशपुर — श्रीमती नूतन सिदार और स्वतंत्र पत्रकार ऋषिकेश मिश्रा के बीच विवाद से जुड़ा है, जो वर्तमान में छत्तीसगढ़ की प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का केंद्र बन चुका है।
मामला क्या है? — अपराधी घोषित किया, नोटिस भेजा, ग्रुप में वायरल भी किया
पत्रकार ऋषिकेश मिश्रा के अनुसार, 2 सितम्बर 2025 को सहायक संचालक नूतन सिदार ने थाना लैलूंगा में दिए गए लिखित आवेदन में उन्हें दो बार “अपराधी (Criminal)” कहकर संबोधित किया।
पत्रकार का तर्क है कि:
भारतीय कानून में बिना कोर्ट के आदेश या दोष सिद्ध हुए किसी भी नागरिक को अपराधी कहना असंवैधानिक और दंडनीय है।
मामला यहीं नहीं रुका—
आरोप है कि अधिकारी ने इस आवेदन की कॉपी ‘जनसंपर्क जशपुर’ के आधिकारिक व्हाट्सएप ग्रुप में वायरल कर दी, जिसमें जशपुर कलेक्टर स्वयं एडमिन हैं।
पत्रकार का कहना है कि:
“एक शासकीय अधिकारी ने आधिकारिक मंच का दुरुपयोग कर जानबूझकर सार्वजनिक अपमान किया, जो साइबर मानहानि की श्रेणी में आता है।”
सच लिखने की कीमत: 1 करोड़ का नोटिस + धमकियों का दबाव
पत्रकार मिश्रा का कहना है कि यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब उन्होंने जनसंपर्क विभाग के एक पीड़ित कर्मचारी, रविन्द्रनाथ राम, के साथ हुए उत्पीड़न और विभागीय भ्रष्टाचार को उजागर किया था।
इस रिपोर्टिंग के बाद—
•उन्हें ₹1 करोड़ का मानहानि नोटिस भेजा गया
•और उन पर “आत्महत्या के झूठे केस में फंसाने” के संकेत देकर मानसिक दबाव बनाने की कोशिश की गई
पत्रकार का आरोप है कि यह सब एक संगठित तरीके से “सच दबाने” और प्रेस को डराने के उद्देश्य से किया गया।
पुलिस पर गंभीर आरोप — RTI जवाब में देरी, जानकारी दबाने की कोशिश
पत्रकार ने पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए हैं।
उनका आरोप:
•RTI में मांगी गई जानकारी जानबूझकर रोकी गई
•एसपी कार्यालय के निर्देश के बावजूद थाना-स्तर से किसी भी दस्तावेज़ की जानकारी समय पर नहीं दी गई
•मजबूर होकर उन्हें राज्य सूचना आयोग में अपील करनी पड़ी
पत्रकार का कहना है कि यह पूरे मामले में पुलिस की संलिप्तता या दबाव में काम करने का संकेत देता है।
PMO, गृह मंत्रालय, मुख्यमंत्री व DGP को भेजी गई शिकायत — FIR की मांग
पत्रकार ऋषिकेश मिश्रा ने सीधे शीर्ष स्तर पर हस्तक्षेप की मांग करते हुए:
•प्रधानमंत्री
•केंद्रीय गृह मंत्री
•मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय
•छत्तीसगढ़ DGP
को विस्तृत शिकायत भेजी है, जिसमें मांग की गई है कि:
० बिना दोष सिद्धि के “अपराधी” कहलाना
० सरकारी मंच पर अपमानजनक पत्र वायरल करना
० 1 करोड़ का धमकी भरा नोटिस भेजना
० पत्रकार को मानसिक रूप से तोड़ने की कोशिश
को भारतीय न्याय संहिता (BNS) और आईटी एक्ट के तहत दंडनीय अपराध मानकर FIR दर्ज की जाए।
पत्रकार ने अधिकारियों से पूछा है—
“जब अधिकारी खुद जज बनकर नागरिकों को अपराधी घोषित करने लगें, तब न्याय कहाँ जाएगा?”
बड़ा सवाल — क्या सरकार अपनी अधिकारी पर कार्रवाई करेगी?
यह मामला न केवल ‘अफसरशाही बनाम पत्रकारिता’ का टकराव है, बल्कि यह पूरा प्रकरण बताता है कि:
•सरकारी अधिकारी चाहें तो किसी भी नागरिक को लिखित में “क्रिमिनल” कहकर बदनाम कर सकते हैं
•विभागीय व्हाट्सएप समूहों का दुरुपयोग कर सकते हैं
•और प्रेस की आवाज को 1 करोड़ के नोटिस और डराने-धमकाने से दबाने की कोशिश कर सकते हैं
अब नजर इस बात पर है कि:
•क्या सरकार अधिकारी के खिलाफ जांच या निलंबन की कार्रवाई करेगी?
•क्या पुलिस FIR दर्ज करेगी?
•क्या पत्रकार सुरक्षा कानून की जरूरत पर नए सिरे से बहस शुरू होगी?
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