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चुनाव परिणाम के बाद भाजपा और कांग्रेस लगी आत्ममंथन में ।

बस्तर लोकसभा के अंतर्गत आने वाली 8 में से केवल 2 ही विधानसभाएं ऐसी हैं, जिनमें भाजपा प्रत्याशी को पर्याप्त लीड मिली। जगदलपुर और दंतेवाड़ा विधानसभा को छोड़ दिया जाए तो शेष सभी 6 विधानसभाओं में जीत का अंतर बढ़ाने वाली लीड नहीं मिली।

अब भाजपा संगठन इस मामले में संज्ञान लेगा कि चूक कहां और क्यों हुई ।

बीजापुर और दंतेवाड़ा को छोड़ दिया जाए तो शेष सभी विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के विधायक हैं। ऐसे में निर्णायक बढ़त हासिल करने के लिए जो लीड चाहिए थी, वह प्रत्याशी अंतिम समय तक तलाशते रहे और उन्हें मायूस होना पड़ा।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष जगदलपुर विधायक किरण देव और उनके साथियों की मेहनत रंग लाई और 29 हजार से विधानसभा में जीत हासिल करने वाले देव ने भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी को 38 हजार की लीड दिलवाई।  इसी तरह दंतेवाड़ा में भी 13 हजार की लीड मिली। शेष सभी विधानसभाओं में जीत का अंतर काफी कम था।

2019 में 38 हजार मतों के अंतर से लोकसभा का चुनाव कांग्रेस ने पूरे 22 सालों के बाद जीता था और दीपक बैज यहां से सांसद निर्वाचित हुए थे। इस बार भाजपा यह सीट कांग्रेस से छीनने में सफल तो रही, लेकिन जिस तरह के आंकड़े सामने आए हैं, उसे लेकर निश्चित तौर पर संगठन में संतोष नहीं दिख रहा।


चुनाव प्रचार में कमी थी या चुनावी प्रबंधन में, इस बात का विश्लेषण अब भाजपा करेगी। पार्टी सूत्र बता रहे हैं कि इसे इसलिए भी जरुरी समझा जा रहा है, क्योंकि कोंडागांव विधानसभा से भाजपा की विधायक लता उसेंडी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, जबकि नारायणपुर से विधायक केदार कश्यप राज्य सरकार के प्रमुख मंत्री हैं।

मजबूत जनाधार वाले इन नेताओं के गढ़ में पार्टी का परफारमेंस अपेक्षाकृत वैसा नहीं था, जैसा अपेक्षित था। समीक्षा के बाद सामने आने वाले तथ्यों को आधार बनाकर पार्टी के किस स्तर के कार्यकर्ताओं-नेताओं पर इसकी गाज गिरेगी, यह आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल भाजपाई बस्तर और कांकेर दोनों लोकसभा सीटों में फतह हासिल करने की खुमारी महसूस करने में व्यस्त नजर आ रहे हैं।

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