देश विदेशराजनीति

आज की पीढ़ी ने दो तरीके के राष्ट्रअध्यक्षों का शासन काल देखा है,,

एक जो बोलते बहुत कम थे पर फैसले बड़े से बड़ा ले लेते थे,दूसरा जो बोलते बहुत हैं पर निर्णय लेते समय कोप भवन में रहना पसन्द करते हैं,,

एक जिन्होंने अपने शासनकाल में कभी कोई जातीय या सांप्रदायिक दंगा नहीं होने दिया,दूसरे का राजनीतिक जन्म में संप्रदायिक दंगों की क्रूरतम घटनाओं के बीच हुआ,,वर्तमान प्रधान मंत्री के 10 साल के शासन काल 4000 के आसपास जातीय और सम्प्रदायिक दंगे हो चुके हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2014 से 2016 के दो सालों के बीच ही कुल 2885 दंगे हुए हैं। इनमें से साल 2014 में 1227, साल 2015 में 789 और साल 2016 में 869 दंगे हुए हैं। वर्तमान में मणिपुर जो पिछले 1.5 सालों से हिंसा की आग में झुलस रहा है अवलोकनीय है।

दंगों और हिंसा को लेकर वर्तमान प्रधान मंत्री की असफल नीतियों की समझने के लिए “प्रोफे़सर ब्लोम हांसेन ने 2021 में एक किताब लिखी थी- ‘द लॉ ऑफ फोर्स: द वायलेंट हार्ट ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स.'” को पढ़ना चाहिए।
इस किताब में उन्होंने लिखा है ‘नागरिकों की हिंसक होती प्रवृति एक गहरी समस्या और विकृति का संकेत देता है. यह लोकतंत्र के भविष्य के लिए ख़तरा पैदा कर सकता है’।

एक ने वर्ष 1991 वैश्विक मंदी के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव की अगुवाई वाली केंद्र सरकार में वित्त मंत्री के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधार का काम शुरू किया। जिसमें उदारीकरण, निजीकरण, वित्तीय क्षेत्र, टैक्स में सुधार,प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, वैश्वीकरण और सुधार व्यापार नीति पर कई बड़े फैसले लिए गए. 24 जुलाई 1991 को केंद्रीय बजट पेश करते हुए उन्होंने कहा था कि अब समय बरबाद करने का अवसर नहीं है। जिसका सुखद परिणाम वर्ष 2011 के आते आते दिखने लगा, दिवालिया होने के कगार से भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका था। इसके पीछे उनका तब भारत मां का यह लाल अपने प्रधानमंत्रित्व काल की दूसरी पारी खेल रहा था।

प्रधानमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान जहां आपने उदारीकरण को बढ़ावा देते हुए,नियंत्रित निजीकरण के रास्ते खोले वही आपने देश भर में सरकारी और निजी बैंकों की शाखाएं खोली। निजी करण के इस दौर में आपने आम नागरिकों के हाथ भी मजबूत किए सूचना का अधिकार,भोजन का अधिकार और बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम मनरेगा का विस्तार जैसे अन्य ऐतिहासिक सुधार आपके कार्यकाल में हुए।

जिससे सरकारी कार्यों में भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में सफलता मिली। वहीं रुपए के दो बार अवमूल्यन के बावजूद रुपया आज की स्थिति में डालर के मुकाबले ज्यादा बेहतर स्थिति में रहा। वह भी आम नागरिकों पर अतिरिक्त कर भार डाले बिना ही खुदरा.मंहगाई,रोजगार ,कुटीर और घरेलू उद्योगों को आज से कही बेहतर स्थिति में रखा। सरकारी पदों में रिक्त भर्ती के नए रास्ते और सरलीकरण भी आज से कहीं बेहतर रहा। भारतीय रेल को देश की अर्थव्यवस्था से लेकर परिवहन व्यवस्था की सस्ता और सुदृढ़ आधार बना दिया।

दूसरे ने अपने शासन काल में गैर जरूरी निजी करण को बढ़ाया,सत्ता में बने रहने के लिए नोट बंदी जैसे तुगलकी निर्णय से अर्थव्यवस्था को गर्त में के जाने के नए रास्ते खोले,चीन से अनियंत्रित आयात को बढ़ावा देकर अपने देश के घरेलू और कुटीर उद्योगों को लगभग खत्म कर दिया। वहीं रेल व्यवस्था को आधुनिकीकरण के नाम पर पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया।परिणाम स्वरूप आज की रेल यात्रा न केवल आवश्यक रूप से महंगी बल्कि अविश्वसीय हो गई। बिना किसी परिपक्व अर्थ शास्त्री के चलने वाली केंद्र सरकार में महंगाई चरम पर आ पहुंची। वहीं बैंकों के जमा पूंजी खत्म होने के साथ साथ npa बढ़ गया।

देश उदारीकरण के अभाव में रोजगार के अवसर सीमित होते चले गए,जिससे बेरोजगारी की दर अपने उच्चतम स्तर पर आ पहुंची है। वहीं नागरिकों को मिलने वाले अधिकार सीमित कर दिया। जिससे सरकारी कार्यों में भ्रष्टाचार पुनः तेजी से बढ़ा। वहीं देश के आम लोगों के लिए.इलाज,शिक्षा,यात्रा,बीमा,पर्यटन आदि सब कुछ चार से दस गुना महंगा कर दिया।आवश्यक और गैर जरूरी टैक्स की वसूली ने देश के हालात तेजी से बदल दिए,पिछले 10 सालों में अफरा तफरी भरे आर्थिक माहौल के कारण देश छोड़ कर बाहर जाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी। देश के अंदर सरकारी संरक्षण में बढ़े जातीय और घरेलू हिंसा के कारण विदेशी निवेश भी तेजी से घटने लगा है।

एक ने अपने शासन काल में मीडिया की स्वतंत्रता को बरकार रखते हुए उनके तमाम सवालों का खुलकर जवाब दिया।
अपने 10 साल के शासन काल में दर्जनों बार प्रेस वार्ताएं की, देश के भविष्य को लेकर अपना यानि सरकार का विजन रखा, खुलकर बातचीत,छद्म आरोपों पर भी जवाब दिया। तमाम झूठे और कृत्रिम आरोपों से घिरने के बावजूद कभी विपक्ष को दबाया नहीं नहीं विपक्षी नेताओं के प्रति अपशब्दों का उपयोग किया। तत्कालीन मुद्दों पर खुलकर चर्चा की।

वहीं दूसरे ने सत्ता में आने के लिए मीडिया घरानों को खरीदना शुरू किया,फेक न्यूज और व्यूज फैलाए,देश में झूठा आंदोलन खड़ा किया। जन भावनाएं भड़काई और उसका इस्तेमाल करते हुए सत्ता में आया। फिर धनाढ्य मित्रो की सहायता से देश की 90 प्रतिशत मीडिया को अपने नियंत्रण में ले लिया। जो स्वतंत्र रहना चाहते थे,उनका दमन शुरू किया,जेल भेजा संस्थान खरीद लिए,छापे मरवाए। विपक्ष के नेताओं और पार्टियों पर असंवैधानिक और अमर्यादित शब्दों से वार किया। मीडिया नियंत्रण बिल लाने का प्रयास किया। सरकारी एजेंसियों का क्या दुरूपयोग कर चुनाव जीतने और विपक्ष मुक्त लोकतंत्र बनाने की कोशिश की। दूसरे के पास किसान आंदोलन के साथ महिला सुरक्षा,जातीय और घरेलू हिंसा से लेकर बिगड़ती अर्थव्यवस्था पर बात करने का समय नहीं है न ही नियति है।

पहले ने अपनी उच्च शिक्षा, अपनी योग्यता,शालीनता और अनुभव के आधार पर ऐतिहासिक व प्रभावशाली लोकप्रियता हासिल की। वहीं दूसरा बिना किसी योग्यता के कृत्रिम और हिंसक तरीकों से क्षणिक प्रसिद्धी पाने में व्यस्त है।वही देश कई समस्याओं से ग्रस्त है।

वर्तमान पीढ़ी के सामने दो तरीके के राष्ट्रध्यक्षों की कार्यशैली प्रस्तुत है। उन्हें पसंद या नापसन्द करने के अपने संवैधानिक अधिकार और मत उनके पास है।

इन सबके बीच ख्याति प्राप्त अर्थशास्त्री और निर्विवाद रूप से दो बार देश की सत्ता का संचालन करने वाले शांत,गंभीर,साहसी, अनुभवी और बड़े निर्णय लेने वाले तत्कालीन प्रधान मंत्री स्व. डॉ मनोमहन सिंह जी को उनकी अंतिम विदाई पर कोटि_कोटि प्रणाम।।।🙏🙏🙏

नितिन सिन्हा
समपादक
ख़बर सार

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