छत्तीसगढ़

आदिवासी मजदूरों से छीना रोजगार: वन विभाग की कार्यप्रणाली पर उठे गंभीर सवाल

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JCB से कराए जा रहे गड्ढा खुदाई कार्य में मजदूरों के नाम पर हो रहा फर्जी भुगतान, सरकार की योजनाएं फाइलों में सीमित

रोजगार की जगह जेसीबी: आदिवासी मजदूरों के हक पर मशीनों का कब्जा

पेंड्रा। मरवाही रेंज अंतर्गत कोडगार बीट के वनांचल क्षेत्र में वन विभाग द्वारा गड्ढा खुदाई का कार्य जारी है, लेकिन यह कार्य मानव श्रम की बजाय जेसीबी मशीनों से करवाया जा रहा है।
स्थानीय आदिवासी मजदूरों के अनुसार, उनके नाम पर काम दर्ज कर लाखों की फर्जी भुगतान की जा रही है, जबकि हकीकत में गड्ढा जेसीबी से खुदवाया जा रहा है।

मजदूरों का दावा: “हमसे हमारा रोजगार छीना गया”

ग्रामीण आदिवासी मजदूरों का आरोप है कि विभागीय अधिकारियों ने उन्हें काम का मौका ही नहीं दिया। तेज़ मशीनों के आगे मजदूरों की मेहनत टिक नहीं पा रही, जिससे उन्हें अपने परिवार के भरण-पोषण में मुश्किलें हो रही हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि काम के बारे में उन्हें कोई आधिकारिक जानकारी भी नहीं दी गई।

भय के साए में ग्रामीण, कैमरे के सामने बोलने से कतरा रहे

ग्रामीणों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्हें विभागीय अधिकारियों से प्रताड़ना का डर है, इसी कारण वे कैमरे के सामने अपनी बात नहीं रख पा रहे हैं।
यह स्थिति बताती है कि प्रशासनिक भय आज भी गांवों में जड़ें जमाए हुए है।

मजदूर दिवस पर खोखले दावे, जमीनी हकीकत में विपरीत तस्वीर

एक ओर सरकार मजदूर दिवस मना रही है, दूसरी ओर जमीनी हकीकत यह है कि मजदूरों को उनका हक ही नहीं मिल पा रहा। रोजगार छीनने वाले यही अधिकारी रसूखदारों से साठगांठ कर लाखों के वारे-न्यारे कर रहे हैं।

18 लाख की फर्जी भुगतान की आशंका, करोड़ों में हो सकता है घोटाला

सूत्रों की मानें तो विभागीय कार्यों में करीब 18 लाख रुपए के फर्जी भुगतान की आशंका है, जबकि पूरे प्रोजेक्ट की लागत करोड़ों में है।
इससे यह स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि बड़ी धनराशि के दुरुपयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

सवालों के घेरे में विभागीय अफसर, क्या होगी निष्पक्ष जांच?

अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या उच्च अधिकारी इस मामले की निष्पक्ष जांच करेंगे या पूर्व की तरह लीपापोती कर आदिवासी मजदूरों की आवाज को फिर दबा दिया जाएगा?

निष्कर्ष:
वन विभाग के इस रवैये ने न केवल ग्रामीणों का भरोसा तोड़ा है, बल्कि सरकारी योजनाओं की साख पर भी सवाल खड़े किए हैं। यदि सरकार और प्रशासन सचमुच आदिवासियों और मजदूरों की भलाई चाहते हैं, तो इस मामले में पारदर्शी जांच और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई बेहद जरूरी है।

 

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