झारखंड

मांदर की थाम पर झुमती युवतियों ने करम डाली को सरना स्थल पर स्थापित कर मनाया करम पर्व

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युवतियों ने प्रकृति के प्रतीक करम भगवान के सामने की अपने भाईयों की लंबी उम्र और सुख समृद्धि की कामना

विधायक सुखराम उरांव के आवास पर मनाया गया करमा परब

चकधरपुर। चक्र धरपुर के विभिन्न ईलाकों में करमा का पर्व सोल्लास पूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या युवक युवतियां शामिल हुई। इस अवसर पर चक्रधरपुर के सार्वजनिक करमा समिति संघ आसनतलिया, बनमालीपुर सरना समिति की ओर से करमा पर्व धूम धाम से मनाया गया।

बड़ी संख्या मेंं युवतियां अपने भाईयों की लंबी उम्र और सुख समृद्धि व शांति की कामना करते हुए करम डाली(प्रकृति के प्रतीक) करम राजा को करमा स्थल पर स्थापित किया एवं फल फूल, जौ धान, अरहर इत्यादि के साथ पूजा अर्चना किया। इस अवसर पर युवतियां करमा के गीत और मांदर की थाप पर झूमते हुए करम राजा (करम डाली) को करम स्थल पर स्थापित किया। विधायक सुखराम उरांव के आवास पर भी करम उत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पवर बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिंल हुए।

करम उत्सव में विधायक सुखराम उरांव के परिवार वर्ग् सहित अंचल के बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। गौरतलब है कि करमा पर्व भाई-बहन के प्यार और प्रकृति से जुड़ा पर्व है। इसे न सर्फि झारखंड बल्कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल सहित तमाम जनजातीय क्षेत्रों में पूरे उल्लास और उमंग के साथ बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

करमा जीवन में कर्म के महत्व का पर्व तो है ही, यह प्रकृति के सम्मान का भी पर्व है।आदिवासी-मूलवासी समाज अपने प्रकृति प्रेम तथा इनके साथ अपने सहचार्य जीवन की जीवंतता को इस त्यौहार में प्रगट करते हैं। करम त्योहार, मात्र एक त्यौहार ही नहीं हैं, बल्कि आदिवासियों के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक तथा पर्यावरणीय जीवन शैली का ताना बाना है।

झारखंड के सभी आदिवासी समुदाय करमा त्यौहार मनाते हैं। करमा मनाने के पीछे मुंडा, उरांव, खडिया, हो-संताल, आदिमजाति, मूलवासियों की अपनी अपनी मान्यताएं हैं। इसके साथ ही अपनी सुविधानुसार सभी गांव करमा त्यौहार मनाते हैं। कहीं बुढ़ी करमा, कहीं ईन्द करमा, कहीं जितिया करमा, कहीं ढेढिरा करमा मनाते हैं।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की रात को करमा पर्व मनाया जाता है। नौ दिन तक चलनेवाले करमा पर्व को लेकर जनजातीय क्षेत्रों की महिलाओं में उत्साह चरम पर रहता है।

इस पर्व पर बहन अपने भाई के दीर्घायु होने की कामना करती है। साथ ही अच्छी पैदावार के लिए भी इस पर्व को मनाया जाता है।

इसके आगमन के पूर्व युवतियां नदी में स्नानकर नयी बांस की टोकरी में बालू भरकर कुरथी, जौ, धान, अरहर, मकई आदि डालकर जावाडाली बनाती हैं। जावाडाली को आंगन के बीच में रखकर सुबह-शाम मांदर-नगाड़े की थाप पर युवतियां करमा गीत आजू करमा गोसाई, घरे आंगने गो.. गाते हुए थिरकती हैं। करमा पर्व को मनाने के लिए महिलाएं ससुराल से मायके आती है।

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