शहादत दिवस विशेष : छत्तीसगढ़ के जन-नायक वीर नारायण सिंह — 1857 की क्रांति के अदम्य नायक और अकाल में प्रजा के रक्षक

10 दिसम्बर — शहादत दिवस विशेष रिपोर्ट
छत्तीसगढ़ के जन-नायक शहीद वीर नारायण सिंह : प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अमर योद्धा
छत्तीसगढ़ के गौरवशाली इतिहास में कई ऐसे सपूत हुए हैं जिन्होंने जनहित, न्याय और स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। इन्हीं महान बलिदानियों में से एक हैं छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, जन-नायक शहीद वीर नारायण सिंह, जिनकी 168वीं पुण्यतिथि 10 दिसंबर को मनाई जा रही है।
अकाल, दमन और अंग्रेज़ों के खिलाफ बिगुल — जन-नायक का उदय
बलौदाबाजार जिले के सोनाखान में 1795 में जन्मे वीर नारायण सिंह अपनी न्यायप्रियता, साहस और जनसेवा के लिए प्रसिद्ध थे। अपने पिता जमीदार रामसाय से 35 वर्ष की आयु में जमींदारी संभालने के बाद उन्होंने हमेशा अपनी प्रजा को परिवार माना।
सन 1856 में भयानक अकाल के दौरान अंग्रेजी शासन ने मदद करने के बजाय दमनकारी कर वसूली बढ़ा दी। भूख से तड़पती प्रजा को बचाने के लिए वीर नारायण सिंह ने कसडोल के जमाखोर माखनलाल के गोदाम से अनाज जब्त कर उसे गरीबों में बांट दिया। यह घटना “सोनाखान विद्रोह” के नाम से इतिहास में दर्ज है।
गिरफ़्तारी, विद्रोह और जेल से भागने का साहसिक कारनामा
24 अक्टूबर 1856 को उन्हें संबलपुर से गिरफ्तार कर रायपुर जेल लाया गया। इस दौरान पूरे देश में स्वतंत्रता आंदोलन की चिंगारी भड़क चुकी थी। सैनिकों ने भी उन्हें अपना नेता मानते हुए जेल से मुक्त कराने में सहायता की और 28 अगस्त 1857 को वे अंग्रेजों की कैद से भाग निकले।
सोनाखान लौटते ही वहां की जनता में उत्साह की लहर लौट आई। उनके नेतृत्व में 500 सैनिकों की एक सेना बनाई गई और कुररूपाठ डोंगरी को केंद्र बनाकर अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ मोर्चा खोला गया।
सोनाखान पर अंग्रेजों का हमला और वीर नारायण सिंह की गिरफ्तारी
रायपुर के डिप्टी कमिश्नर स्मिथ ने 29 नवंबर 1857 को सोनाखान पर भारी सेना के साथ हमला करवाया। गांव को आग के हवाले कर दिया गया। चारों ओर से घेराबंदी कर 01 दिसंबर 1857 को वीर नारायण सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया।
10 दिसंबर 1857 — फांसी पर चढ़ा दिया गया छत्तीसगढ़ का अमर सेनानी
देशद्रोह के झूठे आरोप में मुकदमा चलाने के बाद रायपुर के वर्तमान जयस्तंभ चौक में 10 दिसंबर 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई, और उनका शव तोप से उड़ा दिया गया। इस प्रकार भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी ने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।
शहादत की अमर गाथा : सम्मान और स्मृति
- 1987 में उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया।
- 2008 में रायपुर में शहीद वीर नारायण सिंह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण हुआ।
- राज्य शासन ने उनके नाम पर वार्षिक पुरस्कार की स्थापना की है, जिसके तहत समाज उत्थान में योगदान करने वाले व्यक्तियों/संस्थाओं को ₹2 लाख व प्रशस्ति पत्र दिया जाता है।
जन-नायक की स्मृति में राज्य स्तरीय सम्मान की मांग
इतिहासकारों और जनप्रतिनिधियों का मानना है कि
10 दिसंबर को छत्तीसगढ़ में सरकारी अवकाश घोषित किया जाना चाहिए,
और रायपुर के जयस्तंभ चौक को परंपरागत रूप से सजाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी जानी चाहिए।
नई पीढ़ी को राष्ट्रप्रेम और बलिदान की प्रेरणा देने वाले इस महापुरुष को पढ़ना और समझना अत्यंत आवश्यक है।

लक्ष्मीनारायण लहरे “साहिल”
सह-सम्पादक, छत्तीसगढ़ महिमा (हिंदी मासिक पत्रिका, रायपुर)
साहित्यकार एवं पत्रकार
गांव/डाकघर – कोसीर, सारंगढ़, छत्तीसगढ़
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