छत्तीसगढ़

दरभा की महिलाओं के लिए टॉयलेट एक प्रेम कथा नहीं उनके रोजमर्रे की व्यथा है,

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सालों से बाहर खुले में शौच और अचानक किसी पुरुष के आ जाने पर मुंह फेर बदन खुला रखना न केवल शर्मिंदगी का कारण है बल्कि उनकी इज्जत व स्वाभिमान की भी बात है ।
रुपहले पर्दे की हिट मूवी टॉयलेट एक प्रेम कथा। फिल्म में खुले में शौच को लेकर जिस तरह से हीरो-हीरोइन बगावत कर देते हैं, उसके बाद परिणाम सुखद आता है।

किन्तु बस्तर के दरभा ब्लाक की लेंड्रा पंचायत की महिलाओं ने भी अब टॉयलेट के लिए कमर कस ली है। देखना यह है कि उनकी मुहिम क्या रंग लाती है।

हालांकि फिल्म  लेंड्रा पंचायत की महिलाओं ने नहीं देखी, लेकिन अपनी मौलिक जरुरत के लिए वे अब मुखर हो रही हैं। 10 साल से शौचालय की मांग कर रही महिलाएं 25 किलोमीटर दूर जगदलपुर पहुंच गई और कलेक्टर से मिलकर अपनी व्यथा बताई।

दयमती बघेल, परेशान महिला, लेंड्रा गांव (लाल ब्लाउज, बॉर्डर वाली साड़ी)

गांव की महिलाएं अब सिर्फ टॉयलेट से संतोष नहीं करने वालीं। उनका कहना है कि पीने के लिए साफ पानी और बच्चों के लिए आंगनबाड़ी भवन भी उन्हें चाहिए।
अपनी बातें बस्तर कलेक्टर के समक्ष वे रख चुकी हैं और मिले आश्वासन के बाद अब इंतजार में हैं कि कब उनके गांव में ये सारा निर्माण करवाया जाएगा। वैसे इनके धैर्य की दाद देनी पड़ेगी। 10 साल कम नहीं होते।

मोती बघेल, लेंड्रा की महिला (पीली साड़ी)

बस्तर कलेक्टर ने इन महिलाओं को भरोसा दिलाया है कि जल्द ही वे टॉयलेट न बन पाने की वजह का पता लगाएंगे और जितनी जल्दी हो सका, उनके गांव में टॉयलेट तैयार करवा दिया जाएगा। पीने के पानी के लिए भी पाइप लाइन बिछाने का जो काम पहले से चल रहा है, उसमें गति लाने के निर्देश वे देंगे।

हरिस एस, बस्तर कलेक्टर

अक्षय कुमार और भूमि पेडनेकर अभिनीत फिल्म में तो महिलाओं की जिद के आगे परिवार-सरकार को झुकता हुआ दिखाया गया था, लेकिन वो फिल्म थी और लेंड्रा की महिलाओं की समस्या हकीकत।
क्या अफसर, क्या नेता, 10 साल से गुहार लगा रही महिलाओं की अब तक तो किसी ने नहीं सुनी, लेकिन नन्हें बच्चों को गोद में लिए तपती दुपहरी में कलेक्टोरेट पहुंची महिलाओं की व्यथा शायद सिस्टम के कठोरपन में नरमी पैदा कर दे।

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