मितानिन एवं संजीवनी 108 एंबुलेंस के कर्मचारियों ने साइकिल पर लादकर पहुंचाया मरीज को हॉस्पिटल

आजादी के 75 साल बाद भी आदिवासियों को स्वास्थ्य सड़क शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से होना पड़ रहा है वंचित
आजादी के 77-78 वर्ष बीत चुके हैं, परंतु आज भी हमारे देश प्रदेश के ज्यादातर हिस्से विकास नाम से अछूते है। और उन्ही हिस्सों के लोग जो की अधिकांशतः आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं बिना संसाधनों के गुजर बसर करने को मजबूर हैं, मूलभूत सुविधाओं जैसे पानी ,बिजली,सड़क इत्यादि संसाधनों के अभाव के कारण रोजाना उनको छोटी छोटी समास्यों के लिए बड़ी बड़ी कीमतें चुकानी पड़ती हैं।
ऐसा ही एक मामला दिनांक 13/08//24 को देखने को मिला, ग्राम पंचायत मगुर्दा के आश्रित ग्राम भूकभुका जहां लगभग 40/45 आदिवासी परिवार निवास करते, वही की रोशनी पिता जगलाल सिंह, शांति पति जगलाल सिंह गोंड, जो की पिछले कई दिनों से उल्टी, दस्त , बुखार पेट दर्द आदि समस्याओं से जूझ रहे थे जिसकी जानकारी गांव की मितानिन को लगी उसने उनको इलाज के लिए अस्पताल ले जाने हेतु आपातकालीन सेवा डायल 108 को बुलवाया ,परंतु घना जंगल और सड़क न होने के कारण एंबुलेंस उनके गांव तक नहीं पहुंच पाई, जिस पर एंबुलेंस कर्मी ईएमटी गणेश्वर प्रसाद, पायलट जितेंद्र मितानिन पूर्णिमा घने जंगलों, जंगली जानवरों के हमलों को ध्यान में रखते हुए, तथा मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं को समझते हुए लगभग 3,4किलोमीटर पैदल चलकर मरीजों को साइकिल पर बैठकर एंबुलेंस तक लाए और फिर उन्हें इलाज हेतु अस्पताल में भर्ती करवाया,