छत्तीसगढ़

रंगो का पर्व होली सौहार्दपूर्ण और सुरक्षित तरीके से खेलें-डा. नंदिनी

होली के पूर्व चक्रधरपुर रेलवे मंडल अस्पताल की चिकित्सिका डा. नंदिनी षन्ड ने दी सुरक्षित होली के कई टिप्स

शहरवासियों को दी होली की शुभकामनाएं और इस दौरान खुशियां मनाएं और खुशियां बांटे

चक्रधरपुर। होली रंगो का त्यौहार है। आनंद और उत्साह से भरा होली को सौहार्दपूर्ण सुरक्षित वातावरण में मनाएं। इस दौरान त्वचा की खूबसुरती को बनाए रखना भी बहुत जरुरी है। केमिकल मिक्सड रंग त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। रुखी त्वाचा एलर्जी और जलन से बचने के लिए कुछ मुख्य बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है यह बात चक्रधरपुर रेलवे अस्पताल की चिकित्सिका डा. नंदिनी षन्ड ने कहा। उन्होंने सुरक्षित होली के कई टिप्स बताई जिसमें होली के दौरान इको फैंडली , हैंड मेड हर्बल कलर्स को चुने।

त्वचा के अनुरुप रंगो का उपयोग करें, त्वचा का बेरियन फंक्शन इंटेक्ट रखना है। रंग खेलें लेकिन उस रंग को इस लेबल पर रहने दें कि वो चत्वा के उपर से ही उतर जाए। पूरीबाजू वाली सुती और आरामदायक कपड़ा पहनें। होली खेलने निकले से पहले एक्सपोज एरिया यथा हाथ पैर, चेहरा, गर्दन पर नारियल तेल , मोईसचराईजर या सन स्क्रीन लगा लें।

होंठों पर ओलिव या बेसलिन लगाएं। बालों में अच्छे से रुट से इंड तक ओयलिंग करें फिर चोटी बना लें। नाखूनों पर नेल पोलिस लगा लें। आंखों को रंग से बचाएं। इसके लिए सन ग्लास का इस्तेमाल करें। अगर आंखो में रंग चला जाए तो तुरंत साफ पानी से धों लें। अपने आप को हायड्रेड रखें। इसके लिए दो से तीन लीटर तक पानी सेवन करें। खाने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह धो लें। सुरक्षित वातावरण में होली खेलें। छोटे बच्चों पर नजर रखें।

होली में क्या न करें
मिट्टी के साथ होली न खेंलें। शराब से दूर रहे और दुर्घटनाओं से बचें। मेटालिक कलर से परहेज करें। पेड़ पौधों और जानवरों पर रंग न डालें। बच्चों को हर्श कलर के साथ न खेलने दें। वाटर बेलून से दूसरों को परेशान न करें। रंगे हाथों से भोजन न करें। अगर सर्दी जूकाम या खांसी है तो रंग खेलने से बचे। केरोसिन तेल का इस्तेमाल रंग छुड़ाने के लिए न करें।

होली से दो तीन दिन पहले किसी प्रकार का स्कीन ट्रिटमेंट न लें। बेस्ट कलर के लिए पलाश (टेसू)फूल को उपयोग कर सकतें हैं जो त्वचा के लिए बेहतर है। इससे शरीर में शीतलता कायम होता है। मन शांत और स्वास्थ्य लाभ भी होता है। औषधीय गूण से भरपूर पलाश फूल को चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है। यह शरीर में संभावित गर्मी का एहसास नहीं होने देती।

कोरोना काल के दौरान होली में इसका मांग काफी बढ़ गया था। बसंत ऋतू के आगमन के साथ ये खिलते हैं। तब ऐसा लगता है जैसे पेड़ पर दहकते अंगारे लगे हों। शास्त्रों में पलाश के पेड़ को देवताओं का कोषाध्यक्ष भी कहा गया है। डा. नंदिनी ने होली के पावन अवसर पर शहरवासियों को शुभकामनाएं दी और होली में खुशियां मनाने और खुशियां बांटने का आह्वान किया है।

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