
पुलवामा हमले के बाद से ही केंद्र सरकार के खिलाफ उठे तमाम सवालों का जवाब आज तक नहीं दिया गया। जिसके विषय में सरकार से सवाल पूछना हर जागरूक भारतीय नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी बनती है…*
हमले के बाद जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल ने कहा था कि हमें इंटलीजेंस इनपुट तो मिले थे, कि इस तरह के हमले किए जा सकते है,, लेकिन इसे आश्चर्यजनक ढंग से ‘नज़रअंदाज़’ किया गया.
1.ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि अगर हमले से जुड़ी इंटेलीजेंस जानकारियां मिली थीं तो उन्हे गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया??
2.इस जानलेवा लापरवाही के लिए आखिर दोषी किसे ठहराया गया.??
3.क्या निर्दोष 44 जवानो के जान की सुरक्षा केंद्र सरकार या सिस्टम की जिम्मेदारी नही थी.??
4.इतने बड़े हमले की तैयारी में महीनों का समय लगता है,अगर इस दौरान सेना को या गृह मंत्रालय को ऐसे किसी हमले की कोई भनक नहीं लगती है तो ये क्या भारत के ख़ुफ़िया तंत्र और केंद्र सरकार पूरी तरह से निक्कमी है.??
5.जम्मू-श्रीनगर हाइवे उन सड़कों में शामिल है जहां देश के सबसे कड़े सुरक्षा मानक लागू हैं.इस हाइवे में थोड़ी-थोड़ी दूरी में सभी आम गाड़ियों की कड़ी जांच की जाती है.ऐसे में आख़िर विस्फोटक से भरी कोई गाड़ी हाइवे की कड़ी सुरक्षा को चकमा कैसे दे सकी?
6.250-300 किलोग्राम विस्फोटक आख़िर हमारे देश भारत में आया कैसे,और अगर बाहर से नहीं आया तो इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक हमलावरों के हाथ किस तरह से लगा.?
7.78 गाड़ियों के काफ़िले को एक साथ ले जाने के पीछे ख़राब मौसम को कारण बताया जा रहा है.तो क्या 2547 जवानों की संख्या वाले इस बड़े काफ़िले को एयरलिफ़्ट नहीं किया जा सकता था.?
8.तमाम खतरों के बावजूद वर्षों से जवानों के डिप्लॉयमेंट के उक्त तरीके को अब तक क्यों नही बदला गया.??
रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल डी.एस हुड्डा ने साल 2016 में भारत की ओर से पाकिस्तान पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक का नेतृत्व किया था.पुलवामा हमले के बाद उन्होंने सवाल उठाया कि “ये संभव ही नहीं है कि इतनी ज़्यादा मात्रा में विस्फ़ोटक सामग्री बिना किसी बड़े सरकारी तंत्र की सहायता के बिना ही सीमा पार से हमारे देश के अंदर आ जाए.जरूर घर के भेदियों ने इस हमले में आतंकियों को सहयोग किया है।”
विशेषज्ञों कि माने तो इस घटना के पीछे इंटलीजेंस फेलुवर से कहीं ज्यादा राजनीतिक षड्यंत्र के साक्ष्य देंखने को मिले हैं।। फिलहाल इतना देख लीजिए कि पुलवामा हमले के बाद फ़र्ज़ी सता में बैठी राष्ट्रवादी सरकार ने शहीदों के नाम पर बेशर्मी से वोट मांग कर तो दुबारा बहुमत से चुन ली गई।। इसके साथ ही भाजपा सहित पुलवामा हमले की दुहाइयाँ देने वाली देश की तमाम राजनीतिक पार्टियों ने विगत लोकसभा चुनाव में करोड़ो अरबो रुपए अपने चुनाव प्रचार-प्रसार में खर्च भी कर लिए परन्तु किसी भी राजनीतिक दल ने पुलवामा शहीदों के परिजनों की सीधी मदद करना उचित नही समझा।।
वैसे आज 14 फरवरी का दिन है।। हम हमारे बच्चे आज के दिन को वेलेंटाइन डे के रूप में जरूर याद रखते है मनाते है।। याद रखना भी चाहिए पर एक निवेदन और भी है कि आज के दिन आप खुद और अपने मित्रों सहित बच्चों को पुलवामा हमले के शहीदों के विषय में उन्हें जरूर बताएं और उन्हें याद करते हुए दो मिनट की मौन श्रद्धान्जलि भी अवश्य दें और उनसे दिलवाएं।। उन्हें यह भी बताए कि उन बहादुर लोगों ने हमारे बेहतर कल के लिए अपने आज का बलिदान किस तरह से दिया था।। सब से बड़ा सच यही है कि हमारी खुशहाली भी उनकी शहादत के निरन्तर चलते रहने वाले सिलसिले पर ही टिकी हुई है।।
कब तक शहादत दें वीर जवान,
भारत माँ की रक्षा में।
क्या कोई फर्ज नहीं बनता,
हमारा भी उनकी सुरक्षा में।।सर काट ले जाते हैं दुश्मन
हमारे वीर जवानों का।।मुँह ताकते रहते है,हम बेईमान
सिस्टम चलाने वालों काजय-हिंद
पुनः पुलवामा शहीदों को कोटि-कोटि नमन..
भावभीनी श्रद्धांजलि के साथ।।..
नितिन सिन्हा
सम्पादक
खबर-सार