छत्तीसगढ़

राखड़ में धँसी जिंदगी: फ्लाई ऐश के गलत निपटान ने मवेशी को मरने के कगार पर पहुँचा दिया, प्रशासन मौन क्यों

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पूँजी की चमक और सिस्टम की चुप्पी … पढ़े पूरी खबर और देखे वीडियो

रायगढ़/पुसौर। शोषण और लालच के गहरी गठजोड़ ने एक बार फिर बेबस जानवरों को अपनी चपेट में ले लिया है। कोड़ातराई-पुसौर मार्ग पर फ्लाई ऐश के अवैध और अनियमित डंपिंग ने पर्यावरण ही नहीं, अब जीवन को भी निगलना शुरू कर दिया है। बरसात के पानी से दलदल में तब्दील हुए राखड़ के ढेर में एक बेजुबान गौमाता फँस गई और इस पूरे हादसे के पीछे वही बहुपरिचित ‘लिफाफा तंत्र’ है, जो काग़ज़ी NOC लेकर ज़मीन को कब्रगाह में बदलता आ रहा है।

सेठ-साहूकारों ने शासन-प्रशासन की आँखों में धूल झोंकते हुए मनमाने ढंग से फ्लाई ऐश डंप करने की खुली छूट ले ली है। नियमानुसार इस राखड़ को वैज्ञानिक तरीके से निपटाना ज़रूरी है, मगर यहाँ रेत-मिट्टी से ढँककर उसे ‘गायब’ कर दिया जाता है। सड़कों के किनारे और आम ज़मीन पर कई ट्रॉली राख को यूँ ही फेंक दिया गया और प्रशासन ने महीनों से आँखें मूँद रखी हैं। बेजुबान मवेशी को जब दलदली राख में फँसा पाया गया, तब कोड़ातराई के युवाओं ने सामाजिक जिम्मेदारी का परिचय देते हुए तीन घंटे तक संघर्ष कर गौमाता को बचाया। यह वह काम था, जो शासन या किसी जिम्मेदार संस्था को करना चाहिए था मगर वहाँ तो नज़रें फेरकर निकल जाना आम बात बन चुकी है।

कहां हैं जिम्मेदार
इस मार्ग से रोजाना सैकड़ों वाहन गुजरते हैं, जिनमें अधिकारी, ठेकेदार, सामाजिक नेता सब शामिल हैं मगर इस राख की दलदल और जानवर की तड़पती हालत को देखकर भी वे अनदेखा कर निकल गए। क्या प्रशासन तब जागेगा जब कोई इंसान इस दलदल का शिकार होगा? या पूँजी की चमक के आगे सिस्टम की चुप्पी साध रखी है…?

बहरहाल यह सिर्फ एक जानवर की बात नहीं है, यह सिस्टम के सड़ने की कहानी है। जब तक फ्लाई ऐश के निपटान को लेकर कठोर निगरानी और जवाबदेही तय नहीं की जाएगी, तब तक यह जहरीली राख ज़मीन ही नहीं, ज़िंदगियाँ भी निगलती रहेगी।

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