जॉली एलएलबी-3 में गजानन माधव मुक्तिबोध

जब कोई दिल को छू लेने वाला काम करें तो उसके बारे में कुछ अच्छा ही लिखा जाना चाहिए. चित्र में जिस शख्स को आप देख रहे हैं उनका नाम है सुभाष कपूर.
तो ऐसा है साहब कि अत्याचार-अन्याय के इस खौफ़नाक दौर में जब देश के अधिकांश कवि और लेखक मोदी के डर से किसी गुफा में जा घुसे हैं तब सुभाष कपूर ने जॉली एलएलबी-3 जैसी एक जानदार और शानदार फिल्म बनाकर परचम बुलंद कर दिया है.
सुभाष कपूर ने देश की जनता को घृणा और नफ़रत के अंधे कुंए में धकेलने के बजाय किसानों की जमीन हथियाने वाले हथकंडों को अपनी फिल्म का विषय बनाकर एक जिम्मेदार नागरिक और बेहतर सृजनकर्मी होने का परिचय दिया है.
जॉली एलएलबी- 3 भू-अधिग्रहण की हकीकत पर बनी एक शानदार फिल्म है.इस फिल्म को देखते हुए आप की बार हंसते हैं और कई बार रोते हैं. इस फिल्म की सबसे बड़ी ताकत भी यहीं कि कई बार आपकी मुट्ठियां गुस्से से भींच जाती है.
फिल्म में कई ऐसे दृश्य और संवाद हैं जिसे देखकर और सुनकर लगता है कि देश का अन्नदाता सत्ता और उसके तंत्र के आगे कितना बेबस है ? फिल्म के आखिरी दृश्य में एक बूढ़ी औरत ( जानकी अम्मा ) का रुदन आपको भीतर तक हिला देता है.
फिल्म में किसका काम अच्छा है यह कहना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि सबने बेहतर काम किया है. नारंगी गैंग के लिए काम करने वाले उस चिरकुट एक्टर ने भी अच्छा काम किया है जिसने कुछ समय पहले मोदी का इंटरव्यू करते हुए पूछा था कि आप आम काटकर खाते हैं या चूसकर ?
फिल्म में हिंदी के नामचीन कवि गजानन माधव मुक्तिबोध के चित्र और एक किसान की आत्महत्या से पहले बैकग्राउंड में गूंजने वाली कविता को सुनकर लगा कि सुभाष कपूर कोई चलताऊ निर्देशक नहीं है.राजनीतिक तौर पर सचेत इस निर्देशक के पास एक ऐसी दृष्टि है जिसमें जनता का दुःख-दर्द शामिल हैं.
उदयपुर… कश्मीर फाइल्स और बंगाल फाइल्स जैसी घटिया फिल्मों के बीच जॉली एलएलबी-3 का थियेटरों में रिलीज़ हो जाना यह अहसास दिलाता है कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है. यदि संघर्ष जारी रखा जाय तो बहुत कुछ बदला जा सकता है.
सुभाष कपूर को जोरदार बधाई और देश का पेट भरने वाले अन्नदाताओं को सलाम.
राजकुमार सोनी
98268 95207



