दक्षिण पूर्व रेलवे मजदूर संघ ने शुरु किया राउरकेला और बंडामुंडा से चुनाव प्रचार,
निशाने पर मेंस यूनियन औरे मेंस कांग्रेस
चक्रधरपुर। रेलवे यूनियनों की मान्यता के लिए चुनाव की घोषणा होते ही विभिन्न संगठनों के नेता व प्रतिनिधि रेलकर्मी के बीच अपनी पहुंच बनाने में जूट गई है। चुनावी अभियान में संगठनों के प्रतिनिधि रेलकर्मियों को वर्तमान यूनियन की खामियों से उत्पन्न परिस्थिति करी जानकारी दे रहे हैं तो उन्हें आने वाले चुनाव में बेहतर प्रतिनिधि चुनने का अनुरोध भी कर रहे हैं।
इसक्रम में डीपीआरएमएस के चक्रधरपुर मंडल संयोजक अजय कुमार झा की अगुवाई में मजदूर संधके प्रतिनिधियों ने राउरकेला के बंडामुंडा में टीआरएस के कर्मचारियों से मिलकर उनकी समस्याओं को जाना और उन्हें दूर करने के उपायों पर बात की। डीपीआरएमएस ने चुनावी जंनसंपर्क अभियान में रेलकर्मियों के बीच अपनी मजबूत उपस्थिति के साथ एनपीएस से लेकर यूपीएस तक के विरोध में लड़ाई जारी रखने की बात कही।
इस दौरान डीपीआरएमएस नेताओं के निशाने पर एआईआरएफ(एसईआरएमयू) और एनएफआईआर(एमईआरएमसी) यूनियनें रही। नेताओं ने कहा
रेल में विगत 100 वर्षों से मान्यता प्राप्त यूनियन रहते हुए एनएफआईआर(एसईआरएमयू और 76 वर्षों से मान्यता प्राप्त यूनियन रहते हुए एआईआरएफ(एसईआरएमसी) ने रेल कर्मचारियों के हित में अनेकानेक उपलब्धियाँ हासिल की है।
उनकी कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ पर चर्चा करना आवश्यक है ताकि जब आप यूनियन मान्यता के लिए होने वाली चुनाव में मतदान के लिए जब आप जाए तो उनकी उपलब्धियों को ध्यान में रख कर मतदान कर सकें!
1. 2004 में इनकी सहमति से ही एनपीएस लागु हुई और इनको ही एनपीएस का ट्रस्टी बनाया गया। ज्ञातव्य हो कि कामरेड उमरावमल पुरोहित तत्कालीन एआईआरएफ के अध्यक्ष एनपीएस ट्रस्ट के मृत्यु पर्यंत माननीय सदस्य रहे थे । इनके ढकोसलापन और धूर्तता का हद तो तब और भी हो जाता है जब ये चुनावी मौसम में उसी एनपीएस को खत्म करने के लिए आवाज उठाने का मांग करते हैं जिसे इन्होंने अपनी सहमती देकर लागू करवायी थी। गजब की बेशर्मी है !
अपनी बेशर्मी से भी ज्यादा उनको कर्मचारी गण के मूर्खता और अर्ध चेतना पर वस्विास हैं ! उनका दृढ़ वश्विास है कि हर हाल में कर्मचारी गण उनको ही वोट देंगे क्योंकि कर्मचारी गण घोर नद्रिा में हैं और अपने नफा नुकसान से बेपरवाह है। उनको इस बात से कोई फर्क़ नहीं पड़ता है कि वो इनको क्या नुकसान पहुंचा रहे हैं! कम से कम पिछले दो चुनावों का परिणाम तो इस बात का जीता जागता प्रमाण है!
2. 2024 में इनकी ही सहमति से पुनः यूपीएस लागू कराई जा रही है। पहले एनपीएस के माध्यम से और अब यूपीएस के माध्यम से कर्मचारियों के भवष्यि के साथ खिलवाड़ कर रहें हैं!
3. रेलवे कर्मचारियों की सीएल-15 से घटाकर 10 आपके कार्यकाल में ही करवाई गई।
4. रेल कर्मचारी की संख्या 24 लाख से 11 लाख हो गयी और काम का बोझ दुगना हो गया।
5. रेलवे अस्पताल, रेलवे कॉलोनी आदि के हालत बद से बदतर हो गई है आपके नेता क्या कर रहे हैं?
6. पॉइंट्समेन, ट्रेकमेन, सग्निल विभाग आदि के कर्मचारी आज भी 12-12 घंटे की ड्यूटी करने को मजबूर हैं आखिर क्यों
7. आजादी के 75 साल बाद भी ट्रेकमेन कार्यस्थल पर खुले आसमान में और जमीन पर भोजन करने को मजबूर हैं आखिर क्यों ?
8. रतन टाटा की अध्यक्षता में निजीकरण के लिए बनी कायाकल्प समिति के सदस्य बनकर रेलवे में एफडीआई को बढ़ावा दिया।
9. 7 वें पे कमीशन में 18 महीने के भत्तों का नुकसान करवाया गया।
10. सफाई कार्य, सी एंड डब्ल्यु, ट्रेन लाइटिंग, रेक अनुरक्षण, पार्सल कार्य, टिकिट बक्रिी आदि का कार्य आपके ही कार्यकाल में ठेके पर दिया गया।
11. वर्कशॉप एवं शेड में 50% कार्य आपकी सहमति से ही आउटसोर्सिंग द्वारा करवाया जा रहा है।
12. आपकी ही सहमति से रेलवे की सभी प्रिंटिंग प्रेसे बंद की गई।
13. सभी रेल कर्मचारियों की नाईट ड्यूटी की सीलिंग आपके ही कार्यकाल में लागू की गई।
14. लोको शेड का यार्ड स्टिक जो 7.5 व्यक्ति प्रति लोको थी घटकर 4.5 प्रति लोको हो गये। आप क्या कर रहे थे
15. सुविधा पास पर रिजर्वेशन कोटा फक्सि होने के बाद कर्मचारियों को रिजर्वेशन नहीं मिल पाता है और बिना रिजर्वेशन के यह पास मान्य नहीं है। इस प्रकार एनएफआईआर/एआईआरएफ ने एक प्रकार से कर्मचारी के सुविधा पास को खत्म करने का कार्य किया है।
16. फेलियर के चलते सग्निल विभाग के कर्मचारियों को 24 घंटे मुख्यालय पर ही रहना पड़ता है। इसका विरोध क्यों नहीं किया ?
17. गुड्स, सवारी और मेल एक्सप्रेस गाड़ियों के लोको पायलेट एवं ट्रेन मैनेजरों का अलग-अलग वेतनमान क्यों नहीं लागू करवाया।
18. 1992 में नरसम्हिा सरकार के समय में निजीकरण एवं प्रतिवर्ष एक प्रतिशत कर्मचारियों की कटौती करने की सहमति आपके ही द्वारा दी गई। 19. सुरक्षा व संरक्षा से संबंधित कार्य भी ठेका मजदूरों द्वारा आपकी सहमति से ही करवाया जा रहा है।
20. 11 जुलाई 2016 को सातवें वेतन आयोग के लिए हड़ताल के लिए मतदान करवाया गया जिसमें 98% कर्मचारियों की हड़ताल के पक्ष में सहमति होने के बावजूद ऐन मौके पर हड़ताल से क्यों भागे ?
उपर्युक्त सारे और अनेकों अन्य मुद्दों पर घोर नाकामी के बावजूद भी अगर इन दोंनो यूनियनों का उन्मूलन नहीं हुआ तो फिर हमारा भवष्यि जो अब तक घोर अंधकार में डूबा हुआ है आगे और भी अंधकारमय होना नश्चिति है!
अत: आगामी चुनाव में इन कर्मचारी विरोधी, अकर्मण्य और सत्ता के चापलूस यूनियनों को नर्मिूल करना हमारी-आपकी हम सबों की जम्मिेदारी है! हमें आपके विवेक पर पूरा भरोसा है इसलिए आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण वश्विास है कि आप सजग एवं सतर्क होकर इस बार अपना मतदान करेंगे और आगामी 4, 5 और 6 दिसंबर को यूनियन मान्यता के लिए होने वाली चुनाव में दक्षिण पूर्व रेलवे मजदूर संघ को भारी मतों से विजय दिलाएंगे।