राजनैतिक व्यंग्य समागम

1. “ये घुटने झुकने के लिए ही बने हैं” – विष्णु नागर
मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी के समीकरण पर देश की राजनीति में लगातार चर्चाएं होती रही हैं। बहुतों का मानना था कि संघ प्रमुख भागवत, मोदी को 75 वर्ष की आयु में पद छोड़ने पर विवश करेंगे। लेकिन हुआ ठीक उल्टा।
दिल्ली में तीन दिवसीय व्याख्यान के दौरान भागवत जी ने स्वयं यह साफ कर दिया कि न तो वे रिटायर होंगे और न ही प्रधानमंत्री मोदी। बल्कि यह मानो संघ की स्वीकारोक्ति थी कि संगठन अब मोदी के सामने हथियार डाल चुका है।
इतिहास गवाह है – चाहे अंग्रेज़ों के सामने झुकना हो, गांधी हत्या के बाद प्रतिबंध हटवाने के लिए पटेल-नेहरू के आगे झुकना हो, आपातकाल में इंदिरा गांधी के सामने समर्पण हो या आज अपने ही स्वयंसेवक मोदी के आगे – संघ के घुटनों का इस्तेमाल हमेशा झुकने के लिए ही हुआ है।
आज हालात यह हैं कि मोदी जी भाजपा अध्यक्ष तक अपने पसंद के लगाते हैं, और संघ की सिफारिशों को ठुकरा देते हैं। संघ बस चुपचाप घुटने टेक देता है। गुजरात में तो मोदी ने संघ को पहले ही हाशिये पर धकेल दिया था।
असल में संघ के पास दम केवल हिंदू-मुस्लिम के एजेंडे तक ही सीमित है। अयोध्या, काशी, मथुरा और झूठे राष्ट्रवाद के नाम पर समाज को बांटने की राजनीति में। बाकी मामलों में संगठन अब भाजपा की छत्रछाया में पलने को मजबूर है।
सवाल उठता है – अगर दम होता तो भागवत जी मोदी से कहते, “बस बहुत हुआ, देश और अर्थव्यवस्था बर्बादी की कगार पर है, अब कृपया पद छोड़िए।” मगर सौ साल से झुकते-झुकते अब घुटनों की आदत पड़ चुकी है। उठने की ताकत ही नहीं बची।
2. “वो कागज नहीं दिखाएंगे!” – राजेंद्र शर्मा
देश की राजनीति में अब एक नया ट्रेंड शुरू हो गया है – कागज नहीं दिखाएंगे!
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी बीए की डिग्री का कागज नहीं दिखाते, तो स्मृति ईरानी भी अपनी ग्यारहवीं-बारहवीं की मार्कशीट नहीं दिखातीं। और अब तो अदालत ने भी साफ कह दिया – डिग्री के कागज दिखाना राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ है।
सोचिए, कागज दिखा दिए तो राष्ट्र असुरक्षित हो जाएगा! गद्दी हिल जाएगी! और यही खतरा सबसे बड़ा है।
अब चुनाव आयोग ने भी इस राह को अपना लिया है। आयोग ने घोषित कर दिया – बिहार की एसआईआर (Special Intensive Revision) से जुड़े किसी भी कागज को नहीं दिखाया जाएगा। आरटीआई डालो या सुप्रीम कोर्ट जाओ, जवाब मिलेगा – “कागज नहीं दिखाएंगे।”
विरोधी इसे लेकर हंगामा कर रहे हैं कि शायद आयोग के पास कोई फाइल है ही नहीं। लेकिन सरकार का तर्क है – न दिखाना और न होना दो अलग बातें हैं। असली ताकत तो यही है कि डिग्री होते हुए भी न दिखाई जाए और यह कहा जाए – “क्या कर लोगे?”
दरअसल, मोदी शासन में फैसले अब चर्चा-वर्चा से नहीं, बल्कि इलहाम से होते हैं। फाइलें और नोटिंग्स पिछली सरकारों का झंझट थीं। यहां तो ऊपर से आदेश आता है और सीधे लागू हो जाता है।
यही वजह है कि अब न डिग्री के कागज दिखाए जाएंगे, न एसआईआर की फाइल। आखिर जनता को सीएए के समय ही समझा दिया गया था – “कागज मत मांगो।”
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।)





