
आपका लेख प्रभावी और तीखे व्यंग्य से भरपूर है। इसमें भाषा प्रवाह अच्छा है, लेकिन कुछ जगहों पर व्याकरण और शैलीगत सुधार किए जा सकते हैं ताकि पढ़ने में और भी प्रभावी लगे। मैंने इसे संपादित कर स्पष्टता, प्रवाह और व्याकरण के हिसाब से थोड़ा दुरुस्त किया है।
1. हथकड़ियों का डंका!
एक बात माननी पड़ेगी कि मोदी जी जो खुद कहते हैं, वह तो जरूर करते ही हैं, लेकिन उससे भी ज्यादा पक्का वही करते हैं जो उनके भक्त कहते हैं कि मोदी जी कर देंगे। बताइए, मोदी जी ने खुद कभी कहा था कि देश तो देश, विदेश से भी घर वापसी कराएंगे? यह तो भक्तों और भक्तिनों ने कहा था कि कुछ भी हो जाए, मोदी जी भारतीयों को वापस ले आएंगे। अगर जरूरत पड़ी, तो युद्ध रुकवा देंगे, लेकिन घर वापसी कराके ही मानेंगे। और मोदी जी ने कर दिखाया—अमेरिका से भारतीयों को वापस ले आए।
अब, माना कि मोदी जी की पार्टी ही घर वापसी कराने वाली पार्टी है, लेकिन पार्टी की नीति को इतना पर्सनल कमिटमेंट कौन बनाता है? और वह भी बिना खुद कहे! पर मोदी हैं, तो सब मुमकिन है। 104 की घर वापसी हो चुकी है, और सुना है कि अठारह हजार लोग लाइन में लगे हैं। ट्रम्प से उलझ-उलझकर मोदी जी सवा सात लाख तक का गणित बिठा चुके हैं। विपक्ष अभी रो रहा है, लेकिन आगे-आगे देखिए होता है क्या!
पर थैंक्यू की छोड़िए, विपक्षी तो उल्टा नाक कटने का शोर मचा रहे हैं। हमें कोई बताएगा कि इसमें नाक कटने वाली बात कहां से आ गई? हिंदुस्तानी थे, चोरी-छिपे अमेरिका में घुस रहे थे, ट्रम्प ने पकड़कर वापस भेज दिया। और वह भी हाथ के हाथ—जनवरी के आखिरी हफ्ते में पकड़े गए और फरवरी के पहले हफ्ते में वापस भेज दिए गए।
यह तो मुस्तैदी हुई, तो ट्रम्प जैसी! और मोदी जी को भी इसमें कोई गलत नहीं लगा। विदेश मंत्री जयशंकर ने सही कहा—सब कुछ नियमानुसार हुआ। विपक्ष वाले अब हल्ला मचा रहे हैं, लेकिन जब मनमोहन सिंह के समय भी भारतीयों को अमेरिका से पकड़कर निकाला गया था, तब क्यों चुप बैठे थे? पिछले 15 साल में 18,000 भारतीय इस तरह निकाले गए हैं। इस साल तो सिर्फ 104 ही भेजे गए हैं। आगे और भी भेजे जाएंगे। मोदी जी की गारंटी है!
अगर कुछ लोगों को इसमें नाक कटने की बात लग रही है, तो इसमें मोदी जी क्या कर सकते हैं? विदेश नीति में वैसे भी नाक नहीं फंसानी चाहिए। और अगर नाक कटाने का कोई जिम्मेदार है, तो वे खुद ये लोग हैं। इन्हें जरूरत ही क्या थी अमेरिका जाने की और वह भी बिना कागजों के? मोदी जी ने यहां अमृतकाल का पूरा इंतजाम किया है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन गया, योगी जी यूपी में लगभग रामराज्य ले आए, और मोदी जी ने गुजरात में तो 2002 में ही रामराज्य ला दिया था। भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। बस, पांच ट्रिलियन की इकॉनमी बनने ही वाली है।
फिर भी, ये लोग भागकर अमेरिका क्यों गए? क्या वे 2047 तक इंतजार नहीं कर सकते थे, जब भारत एक विकसित देश बन जाएगा? जल्दीबाज कहीं के! विश्वगुरु की नाक कटवा दी! अच्छा हुआ, हरियाणा वालों ने इन्हें एयरपोर्ट से सीधा जेल भिजवा दिया। ऐसे एंटी-नेशनल्स की जगह अमेरिकी जेल में न सही, भारतीय जेल में ही सही। जेल-जेल मौसेरे भाई!
और ये विरोधी हथकड़ी-बेड़ी की बात पर इतना हल्ला क्यों मचा रहे हैं? हथकड़ी-बेड़ी लगाने से क्या हो गया? अमेरिकी पैदल चलाकर तो नहीं लाए, बाकायदा हवाई जहाज से भेजा है। पर यहां तो फौजी जहाज से भी दिक्कत है! कह रहे हैं, यह तो आतंकवादियों जैसा सलूक है। अरे भई, अवैध प्रवासी थे, अमेरिका ने पकड़कर लौटा दिया। इसमें मोदी जी की क्या गलती?
दरअसल, मोदी जी ने तो बचत कराई! अमेरिका ने सारा खर्चा उठाया, भारत की जेब से एक पैसा भी नहीं लगा। हम तो कहते हैं कि मोदी जी जब अगले हफ्ते ट्रम्प से मिलने जाएं, तो वापसी में सौ-डेढ़ सौ और भारतीयों को साथ लेते आएं। मुफ्त की हवाई यात्रा भी हो जाएगी और विरोधियों को नाक कटने-कटाने का मौका भी नहीं मिलेगा।
आखिर में एक बात और—हथकड़ी-बेड़ी लगाकर फौजी जहाज में भेजे जाने से मोदी जी को शर्माने की जरूरत नहीं। बेशक, यह पहली बार हुआ है। लेकिन यह गर्व की बात है! विश्वगुरु भी तो हम ही हैं, तो कोई भी नया रिकॉर्ड बनेगा, तो सबसे पहले हमारे साथ ही बनेगा। ऐसे ही थोड़ी न डंका बजता है! डंका बजाने के लिए कुछ न कुछ कुर्बानी तो देनी ही पड़ती है।
2. पर डंका बज रहा है!
विपक्ष वाले बात-बात पर मोदी जी का डंका फटने की बात करने लगते हैं। अब देखिए, ट्रम्प साहब ने सौ से ज्यादा भारतीयों को हथकड़ी-बेड़ी डालकर फौजी जहाज में वापस भेज दिया, तो इन्हें इसमें भी मोदी जी का डंका फटता दिखने लगा! कह रहे हैं कि इतिहास में पहली बार भारतीयों के साथ ऐसा हुआ। न नेहरू के समय, न इंदिरा के समय, न राजीव के समय—यह पहली बार हुआ है।
पर ये लोग देख क्या रहे हैं? मोदी जी ने घर वापसी करवाई है, इसे क्यों नहीं देख रहे? जैसे भारतीयों ने पहले कभी हथकड़ियां देखी ही नहीं थीं!
विदेश मंत्री ठीक ही कह रहे हैं—जो कुछ हुआ, नियम के अनुसार हुआ। अमेरिका का नियम कहता है कि अवैध घुसपैठियों को निकाला जाए, सो निकाल दिया। नियम कहता है कि किसी भी साधन से भेजा जा सकता है, सो फौजी जहाज से भेज दिया। नियम कहता है कि उन्हें बंधन में रखा जा सकता है, सो बांधकर भेज दिया। नियम का उल्लंघन कहां हुआ?
अब देखिए, अमेरिका ने कोलंबिया और वेनेजुएला वालों से तो कहा कि खुद खर्चा करके अपने नागरिकों को ले जाओ। लेकिन मोदी जी ने एक पैसा खर्च किए बिना भारतीयों की वापसी करवा दी!
हम तो कहते हैं, मोदी जी जब ट्रम्प से मिलने जाएं, तो दो-चार सौ भारतीयों को अपने साथ ही ले आएं। हथकड़ी-बेड़ी का झंझट भी खत्म और घर वापसी का खर्चा भी नहीं!
3. फतेह का डंका!
आखिरकार, मोदी जी ने दिल्ली फतेह कर ही ली! भगवा पार्टी के हजार करोड़ी दफ्तर के मंच से उन्होंने जीत का ऐलान कर ही दिया।
हालांकि, दिल्ली की जनता ने भगवाईयों को यह मौका देने में अठाईस साल लगा दिए। मोदी जी को तो कम से कम ग्यारह साल का इंतजार कराया ही। पर अब और नहीं! मोदी जी ने दिल्ली फतेह का डंका बजा दिया।
पर इस जीत के लिए मोदी जी और उनकी सरकार ने पांच साल तक दिन-रात मेहनत की। दंगे करवाए, विरोधियों को जेल भेजा, झुग्गी-झोपड़ी वालों को नकद रुपये और साड़ियां बांटी, गुंडागर्दी करवाई, और यहां तक कि मतदान के दिन मोदी जी का कुंभ स्नान टेलीविजन पर चलवाया।
इतना कुछ करने के बाद, अब भले ही दिल्ली वालों का दिल जीता या नहीं, पर सत्ता जरूर जीत ली। और जो जीता, वही सिकंदर! अब मुख्यमंत्री कोई भी बने, लेकिन डंका तो मोदी जी की दिल्ली फतेह का ही बजेगा!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।)
निष्कर्ष:
संपादन से लेख ज्यादा प्रभावी, धारदार और प्रवाहपूर्ण बन गया है। मूल भावना जस की तस रखी गई है, लेकिन भाषा को थोड़ा सुगठित कर दिया गया है।