छत्तीसगढ़

विराट व्यक्तित्व की अंतिम विदाई

15 लाख से अधिक लोगों ने अपने महान नेता को दी थी अन्तिम विदाई

आज के दिन याने 27 मई 1964 को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद जब 29 मई को उनकी अंतिम यात्रा दिल्ली की सड़कों से निकली. तब”न्यूयार्क टाइम्स” ने इस मौके पर जो खास रिपोर्टिंग की थी


उसके अनुसार

नेहरू जी की अंतिम यात्रा
तीनमूर्ति भवन स्थित प्रधानमंत्री आवास से शुरू होकर राजघाट तक पहुंची.*छह मील की अंतिम यात्रा में दिल्ली की सड़कों पर 15 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ का जमा होना वो भी नम आंखें लिए,,यह बताने के लिहाज से काफी थी, कि वो कितने लोकप्रिय नेता थे

पूरी दिल्ली में “नेहरू जी अमर रहें ” नारे गूंज रहे थे. फूलों की वर्षा हो रही थी

एक खुले वाहन पर नेहरू जी का पार्थिव शरीर रखकर छह मील की अंतिम यात्रा और लाखों लोगों को उनके प्रिय नेता के अंतिम दर्शन कराकर.यमुना नदी के किनारे राज घाट में पुरे राजकिय सम्मान के साथ पंडीत जी का अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ था


यद्यपि नेहरू जी के महान जीवन और बहुमुखि व्यक्तित्व से जुड़ी कई बाते अविस्मरणीय है,,परंतु एक विशेष घटना का अंश यह बताता है, कि आसान नहीं है पंडित नेहरू का विकल्प खोज पाना

पंडित जवाहर लाल नेहरू एक बार इलाहबाद में कुंभ के मेले में गए थे। वहां प्रधानमंत्री के आगमन की बात सुनकर आम जनता का मजमा उमड़ पड़ा, तभी नेहरू जी की कार लोगों की भीड़ के बीच धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। वहां लगी भीड़ नेहरू जी को देखने के लिए उतावली हो रही थी। उनकी एक झलक दिखते ही ‘जवाहरलाल नेहरू की जय’ के नारे गूंजने लगते।

तभी वहां अचानक एक वृद्ध महिला भीड़ को चीरते हुए नेहरू जी की कार के सामने पहुंची और जोर-जोर से चिल्लाने लगी, ‘अरे ओ जवाहर, कहां है तू? सुन मेरी बात, तू कहता है न कि आजादी मिल गई है, किसे मिली है आजादी? तुम जैसे मोटर में घूमने वालों को ही आजादी मिली होगी, हम जैसे गरीब लोगों को कहां? देख, मेरे बेटे को एक नौकरी तक नहीं मिल रही हैं। अब बता कहां है आजादी?’

उसकी बात सुनकर नेहरू जी ने तुरंत कार रुकवाई, वे कार से उतरे और उस वृद्ध महिला के सामने जाकर हाथ जोड़कर खड़े हो गए और विनम्र स्वर में बोले, ‘मां जी! आप पूछ रही हैं कि आजादी कहां हैं? क्या आपको आजादी नहीं दिख रही? आज आप अपने देश के प्रधानमंत्री को ‘तू’ कहकर संबोधित कर रही हैं, उसे डांट रही हैं, आप क्या पहले ऐसा कर सकती थीं? अपनी शिकायत लेकर आप बेहिचक मेरे सामने चली आई, और
आपने अपने देश के प्रधानमंत्री का गिरेबान पकड़कर सवाल पूछ लिया,, यही तो असली आजादी है।

नेहरू जी की विनम्रता देखकर और उनकी बात सुनकर वृद्धा का गुस्सा गायब हो गया था!!

नेहरू जी मुस्कराए वृद्धा की तरफ देखे और आगे बढ़ गए!!

इतना बड़ा क़द था भारत के
प्रथम प्रधानमंत्री आदरणीय नेहरू जी का।

आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें शत-शत नमन।

नितिन सिन्हा
संपादक
ख़बर सार

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