रेत माफिया ने रेत को बनाया हथियार, खनिज विभाग की नींद का हाल बेहाल सत्ता का संरक्षण, लूट का धंधा तैयार

रायगढ़@खबर सार : रायगढ़ में रेत माफिया का रेत पर ऐसा राज है कि शासन-प्रशासन के सारे जतन धरे के धरे रह गए। जिला मुख्यालय से चंद किलोमदटों दूर धनागार (DHANAGAR) गांव में शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के पीछे मैदान में रेत का अवैध भंडारण इसका ज्वलंत सबूत है।
रेत का काला कारोबार, सूत्र : अवैध भंडारण और मंहगी बिक्री का खेल इस कदर फल-फूल रहा है कि खनिज विभाग के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। माफिया के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे शासन के निर्देशों को रेत की तरह उड़ा रहे हैं, और सवाल उठता है—आखिर इन्हें किसका संरक्षण है? सत्ता का छाता या अधिकारियों की चुप्पी? सवाल तो यह भी है क्या रेत की जांच की जाएगी कि रेत वैध है या अवैध?
शासन ने रेत के अवैध कारोबार पर लगाम कसने के लिए जिला कलेक्टर को मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी सौंपी है। खनिज विभाग के अमले के साथ मिलकर ताबड़तोड़ कार्रवाइयों के दावे भी किए जा रहे हैं, लेकिन धनागार में रेत का विशाल अवैध भंडारण इन दावों की पोल खोल रहा है।
सूत्र बताते हैं कि इस धंधे में मुनाफा इतना मोटा है कि माफिया हर जोखिम उठाने को तैयार हैं। कानून की ढील और संरक्षण की छांव ने उनके हौसलों को और हवा दी है। रेत को भारी वाहनों से लाकर अवैध रूप से जमा किया जाता है, फिर मानसून में ट्रैक्टरों के जरिए आसमान छूती कीमतों पर बेचा जाता है।
हैरानी की बात यह है कि धनागार में अवैध भंडारण की खबर हर किसी को है, सिवाय खनिज विभाग के। जब मीडिया मौके पर पहुंचा, तो एक वाहन वहां खड़ा मिला। ड्राइवर आनंद फानंद से सवाल करने पर वह गोलमोल जवाब देकर अपने मालिक को फोन लगाने लगा। मालिक के इशारे पर वह गाड़ी स्टार्ट कर नौ-दो-ग्यारह हो गया। स्थानीय सूत्रों का कहना है कि रेत माफिया का नेटवर्क इतना मजबूत है कि वे पकड़े जाने से पहले ही साफ निकल जाते हैं।
रायगढ़ में रेत भंडारण का लाइसेंस सिर्फ तीन लोगों के पास है, जिससे मांग और आपूर्ति का भारी अंतर है। इस गैप को अवैध कारोबारी बखूबी भुनाते हैं। रेत का अवैध खनन और परिवहन शासन के राजस्व को चूना लगा रहा है, तो आम आदमी की जेब पर डाका पड़ रहा है। खनिज अधिकारी और इंस्पेक्टर से संपर्क की कोशिश बेकार गई, क्योंकि उनका फोन कभी ‘बिजी’ या फोन ही ‘(नहीं)’ उठाते।
सवाल गंभीर है—क्या रेत माफिया को सत्ता का आशीर्वाद है या अधिकारियों की मिलीभगत? जिला मुख्य नाके के नीचे यह खेल बेरोकटोक चल रहा है, तो प्रशासन की नीयत पर शक गहराता है। रेत माफिया का धनागार में राज कायम है, और खनिज विभाग नींद का ताज पहने खर्राटे भर रहा है। आखिर कब टूटेगी यह खामोशी?