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ऋग्वेद शिक्षा देती है कि ‘दान देते हुए पुरुषों का धन क्षीण नहीं होता। दान न देने वाले पुरुष को अपने प्रति दया करने वाला नहीं मिलता’।

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सेवा सिद्ध सफलता,
सेवा विजय अपार।
सेवा से मेवा मिले,
सेवा से मिले करतार।

महाभारत ग्रंथ के रचयिता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास जी कहते है कि ‘मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान – यह सज्जनों का सनातन धर्म है’।

किसी की क़दर करनी हैं तो,
उसके जीते जी करो,
मरने पर तो नफरत करने वाले भी कह देते हैं,
बंदा बहोत अच्छा था

20 बार रक्तदान कर चुके रक्तदानी
युद्धवीर सिंह लांबा,
वीरों की देवभूमि धारौली,
झज्जर – कोसली रोड, हरियाणा
9466676211

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