
छत्तीसगढ़ के कबीरधाम, कांकेर, बस्तर, सरगुजा और दंतेवाड़ा जिलों से पहुंचे युवा ट्रेनी गाइड इस समय मध्यप्रदेश के ग्वालियर में विशेष प्रशिक्षण ले रहे हैं। डॉ. चंद्रशेखर बरूआ के नेतृत्व में इन प्रतिभागियों ने ग्वालियर के ऐतिहासिक दुर्ग और उसके आसपास स्थित महत्वपूर्ण धरोहरों का गहन अध्ययन किया।
अध्ययन भ्रमण की शुरुआत गुजरी महल संग्रहालय से हुई, जहां ट्रेनियों ने दुर्लभ प्रतिमाओं, धातु कला और प्राचीन कलात्मक परंपराओं को बारीकी से समझा। विशेषज्ञों ने संग्रहालय में स्थापित प्रसिद्ध शालभंजिका प्रतिमा को भारतीय मूर्तिकला का अनुपम उदाहरण बताते हुए उसकी रहस्यमयी मुस्कान की तुलना मोनालिसा की मुस्कान से की।
इसके बाद समूह मानसिंह महल (मान मंदिर) पहुंचा, जहां रंगीन टाइल वर्क, शाही कक्षों की संरचना और हिंदू–तुर्की स्थापत्य शैलियों के अनूठे मेल का अध्ययन किया गया। जैन पर्वत क्षेत्र में गाइडों ने विशाल पर्वत–उत्कीर्ण जैन तीर्थंकर प्रतिमाओं की निर्माण पद्धति और धार्मिक प्रतीकात्मकता को समझा।
अध्ययन यात्रा के अगले पड़ाव में दल सहस्त्रबाहु (सास–बहू) मंदिर पहुंचा, जहां नागर शैली की सूक्ष्म नक्काशी और स्थापत्य नवीनताओं का अवलोकन किया गया। अंत में चतुर्भुज मंदिर में विश्व के सबसे प्राचीन शून्य (0) के अंकन को देखकर प्रतिभागियों ने गणितीय विरासत के इस अद्भुत इतिहास से परिचय प्राप्त किया।
यह पूरा शैक्षणिक भ्रमण छत्तीसगढ़ी युवाओं के लिए भारतीय कला, स्थापत्य और इतिहास को गहराई से समझने का महत्वपूर्ण अवसर साबित हो रहा है।





