खैरागढ़ : मानसिक प्रताड़ना से तंग आकर CHO ने की आत्महत्या, मासूम बच्चे से छिन गया माता-पिता का साया, स्वास्थ्य व्यवस्था पर उठे गंभीर सवाल

जिला खैरागढ़-छुईखदान-गंडई के आयुष्मान आरोग्य मंदिर, जंगलपुर में पदस्थ सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (CHO) श्रीमती आरती यादव ने मानसिक प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली। यह दर्दनाक घटना प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था और संविदा कर्मियों की दशा पर कई सवाल खड़े करती है।
आरती यादव एक समर्पित स्वास्थ्य अधिकारी थीं और हाल ही में अपने पति को एक सड़क दुर्घटना में खो चुकी थीं। पति की मृत्यु के बाद उन्होंने अवकाश की मांग की थी, जिसे ठुकरा दिया गया। दुर्ग स्थित अपने घर से दूर जंगलपुर केंद्र में वह अकेली सेवाएं दे रही थीं — न कोई सहकर्मी, न कोई सहारा। वहीं, शिकायतों के आधार पर उन्हें बार-बार मानसिक दबाव में रखा गया। त्योहार के दिन केंद्र बंद रहने पर शिकायतों के बाद उन पर अनुचित दवाब बनाया गया।
वेतन रोका गया, कार्यभार बढ़ाया गया
आरती यादव को एक माह का वेतन, तीन माह का कार्य-आधारित भुगतान और केंद्र का फंड भी नहीं दिया गया। कार्यविभाजन (TOR) के अनुसार उन्हें चार कर्मियों का कार्य अकेले ही सौंपा गया। हाल ही में वेतन कटौती की धमकी से वह पूरी तरह टूट चुकी थीं।
संवेदनहीनता की शिकार बनीं आरती, 26वां मामला
यह मामला कोई एकल घटना नहीं है। छत्तीसगढ़ राज्य एनएचएम कर्मचारी संघ और सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी संघ के अनुसार, यह राज्य में महिला CHO के उत्पीड़न का 26वां मामला है। पिछले तीन वर्षों में पांच CHO आत्महत्या कर चुके हैं। यह घटना एक माँ की मौत नहीं, बल्कि पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था की विफलता का प्रतीक बन गई है।
संघ की मांग है कि—
CHO कर्मियों का कार्यभार संतुलित किया जाए
मानसिक स्वास्थ्य सहायता उपलब्ध कराई जाए
संविदा शोषण और ट्रांसफर में भेदभाव पर तत्काल रोक लगे
सभी CHO कर्मियों का शीघ्र नियमितीकरण किया जाए
सरकार की चुप्पी पर सवाल, आंदोलन की चेतावनी
संघ के प्रांताध्यक्ष श्री प्रफुल्ल कुमार ने बताया कि प्रदेश के लगभग 3,500 सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी आक्रोशित हैं। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र ही शासन ने इस दिशा में ठोस कार्रवाई नहीं की, तो प्रदेशव्यापी उग्र आंदोलन शुरू किया जाएगा।
महिला बाल विकास मंत्री द्वारा स्वास्थ्य मंत्री को पत्र भेजे जाने के बावजूद अब तक किसी प्रकार की ठोस कार्यवाही नहीं हुई है। यदि ऐसी संवेदनशील घटनाओं को नजरअंदाज किया जाता रहा, तो भविष्य में इस प्रकार की और भी दर्दनाक घटनाएं घट सकती हैं।
अब सवाल यह है — कब मिलेगा न्याय? और कब सुनेगा शासन संविदा कर्मियों की पीड़ा?