कोसीर गांव का चर्चित 05 दिवसीय मड़ई मेला 12 दिसंबर से अंचल में मेला को लेकर उत्साह मेला को उत्सव के रूप में पहचान देने की है जरूरत

“मेला स्थल इंदिरा नगर में बड़े झूले, मौत कुंआ – सिनेमा छोटे बड़े दुकान लग रहे 12 दिसम्बर से 16 दिसम्बर तक चलेगी मेला “
लक्ष्मीनारायण लहरे
सारंगढ़ । सारंगढ़ जिला मुख्यालय का ग्राम कोसीर मातृ रायगढ़ जिले का बड़ा गांव है। सारंगढ़ से महज 16 किलो मीटर दूर पश्चिम दिशा में स्थित है ।कोसीर इतिहास की दृष्टि से ऐतिहासिक नगरी है यहां मां कौशलेश्वरी देवी की पुरातात्विक मंदिर है जो कोसीर गांव के हृदय स्थल पर है । कोसीर गांव का मड़ई मेला चर्चित है । लोगों की माने तो कोसीर मड़ाई मेला के बाद पूरे अंचल में शादी – विवाह ,गवना – पथोनी का सिलसिला शुरू हो जाता है पूरे अंचल में कोसीर मड़ई मेला का इंतजार रहता है यह त्यौहार से कम नही है ।कोसीर मड़ाई मेला का एक अलग पहचान है यहां दूर – दराज से लोग मेले का आनन्द उठाने पहुंचते है ।

मेला स्थल में एक दिन पहले से ही मेला में लगाने वाले दुकाने लग जाती है इस वर्ष मेला स्थल छोटे बड़े झूले , सिनेमा , मौत कुंआ लग रहा है जो आकर्षण का केंद्र बना है ।कोसीर में मेला साप्ताहिक बाजार शुक्रवार को होता है उसी दिन मेला पहले भरता था ।पिछले कुछ वर्षों से यहां बदलाव देखने को मिल रहा है और 05 दिवसीय मेला का आयोजन हो रहा है । ब्यपार के दृष्टि से यहां लोग पहुंचते है और अच्छी ब्यपार होती है । इस वर्ष यह मेला दिसम्बर माह के 12 को भर रहा है जो 16 दिसम्बर तक रहेगी पहले मुख्यत एक दिन का मेला भरता था पर यह मेला अब 05 दिन तक आयोजन हो रहा है ।

मड़ई मेला में पूरे अंचल के लोग पहुंचते है अच्छा खासा भीड़ होती है रात में लोग घूम फिर कर सिनेमा का आनन्द लेते हैं वही मेले में कोसीर ग्राम पंचायत और कोसीर थाना की ओर से सहायता केंद्र होते है । कोसीर मडाई मेला शुक्रवार की शाम 04 बजे से भरना शुरू होता है और झूले ,सिनेमा ,इसी समय पर शुरू होते है ।यह मेला मड़ई मेला है इस मेले में पूरे अंचल के यादव समाज के बंधु अपनी पारम्परिक भेष भूषा के साथ ढोल नगारे बाजे गाजे के साथ नृत्य करते है जिसे राउत नाच भी कहते है इस दिन पूरे सुबह से शाम तक घूम घूम कर गांव में अपना नृत्य दिखाते है और शौर्य का प्रदर्शन करते है ।मडई मेला को लेकर पूरे गांव और अंचल में उत्साह का माहौल है।
कोसीर मड़ई मेला की इतिहास – कोसीर मड़ई मेला की इतिहास पर गौर करें तो सारंगढ़ रियासत से इसकी कहानी जुड़ी हुई है सारंगढ़ रियासत एक स्वतंत्र रियासत रहा । गिरीविलास पैलेश के राजा रहे जवाहिर सिंह और नरेश सिंह की बात करें तो उस समय इस रियासत में पूरे सारंगढ़ के यादव समाज के द्वारा सारंगढ़ में इक्कठे होकर अपनी शौर्य का प्रदर्शन करते थे इस प्रदर्शन में शौर्य के दौरान लोग आपस में लड़ते हुए मर जाते थे और उन्हें राजा परिवार द्वारा प्रोत्साहन मिलता था ।ऐसा इतिहासकार बताते हैं ।
कोसीर और आस पास के लोग अपने बहुत तादात में पहुंच कर अपना शौर्य प्रदर्शन किए और जीत गए तब से सारंगढ़ के रियासत के राजा ने कहा कि अब यह मेला मड़ई कोसीर में होगा तब से यहां मेला भरता है ऐसा इतिहास छुपा है । यादव समाज आज भी मेला में तलवार , बरछी, लाठी ,डाल लेकर अपना शौर्य का प्रदर्शन करते हैं । यहां का मड़ई मेला 200वर्ष से भी पुराना हैं ।
पिछले दो दशकों से यहां यादव समाज के लोग मड़ई मेला में अपनी शौर्य प्रदर्शन को लेकर अब दूर हो गए हैं जिसकी संरक्षण और संवर्धन की जरूरत है । मेला पहले से ज्यादा विकास कर लिया है लोग अब यहां ब्यपार करने पहुंचते हैं और जो पारंपरिक राउत नाचा नाचते थे वह अब लगभग अंतिम सांसे ले रहा है जिसे जीवित रखने की आज अब जरूरत है । कोसीर गांव के मड़ई मेला को उत्सव के रूप में पहचान देने की जरूरत है ।





