छत्तीसगढ़

इस्कॉन केंद्र में मनाया गया श्री प्रभुपाद की जयंती

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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पश्चात केंद्र में हुआ मंगलवार को विशेष आयोजन

चक्रधरपुर। श्री श्री हरि संकीर्तन प्रचार समिति(इस्कॉन) की ओर से मंगलवार को श्रील प्रभुपाद की जयंती मनाई गई। सोमवार को इस्कॉन केंद्र में श्री कृष्ण जन्माष्टमी धूम धाम से मनाया गया। इस अवसर पर केंद्र में बड़ी संख्या में महिला व पुरुष शामिल होकर नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की गीत के साथ भगवान श्री कृष्ण का जन्म कराया गया। शाम को भगवान श्री कृष्ण का दुध घी, पंचामृत से स्नान कराया गया।

साथ ही भगवान को छप्पन भोग लगाया गया। श्री कृष्ण जन्माष्टमी को लेकर महिलाएं उपवास रखी थी। पुरुष भी उपवास ब्रत रखे थे। केंद्र में भगावत गीता , हरिसंकीर्तन और हरिनाम जाप माला के साथ कराया गया। इस अवसर पर मुख्य रुप से इस्कॉन चक्रधरपुर केंद्र के प्रमुख प्रकाश प्रभु के द्वारा भागवत प्रशिक्षण और माला जाप सिखाया गया।

देर शाम तक माला जाप करने के उपरांत रात 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव पालन किया गया। इस अवसर पर मुख्य रुप से प्रकाश प्रभु, श्रीनिवास, संजय प्रभु, दिव्या माता, भारती माता, अन्नापूर्णा माता, मनोज प्रधान, पार्वती माता सहित, अनुपम, शुभम जायसवाल सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए।

इस्कान केंद्र में मनाया गया श्रील प्रभुपाद की जयंती
श्री श्री हरि संकीर्तन प्रचार समिति इस्कॉन की ओर से भक्तिवेदांत श्रील प्रभुपाद की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर केंद्र में्रश्री प्रभुपाद के तस्वीर में पुष्प अपर्ण कर श्रद्धांजली दी गई। इस अवसर पर भागवत कथा वाचक सह बंगाली एसोसिएशन काली मंदिर के पूजारी मनोजित भट्टाचार्य के द्वारा श्री प्रभुुपाद के जीवनदर्शन, कृष्ण भक्ति, सेवा और भागवत प्रचार के बारे मेंं विस्तृत उल्लेख किया गया। इस अवसर पर प्रभु मनोजित भट्टाचार्य ने कहा कि श्रील प्रभुपाद का जन्म 1 सितंबर 1896 को कोलकाता में एक धार्मिक परिवार में अभय चरण डे के रुप में हुए था।

ब्रिटिश नियंत्रित भारत में पले बढ़े एक युवा के रुप में अभय अपने देश की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए महात्मागंाधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हो गए थे। श्री भट्टाचार्य ने उनके न्यूयार्क यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि उन्होंने विदेश में भागवत गीता प्रचार के लिए कई निम्म कार्य भी किए हैं। जब परमपूज्य ए सी भक्ति वेदांत स्वामी श्री प्रभुपाद ने 17 सिंतबर 1965 को न्यूयार्क शहर के बंदरगाह में प्रवेश किया तो कुछ अमरिकियों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन वे केवल एक अप्रवासी नहीं थे।

वे वैदिक भारत की प्राचीन शिक्षाओं को मुख्यधारा के अमेरिका में लाने के मिशन पर थे। 14 नवंबर 1977 को 81 वर्ष की आयु में श्री प्रभुपाद के निधन से पहले, उनका  मिशन सफल साबित हुआ। उन्होंने इटरनेशनल सोसाइटी फार कृष्णा कॉन्शियसनेस(इस्कान) की स्थापना की थी और इसे 100 से अधिक मंदिरों , आश्रमों और सांस्कृतिक केंद्रों के एक विश्वव्यापी संघ के रुप में विकसित होते देखा था।

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