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भेड़ तंत्र के विवेक से चुने जाते विधायक सांसद…

(वरिष्ठ पत्रकार राकेश परिहार की कलम से )

क्या भारतीय लोकतंत्र भीड़तंत्र में बदल रहा है?
पिछले कुछ वर्षो से यह सुन सुन कर कान पक गए है… की आखिर लोकतंत्र में जनता द्वारा दिए गए जनादेश का ही तो महत्व है।
पर यह बहुत बड़ा पर है क्युकी इस पर ही तो सवाल लगातार खड़ा होते रहे है, सवाल यह है की हमारा लोकतंत्र परिपक्व है की नहीं जवाब मिलता है की लोकतंत्र तो परिपक्व हैं पर लोकतंत्र के सजग प्रहरी परिपक्व, सुदृण.. अर्थात ज़मूरियत नहीं है।

हमारे लोकतंत्र, हमारे ज़मूरियत का मंदिर लोक सभा है जहां हम अपने लोकतंत्र को और मजबूत करने के लिए अपना प्रतिनिधि चुन कर भेजते है, क्या हम भेजते है ? क्या दावा सही है कि हम अपना प्रतिनिधि चुनकर भेजते है या एक खास वर्ग जिसे भेड़तंत्र या भीडतंत्र कहा जासकता है उनके द्वारा चुने जाते है।

यह वही वर्ग जिसे राजनीतिक दलों ने अपने सत्ता प्राप्ति के लिए प्रयोग करती है इसे लाभार्थी वर्ग भी कह सकते है । यह वही लाभार्थी वर्ग है जो चुनाव एक रात पूर्व दारू, मुर्गा,नगद लेकर अपने मतों का उपयोग करती है या चुनाव के पूर्व या आचार संहिता लगने के पूर्व सरकारे अपने लाभार्थियों या अपना लाभार्थी बनाने हेतु उनके खातों में धन डाल कर वोट खरीदती है और सत्ता प्राप्त करती है।
इन परिस्थितियों में हमारे भेड़तंत्र नामक ज़मूरियत जो राजनीतिक दलों से मिलने वाले सीधे लाभांश के बाद दिमाग से कुंद हो और आंखों से आंधी हो ..बलात्कार , हत्या, हत्या के प्रयास का,अपरहण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर मामले दर्ज व्यक्तियों को चुनती है।

क्योंकि आंकड़े तो कुछ इसी ओर इशारा करते है लोकसभा में दांगी सांसदों की स्थिति देखे तो 2009 से 2024 के बीच ऐसे सांसदों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है एडीआर (एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) के अनुसार ऐसे सांसदों की तादात 124% तक बढ़ी है।
2019 में दांगी सांसदों की संख्या 223 थी..। 18 वी लोकसभा में यह संख्या बढ़कर का 251 तक पहुंच गई है जिन पर क्रिमिनल केस दर्ज है यह संख्या कुल सांसदों का 44% है और इन
चुने गए 251 सांसदों में से 170 सांसदों पर बलात्कार, हत्या, हत्या के प्रयास का,अपरहण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर मामले दर्ज है।

2009 में दागी सांसदों की संख्या 162 थी, गंभीर अपराध 76, 2014 में दांगी सांसदों की संख्या 185 थी, गंभीर अपराध 112, 2019 में दांगी सांसदों की संख्या 233 थी, गंभीर अपराध 159 है ।
हमारा लोकतंत्र ,हमारी ज़मूरियत इतनी परिपक्व है फिर भी ऐसे लोगों को चुन लेते है ?

क्या ऐसे लोगों को चुनने के पीछे की वजह क्या शिक्षा का अभाव है या आर्थिक विषमता समझते है ऐसा क्यू?
सब से पहले यह बता देना उचित है की मेरा कोई मनसा नही है कि अनपढ़ और कम पढ़े लिखे लोगों को ठेस पहुंचे… ।
पर यह समझना और समझाना बहुत ही लाजमी है की अज्ञानता से कभी भी न ही समाज का भला होगा और न ही देश का…
जिस देश की 25.96% आबादी आज भी अनपढ़ हो अर्थात देश की कुल आबादी का चौथा इस्सा होती है । देश में कुल 74.04% आबादी साक्षर है पर इसमें से कितने प्रतिशत को केवल अक्षर ज्ञान है या कितने प्रतिशत 8वी 10वी और 12वी पास है यह बता पाना अत्यंत ही कठिन है … हो सकता है सरकार के पास पूरे आकंड़े हो.. ।

आर्थिक विषमता की खाई भी बीते वर्षों में बढ़ी ही है । देश की आधी से ज्यादा आबादी सरकार के द्वारा दिए जाने वाले 5किलो अनाज पर आश्रित है। भारत के केवल 21 सबसे बड़े अरबपतियों के पास देश के 70 करोड़ लोगों की सम्पत्ति से भी ज्यादा दौलत है, यानी मोटे तौर देश की आधी दौलत महज 21 अरबपतियों के पास है। यह खुलासा एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ऑक्सफैम इंडिया की ताजा रिपोर्ट में हुआ है। या यू समझे भारत में शीर्ष 10% आबादी देश की कुल आय का 57% हिस्सा हासिल करती है। वहीं, निचले स्तर के 50% लोगों की हिस्सेदारी सिर्फ़ 13% रह गई है।

ऐसे में समझा जा सकता है कि हमारा दावा कितना सही है कि हमारा लोकतंत्र ,हमारी ज़मूरियत कितनी परिपक्व है?
क्यूंकि गैंगस्टर अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, धनंजय सिंह, बृजेश सिंह ,मो.शहाबुद्दीन का चूना जाना शायद सही होगा? अगर नही है तो देश की और राज्यो के सरकारों का चूना जाना भी सही नही है क्युकी चुन तो यही जनता ही रही है ।

ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में अफलातून ने लोकतंत्र को इन शब्दों से विभूषित किया था। इस महान दार्शनिक का मत था कि लोकतंत्र सुशासन की दृष्टि से एक उपयुक्त प्रणाली नहीं है। उन्होंने लोकतंत्र की व्याख्या भीड़तंत्र के रूप में की थी क्योंकि इस प्रणाली में योग्य व बुद्धिमान लोगों के बजाय एक चयनित अयोग्य भीड़ द्वारा शासन किया जाता है। अफलातून के अनुसार शासन की सबसे बढि़या प्रणाली कुलीनतंत्र है। उनके अनुसार कुलीनतंत्र में योग्य व बुद्धिमान लोग लोगों के हित में राज्य का शासन चलाते हैं।।

राकेश प्रताप सिंह परिहार ( कार्यकारी अध्यक्ष अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति , पत्रकार सुरक्षा कानून के लिए संघर्षरत)

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