स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों की स्मृति जगाती है आदि दूर्गा पूजा समिति
अंग्रेजों से बचने जंगल में छिपे राजा अर्जून सिंह वनवासियों के साथ पारंपारिक हथियार और मशाल के साथ हुए थे विर्सजन जुलूस में शामिल,
1912 में राज अर्जून सिंह के पुत्र नरपत सिंह ने लोगों को सौंपी थी आदि दूर्गा पूजा की जिम्मेदारी
चक्रधरपुर। पोडाहाट अंचल के प्राचीन पुरानाबस्ती आदि दूर्गा पूजा समिति स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों की स्मृति ताजा कर देती है। 1857 में पोडाहाट नरेश अर्जून सिंह ने अंग्रेजों बचकर पूजा के मशाल जूलूस में शामिल हुए थे। उस परंपरा को आज भी श्रद्धालु यहां जीवित रखें है और आदि दूर्गा पूजा समिति का विर्सजन जुलूस मशाल के साथ निकाला जाता है। विर्सजन के दौरान श्रद्धालु यहां नंगे पांव कई टन की प्रतिमा को कंधे में उठाकर नदी में ले जाते हैं। आदि दूर्गा माता के विर्सजन के दौरान दूर दूर से लोग यहां आते है।
आदि दूर्गा पूजा समिति के सचिव आशोक सारंगी ने कहा कि पुराना बस्ती आदि दूर्गा पूजा राजा अर्जून सिंह के वंशजों के द्वारा शुरु की गई थी। 1957 में सिपाही विद्रोह के दौरान महाराजा अर्जून सिंह स्वतंत्रता आंदोलन का अगुवाई कर रहे थे।
अंग्रेजों से लोहा लेते समय जगमोहन साहू उर्फ जग्गू दिवान सहित 42 लोगों को फांसी पर चढ़ा दिया गया था। अंग्रेजों से लड़ते लड़ते राजा अर्जून सिंह को मजबूरन भूमिगत होना पड़ा था। इस समय दूर्गोत्सव आ गया था। राजा अर्जून सिंह को दूर्गोत्सव के दौरान राजमहल आने का आश्वस्त होकर अंग्रेजों ने पूरे राजमहल को घेर लिया था। राज अर्जून सिंह हजारों वनवसियों के साथ पारंपारिक अस्त्र शस्त्रों के साथ अंग्रेजों की आंखों मेंं धूल झोंक कर मां दूर्गा के विर्सजन जुलूस में शामिंल हुए। इसके बाद से आदि दूर्गा माता के विर्सजन में मशाल जुलूस निकाले जाने की परंपरा शुरु हो गई है और आज भी यह परंपरा कायम है।
सचिव अशोक सारंगी ने कहा कि जहां तक उन्हें जानकारी है राजा अर्जून सिंह के पुत्र राजा नरपत सिंह ने 1912 में आदि दूर्गा पूजा की जिम्मेदारी आम लोगों को सौंप दी थी। इसके बाद से पुराना बस्ती में लोगों के द्वारा आदि दूर्गा पूजा का आयोजन किया जाता रहा है। यहां के प्रतिमा कई टन वजन का और एक ही रंग रुप में बनाई जाती है। यहां के विर्सजन जुलूस में हजारों लोग मशाल जुलूस के साथ आगे आगे चलते हैं और मां दूर्गा की कई टन की प्रतिमा को श्रद्धालु अपने कंधे में लेकर नदी तक जाते हैं और प्रतिमा का विर्सजन करते हैं। आदि दूर्गा समिति का भव्य पंडाल बनाया जा रहा है। विद्युत साज सज्जा के साथ साथ मंदिर परिसर की सफाई तेजी से की जा रही है। आदि दूर्गा पूजा के दौरान मनोहर,चाईबासा, जगन्नाथपुर, सरेईकेला खरसावां इत्यादि अंचल के लोग पहुंचते है तथा विसर्जन में निकाली जाने वाली विशाल मशाल यात्रा में भारी संख्या में लोग शामिल होते हैं।
आदि दूर्गा पूजा समिति के पदाधिकारी
अध्यक्ष दयानंद पाणि, उपाध्यक्ष लव मंडल, अश्विनी दास, रामकृष्ण मंडल, सचिव अशोक षाड़गी, सहसचिव दिनेश जेना, सपन मिस्त्री जय प्रकाश दास, कोषाध्यक्ष पवित्र मोहन मंडल एवं सक्रीय सदस्यों में हितेंदु शेखर षाड़ंगी, पप्पू षाड़ंगी, अभिषेक दास,विद्युत कांत मंडल, महेश माझी, पिंटू मंडल, निहारकांत मंडल, जयदेव माझी, कमलेश होता, आदित्य मंडल, महावीर प्रमाणिक,शंभू प्रमाणिक, आसीत मोदक, अरमान मंडल, सुदामा मंडल, बुधना प्रमाणिक,रवि प्रमाणिक, श्याम सूत्रधर सहित कई सदस्य शामिल है।