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जितना भी कोई जोर लगा ले नहीं रुकेगा अडानी

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विकास के नाम पर विनाश कर रही अडानी कंपनी, मुड़ागांव के बाद अब पुरुंगा में अडानी की पड़ी वक्र दृष्टि

अडानी यह नाम सुनते ही लोग सिहर जाते हैं। क्योंकि रायगढ़ में जहां भी यह कंपनी जाती है विनाश ही करती है। पुसौर के बड़े भंडार हो या फिर तमनार का मुड़ागांव। जुलाई में तो इस नामी कंपनी का साथ तो जिला प्रशासन ने भी खूब दिया। तभी तमाम विरोधों के बाद अडानी अपनी खदान शुरू कर दिया। किस कीमत पर इससे कंपनी को कोई मतलब नहीं क्योंकि इसके आका यहां नहीं  किसी सुकून वाली जगह मौज से रहते हैं। इनके झांसे में आते हैं स्थानीय जो वर्तमान में चंद पैसे के लिए भविष्य से खेल जाते हैं।

पुरुंगा माइंस  के लिए भी अडानी के हौसले बुलंद है। कुछ दिन पहले जिला प्रशासन ने ग्रामीणों और कंपनी के बीच सुलह जैसी खबरें प्रकाशित की। पहली बार ऐसा देखा जा रहा है जब एक निजी कंपनी के लिए जिला प्रशासन नतमस्तक है। जबकि सच्चाई यह है कि माइंस को लेकर अभी भी गतिरोध बरकरार है। कंपनी के प्रलोभनों और ऊपर से आए दबाव के बीच नेता भले ही पीछे हट गए हों पर अपना सबकुछ दांव पर लगाने वाली जनता अड़ी है।

विदित हो कि पुरुंगा माइंस के लिए होने वाली जनसुनवाई पर अब भी हंगामा मचा हुआ है। स्थानीय नेताओं से अलग ग्रामीणों ने एकजुट होकर जनसुनवाई के विरोध में आवाज उठाई है। अंडरग्राउंड माइंस होने की वजह से इसके दुष्प्रभाव अलग तरह के हैं। ग्रामीणों तक सही जानकारी नहीं पहुंच रही है। पुरुंगा कोल ब्लॉक का आवंटन अडाणी ग्रुप की कंपनी अंबुजा सीमेंट्स को हुआ है। पुरुंगा कोल ब्लॉक में इसलिए अंडरग्राउंड माइनिंग किया जा रहा है क्योंकि स्ट्रिपिंग रेशियो बहुत ज्यादा है। ओपन कास्ट होता तो मुआवजे के अलावा खनन की लागत बहुत ज्यादा होती। 11 नवंबर को इसके लिए जनसुनवाई होनी है। इससे पहले ही ग्रामीण भूमिगत खदान से होने वाले नुकसान के चलते विरोध कर रहे हैं।

पहले इस कोल ब्लॉक का आवंटन छग नेचुरल रिसोर्सेस प्रालि कंपनी को किया गया था। बाद में स्वामित्व अंबुजा सीमेंट को ट्रांसफर किया गया है। छग नेचुरल रिसोर्सेस से अंबुजा सीमेंट को ओनरशिप ट्रांसफर की गई है। छाल तहसील के कोकदार, तेंदुमुड़ी, पुरुंगा और समरसिंघा गांव की 870 हेक्टेयर भूमि इस माइंस के लिए अधिग्रहित की जानी है। सालाना 2.25 मिलियन टन कोयला उत्पादन होना है। चार गांवों में 869 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण होगा।

इसमें से 621.33 हे. वन भूमि, 26.89 हे. शासकीय भूमि और 220 हे. निजी भूमि है। चारों गांवों में छोटे-छोटे तालाब, बोरवेल आदि हैं। बीच में प्रशासन की मध्यस्थता से आपस में बातचीत हुई लेकिन आंदोलन दोबारा खड़ा हो गया है। गांवों में लगातार बैठकों का दौर चल रहा है। ग्रामीणों की जमीन इससे प्रभावित नहीं हो रही है। अंडरग्राउंड माइंस के ग्रेट के पास कुछ जमीन ली जाएगी। मुआवजा का प्रावधान भी नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि भूजल स्रोत और पीएमजीएसवास सडक़ बर्बाद हो जाएगी।

हर माइंस का हो रहा विरोध
किसी भी व्यक्ति को उसकी जड़ों से, उसकी पैतृक संपत्ति, पैतृक आवास से बेदखल किया जाए तो विरोध स्वाभाविक है। रायगढ़ जिले में किसी भी कंपनी ने अपने कार्यों से जनता के बीच भरोसा नहीं जगाया है। यही कारण है कि अब किसी भी कंपनी पर लोग भरोसा नहीं कर रहे हैं। वेदांता, जेएसपीएल, जेपीएल, अंबुजा सबकी कोल माइंस का विरोध हो रहा है।

अडानी ने की लोकतंत्र की हत्या
किसी का विरोध करने की जितनी व्यवस्था लोकतंत्र ने दी है उसी आधार पर प्रभावित गांव के लोग चल रहे हैं। लेकिन अडानी कंपनी ने शुरू से ही दमनात्मक रवैया अपनाया। मुड़ागांव के ग्रामीणों ने जब बताया कि जंगल काटने के लिए ग्राम सभा हुई ही नहीं है तो कंपनी फर्जी ग्राम सभा का दस्तावेज तैयार किया। ग्रामीण कटाई और मुआवजा के लिए नहीं माने तो अडानी के गुर्गे ग्रामीण बनकर कंपनी का सर्मथन करने संबंधित विभाग पहुंच गए।

जिन-जिन बड़े लोगों ने विरोध किया उसे अपने हिसाब से सेट कर लिया। कई नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने विरोध का दिखावा किया और अडानी कंपनी ने उन्हें साट कर कईयों को साटने का भी कार्य किया। कंपनी के विरोध में मामले चल रहे हैं पर कंपनी ही लोकतंत्र की हत्या कर मनमानी में व्यस्त है। यही पैटर्न अब अडानी के गुर्गे पुरुंगा में अपना रहे हैं।

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