छत्तीसगढ़

आखिर सरकारी हिंदू कब तक हिंदू – मुसलमान का राग अलापेंगे देश किसका है और भारत के मूल निवासी कौन है

Advertisement

हरियाणा जिला हिसार के राखीगढ़ी में मिले 4500 साल पुराने कंकाल से तो यह बिलकुल भी साबित नहीं होता कि यह देश हिंदुओं का है, मुसलमानों का है, ईसाइयों का है, बौद्धों का है या जैनियों का है बल्कि एक नई बहस को जन्म दे दिया है कि आखिर देश किसका है

भारत के मूल निवासी कौन है वो है जो अपने आपको हिंदू या सनातनी कहते है या उनका है जो यह नारा बुलंद करते है बोल पचासी भारत के मूल निवासी ?
आप सोच रहे होंगे छः साल पुरानी घटना को 2025 में क्यू जिक्र कर रहा हूं या यह लेख क्यू उद्धृत कर रहा हूँ क्योंकि पिछले छः सालों में सुबह से शाम, रात दिन, साल के 365 दिन एक ही बात “हिन्दू मुसलमान”।

तथाकथित सरकारी हिंदुओं ने देश का तानाबाना बिगाड़ रखा है और आगे भी जैसे बिगड़ने की कसम खा रखी है । कावड़ यात्रा निकले तो ठेलों पर नाम होना चाहिए … होली पर घर से नहीं निकलो.. होली साल में एक बार आती …सेवाई खानी है तो गुझिया खानी पड़ेगी..।

सरकारी तथाकथित हिंदुओं ने खुलेआम धार्मिक गुंडागर्दी कर रहे है ऐसे लोगों को यह खोज एक कहावत है “फूटी आंख न सुहाना ” नहीं भाएगी।

यह बात उनको हजम होने वाली नहीं है जिन्हें अपने राजनीतिक बिसात में हिंदू मुसलमान कर सत्ता के गलियारे में धमा चौकड़ी मचाने का मंच प्रदान करता है।

यह बहस हिंदू मुसलमान सिख ईसाई पर नहीं टिकने वाली क्योंकि यह बहस भारत के मूलनिवासी कौन पर आ टिकी है हिंदू मुसलमान सिख ईसाई आज की बहस है । सिख धर्म का उद्दय 15 वी शताब्दी के अंत में भारतीय उपमहाद्वीप के पंजाब क्षेत्र में हुआ था। इस्लाम का जन्म 7 वीं शताब्दी ईस्वी में हुआ और ईसाई धर्म का जन्म पहली शताब्दी ईस्वी में हुआ ।

अब बहस कोई 2400 साल पुराना,1800 साल पुराना या 900 साल पुरानी बात पर नहीं होगी यह बहस 4500 साल पहले अर्थात ईसापूर्व की बात होगी अर्थात यह देश किसका है आर्यो का है ? द्रविन्नियानो का है ?
इस खोज से यह सोचा जाना चाहिए कि कौन आक्रांता है क्या आर्य विदेशी थे कि शक ,कुषाण, हुड़ विदेशी थे कि मुसलमान विदेशी थे।

क्योंकि आज की परिवेश में जो राष्ट्रवादी है उन पर उनके विरोधी इल्जाम लगाते है कि ये बाहर से आए है।
अब यह कैसे साबित होगा कि कौन आक्रांता है कौन बाहर से आए है और यहां के मूल निवासी कौन है। इसके लिए हरियाणा जिला हिसार के राखागढ़ी में 4500 साल पुराना कंकाल के जिन (GEN) / DNA डीएनए के जांच से और जांच की पुणे के डेक्कन विश्विद्यालय के कुलपति डॉ . वसंत शिंदे और उनके अगुवाई में बनी टीम ने रिसर्च किए और रिसर्च में जो रिजल्ट आए उससे राजनीति खासकर तथाकथित सरकारी राष्ट्रवादियों के उस धड़े को शीर्षासन करने को मजबूर कर देगा ।

ऐसे राष्ट्रवादी जो हिंदुत्ववादी संगठन जो हिंदुत्व का एजेंडा चलाते है खुद प्रश्न चिन्ह के घेरे में आने को तैयार हो जाय।
सरकारें जो अपने हिसाब से इतिहास लिखवा रहे है और कह रहे है कि भारतीय सभ्यता की शुरुवात ही भारत वैदिक हिन्दू धर्म से हुई ऐसी मनःस्थिति के लोग वज्रपात के लिए तैयार रहे ।

पहले यह समझ ले की राखागढ़ी कौन सी जगह है इस जगह को 1963 में सिंधुघाटी सभ्यता की खोज के तौर पर चिन्हित किया गया .. 1998 से 2001 में खुदाई हुई.. 2014 में ऐसा कहा जाने लगा कि यहां पर मोहनजोदड़ो से भी बड़ा शहर है.. यहां पर कब्रिस्तान के साथ टीला नंबर शून्य सात(07) में कंकाल मिला जिसका DNA प्रोफाइल तैयार किया गया ।

जिसमें यह बताया गया है कि
01.हड़प्पा सभ्यता के लोग संस्कृत भाषा और हिंदू संस्कृति के मूल स्रोत के लोग नहीं है।
02. आज के भारतीय और हड़प्पा सभ्यता के लोगों के बीच जैनेटिक संबद्ध है।
03. हड़प्पा सभ्यता के लोग का संबद्ध आर्यो के मुकाबले द्रविन्नियानो के ज्यादा करीब है ।
04. हड़प्पा सभ्यता लोग आज के दक्षिण भारतीयों के ज्यादा मिलते है।
इस थ्योरी के हिसाब से बोल पचासी” भारत के मूल निवासियों (Indigenous people) के लिए एक सामान्य शब्द नहीं है, लेकिन भारत में कई अलग-अलग जनजातीय समुदाय हैं जिन्हें मूल निवासी माना जा सकता है।

पर इस प्रोफाइल के हिसाब से अर्थ यह हुआ कि जिस सिद्धांत को लेकर सरकारी हिंदू इतना कोलाहल मचा रखा है उनकी अपनी राजनीतिक विमानसा पर तुषारापात हो जायेगा।

जरा सोचिए अगर इस सिद्धांत को माना जाय तो इन तथाकथित सरकारी राष्ट्रवादियों और हिंदूवादियों के राजनीति का क्या होगा उनके ठेकेदारी सिद्धांत का क्या होगा ।

पर हिंदुस्तान में हर बात का सियासी मतलब होता है क्या असर होगा राजनीति में तो शायद जवाब यह होगा Post Truth अर्थात जब किसी तथ्य का सत्य होने और न होने से कुछ फर्क ना पड़े। इतिहास पर मत्थापच्ची वैसे भी मची हुई है इतिहास बदला जा रहा है नए तरीके से लिखने का प्रयास हो रहा है जो राजा हरे वो भी किताबों में जिताए जा रहे है ।

राजनीतिक पार्टी अबोध सरकारी हिंदुओं के मनही मन को गुदगुदाए रखना चाहती है उन्हें मीठे सपने में रखना चाहती है कि वो महान थे। जब उन्हें महान बताएंगे तब ही सरकारी हिन्दुओं के दिलों दिमाग में हिंदू और मुसलमान के सांप्रदायिकता का अलख जलाए रख पाएंगे ।

राकेश प्रताप सिंह परिहार ( कार्यकारी अध्यक्ष अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति , पत्रकार सुरक्षा कानून के लिए संघर्षरत)

Advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button