छत्तीसगढ़

एक पत्रकार ने काट के रख दिया गुरु! ‘मग्गू भाई’ का ऐसा ‘भौकाल’ कि सिस्टम भी शरमा जाए!

Advertisement

रायपुर / बलरामपुर / विशेष व्यंग्यात्मक रिपोर्ट

अरे भाई साहब! क्या गदर मचा है बलरामपुर में! एक चिट्ठी से बम फटा है और उसके छर्रे सीधे राष्ट्रपति भवन तक उड़े हैं। मामला अपने विनोद अग्रवाल उर्फ ‘मग्गू सेठ’ का है। पत्रकार ने जो ‘लपेटे में लिया है’, कसम से पढ़ के जिगर खुश हो जाएगा।
यह कोई आम शिकायत नहीं है, यह ‘व्यंग्य का परमाणु बम’ है! पढ़िए मग्गू भाई की कई ऐसी ‘कतई जहर’ लीलाएं जो पुलिस-प्रशासन की ‘पैंट गीली’ करने के लिए काफी हैं:

छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार कुमार जितेन्द्र ने सेठ जी को जिस अंदाज़ में लपेटा है, उसे पढ़कर लगता है— सच अगर व्यंग्य बन जाए, तो सत्ता को भी आईना दिखा देता है।

क्रशर कांड: मौत नहीं, मोक्ष है गुरु!

पब्लिक सोचती है कि बरियों वाले आदिवासी शिव नारायण की मौत क्रशर में दबने से हुई। अरे हटाओ यार! चिट्ठी में साफ लिखा है कि यह तो बंदे का ‘सौभाग्य’ था। 
उसने मरने के लिए मग्गू सेठ का ही क्रशर चुना, इसे ‘आत्महत्या’ या हादसा बोलना पुलिस की नासमझी है।
भाई के क्रशर में जान देना मतलब सीधा स्वर्ग का टिकट! पुलिस फालतू में केस-वेस का लोड ले रही है।

सबूतों का क्या? अरे, पूरा ऑफिस ही ‘फूंक’ डाला!

भाई का गेम देखो, एकदम ओपी (OP) लेवल! खनिज विभाग में करोड़ों का घोटाला हुआ तो टेंशन नहीं ली।
सबूत छुपाने के लिए फाइल-वाइल नहीं गायब की, सीधे बलरामपुर खनिज ऑफिस में ही आग लगवा दी। 
पत्रकार लिखता है कि सरकारी फाइलों को ‘अग्नि को समर्पित’ करना अपराध नहीं, बल्कि एक पवित्र ‘यज्ञ’ है। सबूतों का ऐसा हवन किया कि राख भी नहीं मिली!

पुलिस ‘लुका-छिपी’ खेल रही, सेठ जी घर में ‘पार्टी’ कर रहे!
इसे कहते हैं असली स्वैग (Swag)! पुलिस का कहना है कि मग्गू सेठ और उनका भाई प्रवीण अग्रवाल ‘फरार’ हैं।
लेकिन अंदर की खबर यह है कि ये दोनों ‘वांटेड’ मुजरिम जून/जुलाई 2025 में अपने ही घर में शादी की सालगिरह मना रहे थे और दावत उड़ा रहे थे। 
पुलिस बेचारी देश-विदेश में ढूंढ रही है और भाई घर पर बिरयानी पेल रहे हैं। इसे कहते हैं पुलिस और अपराधी का ‘अटूट लव’।

मुफ्त ‘मुक्ति धाम’ (मौत का कुआं)

भाई की समाजसेवा तो देखिए— मवेशियों और इंसानों दोनों के लिए गहरे कुएं खुदवाए गए हैं, जिनकी गहराई इंची टेप भी न नाप सके।
मवेशी गिरकर मर जाएं, इंसान फांसी लगाकर आत्महत्या कर लें—तो इसे हादसा मत कहिए, यह सेठ जी द्वारा दी गई निःशुल्क अंतिम यात्रा सुविधा है। कितने महान विचार हैं गुरु!

आदिवासियों का ‘कल्याण’ — जमीन हड़प योजना!
भाई ने आदिवासियों की जमीन हड़पकर ऐसा पुण्य कमाया है कि धर्मराज भी कन्फ्यूज हों जाए!
कमला देवी (पति रीझन) जैसी कई आदिवासी महिला-पुरुष के नाम पर बेनामी संपत्ति— ताकि उनका नाम इतिहास में दर्ज हो जाए।
पहाड़ी कोरवाओं की जमीन छीनी जा रही है ताकि उन्हें “वापस जंगल भेजा जा सके”— क्योंकि शहर की गंदी हवा उन्हें सूट नहीं करती।
वाह! विकास हो तो ऐसा।

पत्रकारिता का ‘शुद्धिकरण’

77 साल की आज़ादी के बाद भी पत्रकार सुरक्षा कानून नहीं बना— और इसी कमी का सबसे सुंदर उपयोग मग्गू सेठ जैसे लोग कर रहे हैं।
जो पत्रकार सेठ जी की महिमा नहीं गाता, उसे भाई साहब अपने नेटवर्क और स्थानीय पुलिस के सहयोग से झूठे केस में जेल भिजवा देते हैं।
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को तिजोरी के नीचे दबाकर रखना उनका शौक है— और पुलिस का सराहनीय सहयोग। भाई का स्वैग ही अलग है।

रोज़गार सृजन का ‘अद्वितीय मॉडल’

भाई द्वारा संचालित सरगुजा संभाग का सबसे बड़ा खनन संस्थान— महामाया स्टोन क्रशर—
सेठ जी के फरार होने पर सील हुआ, लेकिन कलेक्टर और खनिज विभाग की दूरगामी दया दृष्टि से फिर चालू हो गया।
यह है कानून-मुक्त रोज़गार मॉडल।
पत्रकार ने तो निवेदन किया है ऐसे क्रशर पूरे छत्तीसगढ़ में खोले जाएं ताकि युवाओं को नियमों से मुक्त रोजगार मिले और ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सपना साकार हो।

क्राइम कुंडली ऐसी कि यमराज भी कन्फ्यूज

2009 से 2025 तक थाना राजपुर और बरियों में मुकदमों की कतार—

2020: गैर-इरादतन हत्या (304-II)
2015: अपहरण (365, 342)
बलवा, मारपीट, गाली-गलौज — रोज़ का नाश्ता

सिस्टम का ‘मोय-मोय’

पत्र का सार बिल्कुल साफ है—
“राजा राज करेगा और जुल्म बार-बार करेगा।”
इसलिए जनहित (यानी सेठ-हित) में निवेदन है कि:
राजस्व, खनिज और प्रशासन के सभी अधिकारियों को राष्ट्रीय सम्मान दिया जाए, वेतन 100% बढ़ाया जाए।
मग्गू सेठ और प्रवीण अग्रवाल पर लगे सभी आरोप तत्काल खारिज किए जाएं।
उल्टा, शिकायत करने वाले आदिवासियों और पत्रकारों को गिरफ्तार किया जाए।

जो पुलिसकर्मी गलती से भी सेठ जी पर कार्रवाई सोचें, उन्हें तुरंत बर्खास्त किया जाए— ताकि ‘सुविधा शुल्क’ निर्बाध चलता रहे।
और अंत में पत्रकार ने भारत के राष्ट्रपति जी से निवेदन किया है कि महोदया, आप इस “व्यंग्यात्मक सत्य” को समझेंगी।

अब देखना यह है कि दिल्ली वाला सिस्टम इस लोकल डॉन की हेकड़ी निकालता है, या फिर यह फाइल भी ठंडे बस्ते में मोक्ष पा जाती है।

Advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button