छत्तीसगढ़

सारदा देवी ने भोगवाद के अंधकार मग्न संसार में आर्दश और दिव्य मातृभाव स्थापित किया- बितभयप्राणा

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रामकृष्ण मिशन सेवा समिति का सारदा पाठ चक्र के दो दिवसीय अनुष्ठान सोल्लास पूर्वक संपन्न

सारदा पाठ चक्र के 50 साल पूरा होने पर किया गया विशेष अनुष्ठान का आयोजन

चक्रधरपुर। राम कृष्ण मिशन सेवा समिति चक्रधरपुर के सारदा पाठ चक्र के स्वर्ण जयंती समारोह के उपलक्ष्य में दो दिवसीय अनुष्ठान का रविवार को समापन हो गया। इस अवसर पर शनिवार शाम को आयोजित समारोह में बतौर मुख्य अतिथि दक्षिणेश्वर सारदा मठ के प्रव्राजिका बितभयप्राणा माताजी एवं विशिष्ट अतिथि के तौर पर प्रव्राजिका निर्वेदप्राणा माताजी उपस्थित होकर समारोह का विधिवत उद्घाटन किया।

समिति के द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में शनिवार को दोनों माताओं के द्वारा सारदा पाठ चक्र के महत्व में प्रकाश डाला गया। इसके पश्चात भागवत गीता पाठ के श्लोकों के माध्यम से जीवन के मूल्यों के  बारे में श्रद्धालुओं को विस्तृत एवं समीक्षात्मक जानकारी दी। शनिवार को केवल महिलाओं के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में माताओं ने भगवत गीता के त्याग पाठ पर चर्चा किया गया। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सब कुछ त्याग कर युद्ध करने के  प्रेरित किया था।

जीवन के मोह माया से दूर रहकर धर्म की रक्षा के लिए युद्ध की आवश्यकता पर विचार डाला गया। शनिवार दोनों माताओं के द्वारा रामकृष्ण सेवा समिति प्रागंण में श्रीरामकृष्ण- विवेकानंद साहित्य तथा आध्यात्मिक प्रकाशन इत्यादि प्रकाशित धार्मिक पुस्तकों की बिक्री केंद्र का उद्घाटन किया गया। रविवार को दोनों माताओं ने केंद्र में पारंपारिक बंगाली वेश भुषा में शामिल महिलाओं को संबोधित करते हुए श्री सारदा देवी के जीवनी और उपदेशों के बारे में चर्चा किया।

माताओं ने कहा कि वर्तमान युगावतार भगवान श्री रामकृष्ण की दिव्य लीला को पुष्ट करने तथा उनके दिव्य प्रयोजन को परिपूर्ण करने साक्षात ब्रह्मशक्ति ही उनकी सहधर्मिणी श्रीसारदादेवी के रुप में मग्न संसार के समक्ष उन्होंने दिव्य मातृभाव या परमपावन आर्दश कन्या, आर्दश गृहिणी, आदर्श सन्यासिनी, आदर्श गुरु, आदि विविध रुपों में प्रकट हुआ है। माताओं ने कहा कि सारदा देवी सारे संसार की मां थी।

पवित्रता, सरलता, प्रेम , करुणा, त्याग सेवा आदि अगणित दैवी गुणों से विभूषित उनका उज्जवल जीवन तथा उनके सरल आडंबरहीन उपदेश मोहमुग्ध भ्रांत जीव को परमसत्य तक पहुंचाने की क्षमता रखते हैं। माताजी के दिव्य जीवन एवं उपदेशों का जितना अधिक प्रचार प्रसार होगा उतना ही मानव जाति का कल्याण होगा। दोनों माताओं ने संयुक्त रुप से माता सारदा के आर्विभाव, दिव्य दांपत्य, दक्षिणेश्वर को संसार,षोडशीपूजा, दैवीभाव का विकास इत्यादि के बारे में विस्तृत चर्चा किया।

माताओं ने सारदा देवी के आर्दश नारी पर विश्लेषण करते हुए कहा कि माताजी व्यर्थ में समय नष्ट नहीं करती थी। वह सुबह उठकर ठाकुर जी को प्रणाम करने के बाद आठ बजे पहले ही पूजा करने के लिए बैठ जाती थी। पूजा समाप्त करने के बाद फलमिष्ठान साधू संतों के लिए भेज देती थी। इसके पश्चात भक्त समागम, दर्शनदान,दीक्षादान, धर्मोपदेश तथा शोकपीड़ितों को सांन्तवा आदि का काम करती थी। सारदादेवी अव्यवस्था बिल्कुल भी सह नहीं पाती थी।

इस अवसर पर महिलाओं को अनुशासन के साथ रहने की वार्ता दिया। कार्यक्रम के पश्चात दोनों माताओं ने चक्रधरपुर अनुमंडल अस्पताल जाकर समिति के सदस्यों के साथ मरीजों के बीच फल विरतण किया। कार्यक्रम में समिति केंद्र में प्रत्येक शुक्रवार को महिलाओं के लिए आयोजित सारदा पाठ चक्र में सबसे ज्यादा उपस्थिति दर्ज कराने वाली ज्योत्सना को दोनों माताओं ने उपहार देकर सम्मानित किया।

कार्यक्रम में मुख्य रुप से समिति की अध्यक्षा रत्ना चक्रवर्ती, सचिव तापस कुमार विश्वास, प्रतिमा चक्रवर्ती, प्रदीप कुमार राय, विजय कृष्ण सिन्हा, सुब्रत विश्वास, विप्रा बोस, चैताली घोष, दीवाकर विश्वास देवप्रिय चौधरी आदि उपस्थि थे।

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