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राजनीतिक बयानबाज़ी, आर्थिक तर्कों और सांस्कृतिक मुद्दों पर सियासी घमासान तेज

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नई दिल्ली/वडोदरा। देश की राजनीति में बीते सप्ताह बयानबाज़ी और प्रतीकों को लेकर विवाद तेज हो गया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के एक बयान से शुरू हुआ यह सिलसिला अर्थव्यवस्था, मुद्रा, नामकरण और सांस्कृतिक प्रतीकों तक जा पहुँचा। विपक्ष ने इन घटनाक्रमों को ध्रुवीकरण की राजनीति करार दिया है, जबकि सत्तापक्ष ने अपने रुख का बचाव किया है।



गुजरात के वडोदरा में आयोजित एक सभा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बाबरी मस्जिद से जुड़ा बयान दिया, जिस पर विपक्ष ने ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत होने का आरोप लगाया। बयान के बाद दस्तावेज़ी साक्ष्यों के हवाले से सवाल उठाए गए और इसे ‘एकता रैली’ के मंच से कही गई विभाजनकारी बात बताया गया।

इसी दौरान डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट पर भी राजनीतिक बहस तेज रही। भाजपा सांसद मनोज तिवारी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बयानों पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी। सरकार की ओर से कहा गया कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है और रुपये की चाल को लेकर अनावश्यक चिंता नहीं की जानी चाहिए, जबकि आलोचकों ने अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की रिपोर्ट का हवाला देते हुए सरकार के दावों पर सवाल उठाए।



रिज़र्व बैंक और नीति आयोग से जुड़े अर्थशास्त्रियों के वक्तव्यों ने भी चर्चा को हवा दी। कमजोर रुपये को निर्यात के लिए लाभकारी बताने और मुद्रा को ‘अपना स्तर खोजने’ देने जैसे तर्कों पर विशेषज्ञों के बीच मतभेद सामने आए। केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के बयान, जिसमें उन्होंने रुपये की मजबूती का दावा किया, ने विवाद को और बढ़ा दिया।

इसी बीच राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास के नामकरण को ‘सेवा तीर्थ’ किए जाने और राजभवनों को ‘लोकभवन’ कहे जाने की घोषणाओं पर भी राजनीतिक प्रतिक्रिया आई। विपक्ष ने इसे प्रतीकात्मक राजनीति बताया। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के प्रदूषण नियंत्रण को लेकर दिए गए बयान पर भी आलोचना हुई।

सांस्कृतिक मोर्चे पर ‘वंदे मातरम्’ को लेकर चली बहस ने राजनीतिक तापमान और बढ़ा दिया। बंगाल में आगामी विधानसभा चुनावों के संदर्भ में इस मुद्दे को उठाए जाने पर विपक्ष ने साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का आरोप लगाया। प्रधानमंत्री के भाषणों और कोलकाता में हुए कार्यक्रमों को इसी रणनीति से जोड़कर देखा गया।

इन सबके बीच सरकार द्वारा लाए जा रहे नए विधेयकों—सीड बिल 2025, बिजली बिल 2025 और श्रम कानूनों—पर विपक्ष ने बिना व्यापक बहस के पारित कराने का आरोप लगाया। नागरिकों की निगरानी से जुड़े एक प्रस्तावित ऐप को लेकर भी चिंताएं जताई गईं।

कुल मिलाकर, बीते सप्ताह राजनीतिक बयानबाज़ी, आर्थिक तर्कों और सांस्कृतिक मुद्दों ने सियासी माहौल को गरमा दिया। विपक्ष का आरोप है कि इन मुद्दों के जरिए असल सवालों से ध्यान हटाया जा रहा है, जबकि सरकार का कहना है कि फैसले देशहित में हैं।

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