छत्तीसगढ़

एन आई टी राउरकेला ने एट्रियल एरिद्मिया के बेहतर डायग्नोसिस के लिए उन्नत ईसीजी लीड सिस्टम डिजाइन किया

यह सिस्टम वर्तमान ईसीजी मशीनों के साथ कम्पैटेबल है,

जिससे इन्हे अस्पतालों और क्लीनिकों में बिना किसी अतिरिक्त लागत के अपग्रेड कर सकते हैं

राउरकेला – राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला (एन आई टी राउरकेला) के शोधकर्ताओं ने हृदय की गतिविधि मॉनिटर करने की सबसे प्रचलित तकनीकों में एक इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी (ई सी जी) का कारगर अपग्रेड विकसित किया है। यह नया सिस्टम हृदय के ऊपरी कक्षों (एट्रिया) से आने वाले सूक्ष्म विद्युत संकेतों को स्पष्ट रूप से पहचानने में मदद करता है, जिन्हें सामान्य ईसीजी में पहचानना मुश्किल होता है।

यह संकेत असामान्य हृदय धड़कनों की पहचान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो आगे चलकर एट्रियल फिब्रिलेशन जैसी गंभीर स्थितियों का कारण बन सकते हैं और जिससे स्ट्रोक का खतरा बढ़ सकता है।

पूरी दुनिया में बड़ी संख्या में हृदय रोगों से मृत्यु की वजह हृदय की गतिविधि में अनियमितता या एरिद्मिया है। हृदय के अपर चैम्बर में हृदय गति में अनियमितता को एट्रियल एरिद्मिया कहते हैं। यह हृदय रोगों के सबसे सामान्य प्रकारों में से एक हैं, खासकर उन मरीजों में जो अस्पताल में भर्ती रह चुके हैं। इस अनियमितता का शुरुआती अवस्था में पता लगने से डॉक्टर समय पर उपचार शुरू कर सकते हैं और इससे होने वाली समस्याओं की रोकथाम कर सकते हैं।

ई.सी.जी. में शरीर पर इलेक्ट्रोड लगा कर उनकी मदद से हृदय की विद्युत गतिविधि रिकॉर्ड की जाती है। इसमें डॉक्टर ‘पी-वेव’ की पहचान करते हैं, जो एट्रिया की विद्युत गतिविधि को दर्शाती है। हालांकि, पी-वेव अक्सर बहुत छोटी होती है और बाहरी शोर या हृदय के अन्य हिस्सों से आने वाले तीव्र संकेतों से ढक जाती है। इस कारण, अधिक व्यस्त क्लिनिक या सस्ते मॉनिटरिंग इक्वीपमेंट की स्थिति में कभी-कभी एट्रियल एरिद्मिया का पता लगाना मुश्किल हो जाता है।

इस चुनौती का समाधान निकालने के लिए, एनआईटी राउरकेला की शोध टीम ने एक नया एट्रियल लीड सिस्टम (ए एल एस) नामक एक नया लीड प्लेसमेंट सिस्टम डिजाइन किया है। ईसीजी में, “लीड्स” उन विशेष विद्युत मापों को दर्शाते हैं जो शरीर के विभिन्न हिस्सों पर इलेक्ट्रोड्स लगाकर प्राप्त किए जाते हैं।

लीड प्लेसमेंट का मतलब है इलेक्ट्रोड्स को इस तरह से रखना कि हृदय से स्पष्ट संकेत मिल सकें। एएलएस में एक संशोधित व्यवस्था का उपयोग किया जाता है ताकि एट्रिया की विद्युत गतिविधि को बेहतर ढंग से रिकॉर्ड किया जा सके। यह प्रणाली विशेष रूप से पी वेव (P-wave) जैसे संकेतों को मज़बूत करती है। यह प्रणाली डॉक्टरों और कंप्यूटर-आधारित डायग्नोस्टिक टूल्स दोनों द्वारा एरिदमिया की पहचान की सटीकता को बेहतर बनाने में मदद करती है।

इस शोध के बारे में बात करते हुए शोध प्रमुख और एन आई टी राउरकेला के जैव प्रौद्योगिकी और चिकित्सा इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर, डॉ. जे. सिवरामन ने कहा, “हमने अपने शोध में इलेक्ट्रोड की एक नई व्यवस्था पेश की है, जिससे ईसीजी रीडिंग में एट्रियल गतिविधि की स्पष्टता में काफी वृद्धि हुई है। सिग्नल की बेहतर स्पष्टता से तेजी से विश्लेषण करना और बेहतर क्लिनिकल निर्णय लेना संभव हो पाया है।”

इस कार्य का सबसे आशाजनक पहलू यह है कि इसके लिए ईसीजी मशीन में कोई बदलाव करने की आवश्यकता नहीं है। नवाचार पूरी तरह से लीड्स को लगाने के तरीके में है, जिसका अर्थ है कि यह उन्नयन बिना किसी अतिरिक्त लागत के सार्वजनिक और निजी दोनों स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में आसानी से अपनाया जा सकता है।

शोध का क्लिनिकल महत्व बताते हुए डॉ. आर. प्रदीप कुमार, इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियक केयर, एमआईओटी इंटरनेशनल, चेन्नई ने कहा, ‘‘ईसीजी में स्पष्ट पी-वेव दिखने से एट्रियल पैथोलॉजी के डायग्नोसिस में बहुत गंभीर जानकारी मिलती है। एट्रियल फिब्रिलेशन को अन्य सुप्रावेंट्रिकुलर एरिद्मिया से अलग करने के लिए पी वेव मॉर्फोलॉजी पर ध्यान देना आवश्यक होता है।’’

यह शोध एनआईटी राउरकेला के डॉ. जे. सिवरामन, डॉ. एन. बाला चक्रवर्ती और प्रो. कुणाल पाल के मार्गदर्शन में शोध विद्वान, श्री प्रसन्ना वेंकटेश और सुश्री आर्या भारद्वाज के साथ किया गया है। इसमें क्लिनिकल सहयोग और वैलिडेशन डॉ. आर. प्रदीप कुमार, वरिष्ठ इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट, एमआईओटी इंटरनेशनल हॉस्पिटल, चेन्नई और विजिटिंग कंसल्टेंट, जयप्रकाश हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, राउरकेला ने दिया है।

इसके अतिरिक्त, इस व्यापक शोध के निष्कर्ष बायोमेडिकल सिग्नल प्रोसेसिंग एंड कंट्रोल, मेडिकल हाइपोथेसिस और फिजिकल एंड इंजीनियरिंग साइंसेज इन मेडिसिन सहित कई अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित किए गए हैं।एट्रियल लीड सिस्टम के लिए एक पेटेंट आवेदन (आवेदन संख्या: 202431094709) भी दायर किया गया है,

और इस परियोजना को भारत सरकार के अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ए एन आर एफ) से वित्तीय सहायता प्राप्त हुई है।एनआईटी राउरकेला, एमआईओटी इंटरनेशनल, चेन्नई और जयप्रकाश अस्पताल, राउरकेला द्वारा यह सहयोगात्मक उपलब्धि शैक्षणिक अनुसंधान और चिकित्सीय प्रैक्टिस के बीच प्रभावशाली सहयोग का उदाहरण प्रस्तुत करती है। इससे पूरे भारत और उसके बाहर भी हृदय रोग के निदान और उपचार में प्रगति का मार्ग प्रशस्त हो रहा है।
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