छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ का गोवा कहे जाने वाला पर्यटन स्थल कोरबा के सतरेंगा पर्यटकों के लिए बंद

कोरबा। छत्तीसगढ़ में अपने खूबसूरती के लिए छत्तीसगढ़ के गोवा के तौर पर पहचाने जाने वाले कोरबा के सतरेंगा में जलस्तर घट गया है। पिछले कई वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है। जब सतरेंगा का जलस्तर इतना कम हो गया कि यहां के कॉटेज को पर्यटकों के लिए बंद करना पड़ गया।

छत्तीसगढ़ में जब कांग्रेस की सरकार थी, तब के सीएम भूपेश बघेल यहां आए थे। तत्कालीन कलेक्टर किरण कौशल के कार्यकाल में यहां विश्व स्तरीय वॉटर स्पोर्ट्स और अन्य सुविधाएं विकसित करने की योजना बनी थी। सतरेंगा को संक्षिप्त तौर पर हवाई मार्ग से भी जोड़ने की बात कही गई थी। पर्याप्त जलराशि होने से यहां गोवा के तर्ज पर क्रूज उतारने का भी प्लान था। लेकिन अब तक यहां दावों के अनुसार सुविधाएं विकसित नहीं की गई।

मनमोहक पर्यटक स्थल सतरेंगा मिनीमाता बांगो बांध के पानी का डुबान क्षेत्र है। हसदेव नदी पर जब प्रदेश का सबसे ऊंचा बांध बना। तब अत्यधिक मात्रा में पीछे की तरफ दूर–दूर तक पानी का फैलाव हुआ। पानी निचले इलाकों में भर गया। निचले क्षेत्र के जंगल भी डूब गए। इससे सतरेंगा में समुद्र जैसे दिखने वाले नीले रंग के जलाशय का निर्माण हो गया।

इस पूरे क्षेत्र को बांगो बांध का डुबान क्षेत्र कहा जाता है। जहां जलराशि काफी दूर-दूर तक फैली हुई है। सतरेंगा से लेकर बुका तक का पूरा इलाका जल मार्ग से जुड़ा हुआ है। इस वर्ष गर्मी में बांगो बांध में भी महज 27 फीसदी जलस्तर शेष बचा है। इसका असर भी सतरेंगा पर पड़ा है। पूर्व में जो जलराशि कॉटेज के समीप तक मौजूद थी। अब वह घटकर काफी दूर की सरक चुकी है। इससे सतरेंगा की खूबसूरती थोड़ी घटी है। हालांकि बरसात के बाद इसमें बढ़ोतरी होने की भी उम्मीद है।

फिलहाल सतरेंगा स्थित टूरिस्ट के लिए बनाए गए कॉटेज को पानी की कमी की वजह से बंद किया गया है। पर्यटन स्थल पर जिले और बाहर से आने वाले टूरिस्ट के लिए कॉटेज बनाया गया है। अभी गर्मियों की छुट्टियां भी चल रही है,ऐसे में लोगों की भीड़ भी कम देखी जा रही है और यहां छोटा-मोटा व्यवसाय करने वाले लोगों का व्यवसाय भी प्रभावित हो रहा है। यहां ठहरने वाले टूरिस्ट की संख्या भी काफी कम हो गई है। जिसके कारण फिलहाल कॉटेज को बंद किया गया है।

कोरोना काल के बाद सतरेंगा में सुविधाएं बढ़ाई गई थी। कॉटेज सहित अन्य निर्माण कार्य हुए थे। डीएमएफ से करोड़ों रुपए खर्च किए गए, स्थानीय लोगों की समिति बनाकर नौका विहार के लिए बोट क्लब का भी संचालन किया जाता था। वॉटर स्पोर्ट्स के लिए अन्य राज्यों से बोट मंगाए गए थे। जिसका संचालन स्थानीय बोट क्लब द्वारा किया जाता था।

लेकिन कुछ समय बाद बोट खराब होने के बाद इसकी मरम्मत नहीं कराएगी गई। जिसके कारण बोट से सैर की सुविधा लगभग पिछले डेढ़ वर्ष से बंद है। नौका विहार के लिए स्थानीय मछुआरे ही देसी नाव पर यहां पहुंचने वाले टूरिस्ट को भ्रमण करवा रहे थे। 2 सीटर बोट से लेकर 15 सीटर तक के मोटर बोट सतरेंगा में मौजूद थे। जिससे प्रत्येक महीने 12 से 15 लाख रुपए की आमदनी अकेले बोट क्लब से पर्यटन मंडल को होती थी।

इस विषय में कोरबा वनमंडल के एसडीओ आशीष खेलवार ने बताया कि सतरेंगा में जलस्तर कम हो गया है। जिसकी वजह से यहां के कॉटेज में पानी का इंतजाम नहीं हो पा रहा है। टूरिस्ट की संख्या भी काफी घट गई है। जिसके कारण फिलहाल कॉटेज को बंद कर दिया गया है। आसपास के लोगों को भी रोजगार मिलता था।

जलस्तर कम होने के बाद स्थानीय लोगों के रोजगार पर भी असर पड़ा है। अभी गर्मी की छुट्टियां पर चल रही हैं, गर्मी में टूरिस्ट की संख्या भी कम हो गई है। भीषण गर्मी को देखते हुए फिलहाल व्यवस्थाओं को स्थगित किया गया है। जिन्हें कुछ समय बाद फिर से शुरू किया जाएगा।

सतरेंगा में जो भी विकास कार्य हुए हैं। वह डीएमएफ के फंड से हुए थे। तत्कालीन कलेक्टर किरण कौशल के कार्यकाल में कई विकास कार्य हुए थे, इसके बाद कुछ कार्यों को कोरबा की कलेक्टर रही रानू साहू ने भी आगे बढ़ाया था। कई तरह के घोटाले के आरोप में रानू साहू को जेल जाना पड़ा। डीएमएफ के कई कार्य संदेह के दायरे में आ गए।

कांग्रेस शासन के कार्यकाल में यहां विश्व स्तरीय सुविधाएं विकसित करने के दावे किए गए थे। अन्य राज्य और राजधानी से लोग यहां तक आसानी से पहुंच सकें, इसलिए यहां हवाई मार्ग से यात्रा की भी शुरुआत की तैयारी थी। एक हेलीपैड का निर्माण भी यहां किया गया था। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी। सतरेंगा में किसी भी तरह की सुविधाओं का विस्तार नहीं हुआ। डीएमएफ से भी जितने कार्य प्रस्तावित थे। उन सभी पर ब्रेक लग गया।

हर महीने 600 से 700 पर्यटक : सतरेंगा की खूबसूरती से आकर्षित होकर हर महीने यहां औसतन 600 से 700 पर्यटक घूमने आते थे। छत्तीसगढ़ सहित पड़ोसी राज्यों से भी लोग सतरेंगा आते थे। यह सभी कॉटेज में ठहरते थे। कॉटेज के एक दिन का किराया 5000 है और खाने की व्यवस्था के लिए अलग से राशि देनी होती थी।

जिससे अच्छी खासी कमाई होती थी। स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलता था। लेकिन अब कॉटेज का संचालन बंद किया गया है। वन विभाग की ओर से बताया गया है कि गर्मियों के बाद इसे फिर से शुरू किया जाएगा।

Advertisement
Advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button