बचपन में बाघों से थी दोस्ती । बाघों के साथ की उसकी साहस गाथा
अबूझमाड़ के टाइगर बॉय चेंदरु के साहस की गाथा अब हर कोई पढ़ सकेगा।
स्वीडिश किताब चेंदरु द बॉय एंड द टाइगर का हिंदी अनुवाद अंचल के साहित्यकार रुद्रनारायण पाणिग्राही ने कर लिया है।
नारायणपुर मुख्यालय से 3 किलोमीटर दूर स्थित गांव गढ़बेंगाल में रहने वाला आदिवासी बालक चेंदरु बचपन में बाघ और चीते के शावकों के साथ खेला करता था । बाघों के बड़े होने पर भी न ये चेंदरू को भूले और न चेंदरू इन्हें । इनकी आपस में किलोल चेंदरू के लड़कपन तक निर्वाध रूप से चलती रही ।
चेंदरू के इस पराक्रम और वन्य जीवों से दोस्ती की चर्चा जिले से निकल देश विदेश तक पहुंची ।स्वीडिश फिल्मकार सेक्सहार्फ को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने द जंगल सागा नाम की फिल्म चेंदरू को लेकर तैयार की ।इस फिल्म में चेंदरु के साहस का प्रदर्शन किया गया था।
फिल्म तब और सुपर हिट हो गई, जब इसने ऑस्कर जीत लिया। इसके बाद चेंदरु मंडावी की ख्याति दुनिया भर में फैल गई। इसके बाद ही स्वीडिश भाषा में एक किताब भी लिखी गई, जिसका नाम था -चेंदरु द बॉय एंड द टाइगर।
चेंदरु को बचपन से लेकर उनके अंतिम समय तक देख चुके वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि अंतिम दिनों में चेंदरु अभावों से जूझता रहा। फिल्म जब बनकर तैयार हुई तब चेंदरु की उम्र सिर्फ 10 साल थी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ख्याति प्राप्त जाबांज चेंदरु की जीवन अभाव और विपदा से भरा रहा जिसके लिए पितृ प्रेम की जंजीर की जकड़ जवाबदार थी । अन्यथा स्वीडिश नागरिकता और मिलने वाली सुविधाओं से वह ऐशोआराम का जीवन जी सकता था ।
अंततः अभावों और गरीबी का जीवन जीते 78 वर्ष की आयु में
18 दिसंबर 2013 को जगदलपुर के महारानी हास्पिटल में चेंदरू ने गुमनामी की अंतिम सासें ली।
चेंदरु जब तक जिया तब तक उसका जीवन सभी के लिए रोमांच से भरा रहा। बस्तर आने वाले देशी-विदेशी सैलानी उससे मिलने उसके गांव गढ़बेंगाल तक जाया करते थे। चेंदरु के साथ हजारों लोगों ने तस्वीरें खिंचवाई जो सम्भवतः उन्होंने संजोए रखी होगी
दरअसल चेंदरू को स्वीडन की नागरिकता और खुशहाल जीवन का ऑफर भी था । पर उसके पिता को यह रास नहीं आया कि उसका बेटा अपनों को छोड़ बाहर रहे । लिहाजा उसे वापस लौट कर मजबूरी और परिवार के लिए अभाव भरा जीवन जीना पड़ा ।
शायद यही उसकी नियति रही हो ।