मानवता के पुजारी संत बाबा गुरू घासीदास जी छत्तीसगढ़ की धरोहर …
इस धर्म का अनुयायियों का विस्तार छत्तीसगढ़ के इस पावन धरती पर विशेष रूप से हुआ। बाबा गुरू घासीदास जी का जन्म स्थल गांव गिरौदपुरी छत्तीसगढ़ में इतिहास के साथ -साथ कर्मभूमी और पर्यटन की दृष्टि से जाना पहचाना नाम है। कवि सुकुलदास जी घृतलहरे ने अपनी सतनाम पोथी में सतनामी समाज के विकास हेतु एक महत्वपूर्ण रचना है। सुकुल जी के रचना को नये आयाम में डॉ शंकरलाल टोडर जी ने जीवनी के रूप में लिखा और आज उनके इतिहास को हर वर्ग जानते हैं। शंकरलाल टोडर जी ने जो जीवनी परिचय लिखा है वह वास्तव में अध्ययन करने में सरल और सत्य के पहिये को धकेला है जो प्रशंसनीय है।
भारत एक महान देश है यहां आदिकाल से संत ,महात्मा, ऋषि- मुनियों ,महापुरूष ,महामानव का इतिहास रहा है जो किसी वर्ग से नहीं छिप पाया है। इस देश में संत महात्माओं और महान पुरूषों ने सदा से ही सत्य अहिंसा सद्भाव मानव सेवा परोपकार निष्काम कर्म का संदेश मानव मात्र को दिया। उन्होंने सदा ही जनता को सत्य मार्ग की ओर अग्रसर करते हुये भाईचारे, शांति, सहअस्तित्व एवं विश्वबंधुत्वता की भावना का पैगाम सुनाया है। संत व महापुरूष संपूर्ण मानव जाति के लिये पूज्यनीय है। भारत के हृदयस्थल छत्तीसगढ़ के ग्राम गिरौदपुरी थाना बिलाईगढ़ जिला बलौदाबाजार में 18 दिसंबर सन 1756 में संत बाबा गुरू घासीदास का जन्म हुआ था। बाबा करूणा के धनी हृदय आसमान की तरह निर्मल था जहां छत्तीसगढ़ को अपने सांस्कृतिक सुषमा विपुल रत्न भंडार एवं मानव सभ्यता का आदि होने का गौरव प्राप्त है ।वहीं इस पावन भूमि को बाबा गुरू घासीदास जी देव पूज्य की जन्मभूमि एवं कर्मभूमि होने का सौभाग्य प्राप्त है।
आपके पिता का नाम महंगूदास और माता का नाम श्रीमती अमरौतीन बाई था। बाबाजी बाल्यवस्था से ही होनहार विलक्षण प्रतिभा एवं अद्भुत शक्ति से सम्पन्न थे। बचपन से ही स्वभाव अनुसार वैरागी और व्यवहार में कर्मयोगी थे आपकी जीवन की अनेक सत्य घटनाऐं इस अंचल में प्रसिद्ध हैं। आप अपने साथियों को सदा नेक उचित सलाह दिया करते थे। बाबाजी का प्रादुर्भाव उस समय हुआ था जब देश में अराजकता की स्थिति थी। छत्तीसगढ़ क्षेत्र इस अराजकता के शिकंजे में जकड़ा था व अंग्रेज सम्राज्य का विस्तार हो रहा था। देशी नरेश लड़खड़ा रहे थे। हिन्दू समाज में अनेक कुरीतियॉ व्याप्त थी। छुआछूत, ऊंच -नीच की भावना का तांडव नृत्य समाज में हो रहा था ऐसी कठिन एवं विषम परिस्थिति में इस धरा धाम में संत बाबा गुरू घासीदास जी का जन्म हुआ। जिस प्रकार गौतम बुद्ध को वट वृक्ष के नीचे बुद्धत्व का ज्ञान प्राप्त हुआ था उसी प्रकार आपको भी औंरा-धौंरा वृक्ष के नीचे सत्य का ज्ञान हुआ था। आपको अन्तर्ज्ञान हुआ कि सत्य ही ईश्वर है। सत्य ही मानव का आभूषण है आगे आपने बीज मंत्र में कहा।
पाखंडी लोग हर युग में हर जगह पर होते हैं जिसके कारण आपको जन्म स्थान गिरौदपुरी को त्याग कर भंडारपुरी में रहना पड़ा फिर भी अपने मार्ग से विचलित नहीं हुये सत्य ज्ञान अमृतवाणी जन उपदेश चलता रहा आज करोड़ों की संख्या में अनुयायी इस छत्तीसगढ़ अंचल में हैं जो आपके सिद्धांतों की सत्यता स्वीकार करते हैं। बाबा गुरू घासीदास जी क्रांतीकारी युग पुरूष थे। आपने समाज में व्याप्त कुरीतियों को त्यागने का उपदेश दिया आपके उपदेश में पाखंड बात संकीर्णता एवं मिथ्याचार की जड़ मिट गयी तथा ध्वस्त हो गयी।
संमता समानता और भाईचारे के आधार पर जन -जन को मुक्ति का संदेश दिया पिड़ीत दलित और दुखी जनों के लिये नये पथ का निर्माण किया जिसे सत्य पंथ नाम से जाना जाता है आपने सत्य को हृदय में बसाकर सतकर्म करने एवं कर्म को व्यवहार में उतारने का सही मार्गदर्शन बताया। बाबा घासीदास जी एक क्रांतिकारी एवं महान पुरूष थे आपने युग में एक लम्बी क्रांति का शुरूआत किया तथा मानव जीवन में वैचारिक क्रांति एवं नैतिक क्रांति की ज्योति प्रज्जवलित की। बाबाजी मूर्तिपूजा एवं मास, मद्यपान, जुआ, धूम्रपान, चोरी, वेश्यावृत्ति पाखंडवाद, एवं मिथ्याचार से दूर रहने को उपदेश दिये ।
संत महान पुरूषों का अवतार तो विश्वकल्याण के लिये होता है बाबा घासीदास का जन्म इस धरा धाम पर दुखी पीड़ित मानव के उद्धार के लिये हुआ था ।वे दीन दुखियों के दुख दूर करने पीड़ितों के पीड़ा हरने गिरे हुये लोगों को उठाने और सत्य मार्ग बताने के लिये जनता के बीच में आये थे वे अपने उद्देश्य संदेशों और उपदेशों से जनता में आस एवं स्फूर्ति की ज्योति प्रज्जवलित कर गये। आज गिरौदपुरी गांव धाम के रूप में जाना जा रहा यहां आपका कुतुब मीनार से भी बड़ा जैतखांभ है जो लोगों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है । गिरौदपुरी में बारों माह हजारों लोगों का आना जाना है लोग आपके जगह मात्र का दर्शन कर धन्य मानते है । छत्तीसगढ़ के बड़े शहर रायपुर ,बिलासपुर ,दुर्ग ,रायगढ़ , सारंगढ शहर और पूरे छत्तीसगढ़ में आपकी जयंती पर लोग आपको एवं आपके कार्य को सराहना करते है आपके अनुयायी आपके मार्ग में चल कर अपने आपको धन्य मानते हैं । आपकी 269 वीं जयंती पर आपको विनम्र नमन जो आपने मनखे मनखे एक बराबर का संदेश दिया ।दबे ,कुचले ,दलित ,असहाय को नई विचार नई राह दिखाए । आज आपको याद कर छत्तीसगढ़ धन्य मानता है ।





