छत्तीसगढ़

काला सोना वाली जमीन पर बढ़ा विवाद, विस्थापितों का गुस्सा उफान पर

Advertisement

प्रतीक मल्लिक ✍️

धरमजयगढ़—कोयला खदानों के विस्तार के खिलाफ ग्रामीणों का कड़ा विरोध जारी


केंद्र व राज्य सरकार के भूमि आवंटन के बाद बढ़ा तनाव

धरमजयगढ़। रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ तहसील में कोयला खदानों के लिए भूमि आवंटन किए जाने के बाद विस्थापन का संकट गहरा गया है। केंद्रीय कोयला मंत्रालय द्वारा नगर पंचायत क्षेत्र से लेकर S.E.C.L., K.P.C.L., नीलकंठ, P.R.A और इंद्रमणी पावर लिमिटेड को बड़े पैमाने पर भूमि आवंटित की गई है।
डबल इंजन सरकार—केंद्र व राज्य—दोनों स्तरों से इन परियोजनाओं को स्वीकृति मिलने के बाद स्थानीय ग्रामीणों में असंतोष तेजी से बढ़ गया है।


खदान क्षेत्र तहसील कार्यालय से 10–14 किमी के दायरे में, ओपन कास्ट प्रोजेक्ट पर विरोध तेज

इन पांचों कंपनियों का संचालन क्षेत्र तहसील कार्यालय से मात्र 10–14 किलोमीटर की दूरी में आता है। इनमें से S.E.C.L. एक शासकीय कंपनी, जबकि K.P.C.L. कर्नाटक सरकार का उपक्रम है। सभी प्रस्तावित माइंस ओपन कास्ट हैं, जिससे बड़े पैमाने पर विस्थापन की आशंका है।
ग्रामीणों का कहना है कि ओपन माइंस शुरू होने से जमीन, घर, जल स्रोत और जीविकोपार्जन पर सीधा असर पड़ेगा।


परूंगा कोल माइंस की जनसुनवाई में भारी विरोध, तारीख स्थगित

पिछले माह परूंगा कोल माइंस की पर्यावरणीय जनसुनवाई में प्रभावित ग्रामीणों ने भारी विरोध प्रदर्शन किया। बढ़ते तनाव को देखते हुए प्रशासन ने निर्धारित तिथि पर जनसुनवाई आगामी आदेश तक स्थगित कर दी।
इसके बाद अन्य प्रस्तावित कोयला परियोजनाओं को लेकर भी ग्रामीणों का विरोध और अधिक मजबूत हो गया है।


पहले दिए गए भूमि आवंटन पर भी उठे सवाल

ग्रामीणों में नाराज़गी का एक बड़ा कारण यह है कि सरकारी और अर्ध-सरकारी कंपनियों को भूमि वर्ष 2014 व 2019 में ही आवंटित कर दी गई थी, लेकिन स्थानीय स्तर पर इसका विरोध उस समय दर्ज नहीं हुआ था।
20 अगस्त 2022 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के धरमजयगढ़ प्रवास के दौरान प्रभावित क्षेत्रों के जनप्रतिनिधियों द्वारा सीसीएल फुल ब्लॉक को निरस्त करने की मांग रखी गई थी। विपक्ष के दबाव के बावजूद इसे निरस्त करने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी।


जल–जंगल–जमीन बचाने की मुहिम, ग्राम सभाएँ प्रस्ताव पास कर रहीं

सी.सी.एल. द्वारा धारा 23 के तहत सर्वे की तैयारी के बीच प्रभावित ग्रामों में PESA एक्ट 1996 के तहत लगातार ग्रामसभाएँ आयोजित की जा रही हैं।
ग्रामसभा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कर रही है कि—
“कंपनी हमारी भूमि में खदान न खोले, हम विस्थापन नहीं चाहते।”
ग्रामीण स्पष्ट कर चुके हैं कि उनके लिए जल, जंगल और जमीन केवल संसाधन नहीं, बल्कि जीवन आधार हैं।


कंपनी पर भरोसे की कमी—मुआवजा व पुनर्वास को लेकर असमंजस

स्थानीय किसानों और ग्रामवासियों का कहना है कि जब तक कंपनी प्रबंधन—

  • उचित मुआवजा,
  • विस्थापितों के स्थायी रोजगार,
  • निजी भूमि दर,
  • और पुनर्वास नीति
    पर स्पष्ट, लिखित भरोसा नहीं देता, तब तक खदान शुरू करना आसान नहीं होगा।
    कुछ ग्रामीणों का कहना है कि यदि कंपनियाँ प्रभावितों को विश्वास में नहीं लेतीं, तो “काला सोना निकालने में वर्षों लग जाएंगे, या कंपनी प्रोजेक्ट ही छोड़ देगी।”

Advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button