छत्तीसगढ़

अंबिकापुर में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी के दौरे के दौरान वायरल हुई तस्वीर ने मुझे बहुत दुखी किया

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पंडो जनजाति के बुजर्ग बसंत पंडो को सूट-बूट और चमचमाती पीली पगड़ी पहनाकर राष्ट्रपति के सामने खड़ा कर दिया गया। हाथ जोड़कर नमस्ते, फोटो खिंची गई, तालियाँ बजीं – और “आदिवासी सम्मान” का सारा नाटक पूरा हो गया।
लेकिन यह नाटक है। सिर्फ नाटक। और इस नाटक का एक ही मकसद – सूट के पीछे दशकों की बदहाली को छुपा देना।
पंडो और पहाड़ी कोरवा सरगुजा की सबसे पुरानी व सबसे कमजोर जनजातियाँ हैं। आज भी इनके गाँवों में बिजली नहीं, साफ पानी नहीं, पक्की सड़क नहीं, अस्पताल तो सपने जैसा है, बच्चों के स्कूल में पहले रमन सरकार और अब मौजूदा विष्णु देव साय सरकार ताला लगा रही है । बच्चे कुपोषण से लड़ते-लड़ते हार जाते हैं। वन अधिकार के पट्टे आज तक नहीं मिले।
सबसे बड़ा झटका तो भाजपा की केंद्र सरकार ने ही दिया – 2015 में BRGF योजना को चुपचाप बंद कर दिया। जिस योजना से इन गाँवों तक थोड़ी रोशनी पहुँच रही थी, उसे एक झटके में खत्म कर दिया। नई कोई प्रभावी योजना नहीं आई, सिर्फ भाषण और फोटो-सेशन बढ़ गए।

प्रशासन को जब राष्ट्रपति को “सब चमक-दमक” दिखाना था, तब बसंत पंडो को सूट पहनाकर मंच पर लाया गया। बाकी दिन ये बुजुर्ग और उनका पूरा समाज उसी अंधेरे में जीता है जिसमें दशकों से जी रहा है।
भाजपा की केंद्र और राज्य सत्ता में है पर इन सरकारों ने इनके नाम पर सिर्फ वोट लिए, विकास का नाम तक नहीं लिया।
सूट बदलने से समाज नहीं बदलता।

BRGF जैसी योजनाएँ बंद करने और फोटो खिंचवाने से आदिवासियों की जिंदगी नहीं बदलती।
उस एक सूट ने बसंत पंडो की सारी दुर्दशा को ढँक दिया –
उनके फटे कपड़े, उनका अंधेरा घर, उनके भूखे पोते-पोतियाँ, सब कुछ।अब बस इतना पूछना है –
कब तक चलेगा ये पाखंड?

कब तक एक बुजुर्ग को सूट पहनाकर उसकी गरीबी का मजाक उड़ाते रहोगे?
कब तक सत्तर साल पुराने गोद लिए समाज के बच्चों को भूखा और नंगा रखोगे?
जिस दिन बसंत पंडो अपने पुराने कपड़े में ही राष्ट्रपति से गले मिल सकें,
और कह सकें – “बहन, अब हम आगे बढ़ रहे है उसी दिन समझना कि देश ने अपना कर्ज चुका दिया।
तब तक ये सूट नहीं, हमारी सामूहिक शर्मिंदगी का परदा है।
और ये परदा जितनी जल्दी हटे, उतना अच्छा।

जय जोहार जय सरगुजा
विष्णु सिंह देव

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