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संगीत सम्राट महाराजा चक्रधर सिंह जी की ऐतिहासिक विरासत है चक्रधर समारोह

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जब से समारोह का प्रशासनिक करण हुआ तब से ही राजपरिवार का अपमान भी होना शुरू हो गया था

रायगढ़,,कहने को तो रायगढ़ शहर में प्रति वर्ष आयोजित किया जाने वाला विश्व विख्यात चक्रधर समारोह रायगढ़ रियासत के महान संगीत सम्राट महाराजा चक्रधर सिंह को समर्पित होता है।

लेकिन रायगढ़ राज परिवार के सदस्यों की मानें तो इस सरकारी समारोह के पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और ही होती है। पूरे सात दिन चलने वाले चक्रधर समारोह में सत्ताधारी पार्टी से जुड़े कुछ राजनितिक हस्तियों के अलावा प्रदेश और जिला स्तर के प्रशासनिक अधिकारियों की चापलूसी और शक्ति प्रदर्शन का केंद्र बन जाता है कार्यक्रम स्थल।

जबकि इस समारोह का आयोजन रायगढ़ के तत्कालीन महाराजा चक्रधर सिंह के नाम पर होता है। जो संगीत,नृत्य और साहित्य के ज्ञान के लिए पूरे भारत में विख्यात थे। आपका शासन काल समकालीन संगीत और कला के साधकों के लिए स्वर्णिम काल कहा जाता था। तब से रायगढ़ रियासत में प्रतिवर्ष सितंबर माह के प्रथम और द्वितीय सप्ताह में चक्रधर समारोह का आयोजन होता रहा है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा ऐतिहासिक ‘चक्रधर समारोह’ का आयोजन किया जा रहा है।

चक्रधर समारोह का अपना ऐतिहासिक महत्व भी है। आजादी के पहले रायगढ़ एक स्वतंत्र रियासत थी, जहां सांस्कृतिक एवं साहित्यिक गतिविधियों का फैलाव बड़े पैमाने पर था। प्रसिद्ध संगीतज्ञ कुमार गंधर्व और हिंदी के पहले छायावादी कवि मधुकर पांडेय भी रायगढ़ के ही रहने ही थे।

सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से जब तत्कालीन रियासतों का भारत गणराज्य में विलीनीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई थी। तब रायगढ़ रियासत के राजा चक्रधर सिंह विलीनीकरण के सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर करने वाले पहले राजा थे। इस लिहाज से रायगढ़ के राजपरिवार का सरकारी सम्मान ऐतिहासिक चक्रधर समारोह के दौरान पूर्ण प्राथमिकता से किया जाना चाहिए था। परंतु ऐसा कभी नहीं किया गया।

हर साल की तरह इस वर्ष भी 39 वा चक्रधर समारोह 7 सितंबर से रामलीला मैदान में प्रारंभ हुआ। लेकिन आयोजन से दो दिन पहले ही रायगढ़ राजघराने की राजमाता कुमुदिनी सिंह ने जिला प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए थे। उनका कहना था कि समारोह में उनके परिवार और उत्तराधिकारी युवराज सतबीर सिंह को प्रशासन की तरफ से उचित सम्मान नहीं दिया जा रहा है।

इन्हीं बातों का ध्यान आकर्षण कराने वर्तमान राजा सतबीर बहादुर सिंह राजमाता कुमुदनी सिंह जी ने चक्रधर मोती महल में प्रेस वार्ता कर अपनी व्यथा रखी थी ! उसका असर तो दिखा वर्तमान राजा सतबीर बहादुर सिंह को सादर आमंत्रण कार्ड भेजा गया।

लेकिन 7 सितम्बर कि संध्या चक्रधर समारोह के उद्घाटन समारोह में राजा साहब, उनकी माता, ओर कुमार अभि उदय बहादुर सिंह, समारोह में पहुंच तो गए। लेकिन राजा साहब को मंच में दीप प्रज्ज्वलित करते समय न बुलाया गया, न मंच में आसीन होने दिया। इससे यही साबित होता है, शासन द्वारा आयोजित समारोह में सत्ताधारियों कि कुर्सी बोलती है, ओ जिसे चाहे मंच पर आसीन कर दे। चाहे उसका सरोकार कला जगत  से दूर दूर का नाता हो या नही कोई फर्क नही पड़ता है। अब देखना है, महाराजा चक्रधर सिंह, महाराजा ललित कुमार सिंह,

स्वर्गीय राजा लोकेश बहादुर सिंह, स्वर्गीय राजा लोकेश बहादुर सिंह सुपुत्र राजा सतबीर बहादुर सिंह,को अखिल भारतीय स्तर के चक्रधर समारोह में सहसम्मान मंच में बुलाकर कार्यक्रम कि गरिमा बढ़ते है या संगीत सम्राट चक्रधर सिंह जी कि संगीत प्रवाह को उन्ही के वंशजों के अपमान कि घुट पिलाकर कैसे सफल आयोजन कि वाही लूट सकते है इस पर पुरी रायगढ़  जिले के सांस्कृतिक धानी वासियों कि टक टिक निगाहें लगी है।

रायगढ़ चक्रधर समारोह में विशेष ध्यान देना चाहिए। क्योंकि ऐसी गलतियां कार्यकर्मों को शोभा पर सवालिया निशान लगती है। हमें उम्मीद है प्रोटोकाल अधिकारी राजमाता कुमुदनी सिंह कि दर्द को समझेगी ओर तत्काल राजा सतबीर बहादुर सिंह जी को शेष बचे दिनों एवं समापन अवसर पर सम्मान प्रदान कर प्रदान उनका हक उन्हें प्रदान करेगी या नहीं?

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