छत्तीसगढ़

नेतृत्व संकट से जूझ रहा नक्सल संगठन अपने अंतिम पड़ाव की ओर

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फोर्स के लगातार बड़े नक्सली नेताओं को निशाने पर लिये जाने के कारण , और जिसके बाद मिल रही सफलताओं से नक्सलवाद की कमर टूटती दिख रही है।

इसी बीच दुर्दांत नक्सली हिड़मा को घेरने नक्सलगढ़ में सुरक्षाबलों की मजबूत दस्तक ने भी माओवाद संगठन की चूलें हिला दी हैं।
अब जो हालात दिखाई दे रहे हैं, उससे साफ हो रहा है कि नक्सल संगठन इन दिनों बस्तर में नेतृत्व संकट से तो जूझ ही रहा है , नई भृतिगण भी न होने से क्या हो रही रही नक्सलवाद की दशा व दिशा जानिए इस रिपोर्ट से : –

बस्तर में नक्सलवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों की हो रही जबरदस्त कार्रवाई ने माओवादियों के नेटवर्क को गहरी चोट दी है।
अब इस अभियान का केंद्र बिंदु दुर्दांत नक्सली नेता हिड़मा को घेरने और उसकी गतिविधियों पर लगाम कसने और उसे गिरफ्तार करने या मुठभेड़ में मार गिराने पर हो रहा है।

हिड़मा, माओवादियों के शीर्ष नेतृत्व में शामिल है, दंतेवाड़ा और सुकमा जैसे इलाकों में कई बड़े हमलों का मास्टर माइंड माना जाता है।
हालिया रिपोर्ट्स से संकेत मिलते हैं कि माओवादी संगठन अब नेतृत्व संकट का सामना कर रहा है। सुरक्षाबलों व्दारा बड़े नेताओं को निशाना बनाने और नकजलियों के विरुद्धअभियान तेज करने के बाद संगठन की रीढ़ टूटती दिख रही है।

हिड़मा के गांव पूवर्ती पर दबाव वहां कैंप खोलकर हिड़मा के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन ने उसके क्षेत्रीय प्रभाव को काफी हद तक कमजोर कर दिया है।

अधिकारियों की रणनीति: उर बस्तर जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों को गुप्त सूचनाओं और सटीक रणनीति के आधार पर कार्रवाई करने की हिदायतों की वजह से माओवादी संगठन के खेमे में खलबली मच गई है।

नए नेतृत्व की कमी:

कई वरिष्ठ माओवादी नेताओं के मारे जाने या गिरफ्तार होने के बाद संगठन में वैचारिक और रणनीतिक नेतृत्व की कमी हो रही है।
सुरक्षाबलों की रणनीति

सुरक्षाबलों ने नक्सल प्रभावित इलाकों में “स्मार्ट और समन्वित रणनीति” अपनाई है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं :

स्थानीय समर्थन हासिल करना : आदिवासी समुदायों के साथ संवाद बढ़ाकर माओवादियों का आधार कमजोर करना।
गुप्त सूचना तंत्र मजबूत करना : खुफिया तंत्र की मदद से माओवादी गतिविधियों पर नजर रखना।
आधुनिकीकरण: अत्याधुनिक तकनीक और उपकरणों का उपयोग।

इधर फोर्स ने इंटर स्टेट कोऑर्डिनेशन पर भी फोकस करते हुए जोर दिया है ताकि नक्सली नए ठिकाने न तैयार कर पाएं।
ओड़िशा, मध्यप्रदेश ,तेलंगानाऔर महाराष्ट्र की फोर्स के साथ समन्वय स्थापित किए जाने के भी सुखद परिणाम सामने आए हैं। बस्तर में पदस्थ अफसरों की बेहतर रणनीति की वजह से पिछले
10 महीनों में 197 नक्सली मार गिराए गए।

बस्तर में चल रही सुरक्षा बलों की कार्रवाई ने माओवादियों की हालत पतली कर दी है ।
हालांकि इसे पूरी तरह खत्म करने के लिए निरंतर प्रयास और स्थानीय लोगों का समर्थन आवश्यक होगा। नेतृत्व संकट और गिरते मनोबल से जूझ रहे नक्सलियों के लिए यह बड़ा झटका माना जा रहा है।

इस वर्ष मुठभेड़ में मारे गए शीर्ष नक्सली नेता –

19 जनवरी को नेंड्रा में डीविजनल कमेटी सदस्य (डीवीसीएम) विनोद कर्मा सहित 3 नक्सली ढेर।

16 अप्रैल को कांकेर के कलपर में डीवीसीएम शंकर राव, ललिता, शंकर राव की पत्नी रंजीता, एमएमसी जोनल कमेटी सदस्य सुरेश सहित 29 नक्सली ढेर किए।

30 अप्रैल को नारायणपुर के टेकामेटा में डीवीसीएम जोगन्ना व विनय, पीपुल्स पार्टी सदस्य सुष्मिता व जोगन्ना की पत्नी एसीएम संगीता सहित 10 को मार गिराया

15 जून को नारायणपुर के कुतुल में डीवीसीएम सुदरु, वर्गेश, ममता व पीपीसीएम समीरा, कोसी, मोती सहित 8 को मार गिराया।

3 सितंबर को दंतेवाड़ा के लोहागांव मुठभेड़ में दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (डीकेएसजेडसी) सदस्य रणधीर सहित 9 को ढेर कर दिया।

23 सितंबर को सुकमा के चिंतलनार में शीर्ष नक्सली नेता डीकेएसजेडसी रुपेश उर्फ कोलू उर्फ सांभा व डीवीसीएम जगदीश उर्फ रमेश व पीपीसीएम संगीता को मार गिराया।

4 अक्टूबर को नारायणपुर के थुलथुली में शीर्ष नक्सली डीकेएसजेडसी नीति, कंपनी कमांडर नंदू मंडावी, डीवीसीएम सुरेश, मीना, महेश सहित 38 नक्सली को ढेर किया।

8 नवंबर को बीजापुर जिले के रेखापल्ली में डीवीसीएम जोगा माड़वी सहित 3 नक्सली ढेर।

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