कोटमी-शेखवा कांड : सरकारी शिक्षक पर वन विभाग की भूमि कब्जाने का आरोप, फर्जी दस्तावेज़ों से रचा गया खेल!

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। जिले के कोटमी-शेखवा क्षेत्र में वन विभाग की भूमि पर अतिक्रमण का मामला अब बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा बनता जा रहा है। जिस भूमि पर कभी वन विभाग का निस्तार डिपो संचालित होता था, आज उस पर अवैध कब्ज़ा कर लिया गया है और यह कब्ज़ा किसी आम व्यक्ति का नहीं बल्कि एक सरकारी शिक्षक का बताया जा रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सेखवा निवासी शिक्षक कन्हैया लाल प्रजापति ने फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे इस सरकारी भूमि को अपने परिजनों के नाम दर्ज करवा लिया और उस पर निर्माण कार्य भी शुरू करवा दिया है।
छात्रावास और ग्रामीणों की हालत बदतर..
वन विभाग और राजस्व विभाग की लापरवाही से उपजे इस मामले ने ग्रामीणों का जीना मुश्किल कर दिया है। पहले जहां इस डिपो से ग्रामीणों को ईंधन और लकड़ी की सुविधा मिलती थी, वहीं अब उन्हें रोजमर्रा की ज़रूरतों के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। कोटमी-शेखवा में संचालित 60 सीटर कन्या छात्रावास और 60 सीटर बालक छात्रावास भी सीधे प्रभावित हो रहे हैं, जहां प्रतिदिन ईंधन की आवश्यकता होती है लेकिन डिपो बंद होने के कारण इसकी आपूर्ति बाधित हो गई है। ग्रामीणों की स्थिति और भी दयनीय है क्योंकि घरेलू ईंधन की दिक्कत तो है ही, मृत्यु उपरांत अंतिम संस्कार जैसे अवसरों पर लकड़ी की व्यवस्था तक के लिए उन्हें भारी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।
जनप्रतिनिधियों की नाराज़गी….
भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य सुनील शुक्ला उर्फ नन्हू शुक्ला ने इस पूरे मामले पर गहरी नाराज़गी जाहिर करते हुए राजस्व मंत्री को पत्र भेजा है। पत्र में उन्होंने साफ कहा कि डिपो बंद होने से ग्रामीणों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है और अतिक्रमणकारियों ने सरकारी भूमि हड़पने का दुस्साहस कर लिया है। उन्होंने मांग की है कि भूमि को तत्काल अतिक्रमण से मुक्त कराया जाए और पूर्व संचालित डिपो को उपभोक्ता डिपो के रूप में पुनः स्वीकृत किया जाए ताकि आम आदमी को राहत मिल सके। शुक्ला ने यह भी कहा कि डिपो न होने के कारण ग्रामीणों को मृत्यु उपरांत लकड़ी की व्यवस्था के लिए तकलीफ उठानी पड़ रही है और यह बेहद शर्मनाक स्थिति है कि सरकार की लापरवाही का खामियाज़ा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।
2022 में हुई थी शिकायत, मगर दबा दिया गया मामला
गौरतलब है कि यह कोई पहली बार नहीं है जब इस अतिक्रमण की शिकायत हुई हो। वर्ष 2022 में भी ग्रामीणों ने राजस्व विभाग को लिखित शिकायत कर भूमि को कब्ज़ामुक्त कराने की मांग की थी, लेकिन अधिकारियों की उदासीनता और संभवतः मिलीभगत के चलते कार्यवाही नहीं की गई। नतीजा यह हुआ कि आज डिपो की भूमि पूरी तरह से अतिक्रमण की जद में है और उस पर निर्माण कार्य खुलेआम जारी है।
जांच की स्थिति,डिपो बंद,-
सूत्रों के मुताबिक इस अतिक्रमण को लेकर वन विभाग ने बाकायदा जांच की थी। जांच में साफ लिखा गया कि करीब 1.47 एकड़ भूमि पर कब्ज़ा किया गया है। यह रिपोर्ट संबंधित विभाग के पास उपलब्ध है, लेकिन कार्रवाई की बजाय उसे फाइलों में दबा दिया गया। ग्रामीणों का आरोप है कि यह रिपोर्ट आज तक “धूल फांक रही है।” सवाल यह है कि जब खुद विभाग ने कब्ज़े की पुष्टि कर दी थी, तो अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या यह सिर्फ लापरवाही है या फिर सुनियोजित मिलीभगत?
कब्ज़ा शुरू – प्रशासन बना मूकदर्शक,,
यह मामला सिर्फ एक सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण का नहीं बल्कि पूरे सिस्टम की पोल खोलने वाला है। जब भूमि रिकॉर्ड में स्पष्ट रूप से “बड़े झाड़ जंगल मद” के रूप में दर्ज है और वन विभाग को आवंटित है, तब निजी नाम कैसे चढ़ गया? आखिर यह खेल किसकी शह पर हुआ और राजस्व विभाग के अधिकारी किसके इशारे पर चुप बैठे रहे? यह ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब प्रशासन को देना ही होगा।
ग्रामीणों का गुस्सा लगातार बढ़ रहा है और अब सबकी निगाहें इस पर टिक गई हैं कि क्या राजस्व मंत्री और जिला प्रशासन वास्तव में इस मामले की उच्च स्तरीय जांच कर दोषियों को सजा दिलाएंगे या फिर यह मामला भी अन्य अतिक्रमणों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा। फिलहाल कोटमी-शेखवा का यह कांड जिले में प्रशासन की नीयत और सिस्टम की सच्चाई पर बड़ा सवाल खड़ा कर चुका है।




