झारखंड

बच्चों को धार्मिक और मानव सेवा का ज्ञान दें – स्वामी मुक्तात्मानंद

भारत सेवाश्रम संघ में वैदिक शांति यज्ञ का आयोजन, हिंदू धर्मग्रंथों की शिक्षा पर जोर

चक्रधरपुर। होली के पावन अवसर पर भारत सेवाश्रम संघ के हिंदू मिलन मंदिर में वैदिक शांति यज्ञ का भव्य आयोजन किया गया। इस धार्मिक अनुष्ठान का उद्देश्य मानव सेवा, वसुधैव कुटुंबकम की भावना को सशक्त करना और पारंपरिक धर्मशास्त्रों के ज्ञान को बढ़ावा देना था। यज्ञ की अगुवाई भारत सेवाश्रम संघ, जमशेदपुर के प्रमुख और सचिव स्वामी मुक्तात्मानंद ने की।

यज्ञ एवं भजन-कीर्तन के बाद स्वामी मुक्तात्मानंद ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि हिंदू धर्म के उदारवादी विचारों को समाज तक पहुंचाने की आवश्यकता है। उन्होंने वसुधैव कुटुंबकम, बहुजन हिताय बहुजन सुखाय जैसे सिद्धांतों को अपनाने और हिंदू समाज को अपने धर्म की रक्षा के लिए संगठित होने का आह्वान किया।

स्वामीजी ने बच्चों को पारंपरिक शिक्षा देने और उन्हें धर्मशास्त्रों की गहरी समझ प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने भगवद गीता, रामायण, महाभारत सहित अन्य ग्रंथों की शिक्षा को बढ़ावा देने की अपील की। साथ ही, चैतन्य महाप्रभु, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और प्रणवानंद जैसे महान संतों के विचारों से प्रेरणा लेने की सलाह दी।

भारत सेवाश्रम संघ द्वारा समाजसेवा के कार्य

स्वामी मुक्तात्मानंद शिक्षा, स्वास्थ्य और मानव सेवा को समर्पित हैं। 2021 तक वे अमेरिका के लॉस एंजेलेस स्थित भारत सेवाश्रम संघ मंदिर के प्रभारी थे। वर्तमान में वे भारत सेवाश्रम संघ, जमशेदपुर के सचिव के रूप में कार्यरत हैं। उनके नेतृत्व में झारखंड के सिंहभूम जिले में भारत सरकार के जनजातीय मंत्रालय के सहयोग से 14 से अधिक सामाजिक परियोजनाएं संचालित हो रही हैं।

महत्वपूर्ण परियोजनाएं:
🔹 पूर्वी सिंहभूम जिला: सोनारी में आवासीय विद्यालय (कक्षा 1 से 10), मोबाइल मेडिकल यूनिट, 20 शैय्या युक्त अस्पताल।
🔹 पश्चिम सिंहभूम जिला: चक्रधरपुर में 20 शैय्या युक्त अस्पताल, गैर-आवासीय विद्यालय और मोबाइल मेडिकल यूनिट।
🔹 सरायकेला-खरसावां जिला: समनपुर और सुंदरनगर में बालिका आवासीय विद्यालय।

इन सभी योजनाओं का संचालन बलराम आचार्य और प्रबंधक प्रथम दत्ता के नेतृत्व में किया जा रहा है।

स्वामी मुक्तात्मानंद ने समाज को धर्म और सेवा से जोड़ने का संकल्प लिया है। उन्होंने अपील की कि बच्चों को धार्मिक शिक्षा के साथ संस्कार देने की परंपरा को पुनर्जीवित किया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ी अपने मूल्यों और संस्कृति से जुड़ी रहे।

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