छत्तीसगढ़

कैसे अपने लोकतंत्र पर गर्व करें हम,जब जनता के सेवक और जनता के प्रतिनिधियों में जनता के प्रति जवाबदेही और जिम्मेदारी से बड़ा उनका व्यक्ति गत इगो हो जाता है??

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दो_तीन प्रमुख घटनाओं का जिक्र करते हुए,सारांश ने कुछ समझाने का प्रयास करूंगा…

पुलिस हिरासत में दिख रही ये महिला विधवा है। साथ में उसकी एक बेटी भी है। दोनों महिलाओं को कलेक्टर साहब ने गिरफ्तार करके जेल भेजने का आदेश दिया है,(कलेक्टर मतलब जिले का सबसे बड़ा लोक_सेवक..वैसे तो इस दायरे में जिला पुलिस अधीक्षक  भी आते हैं।)
इसीलिए महिला पुलिस दोनों को ले जा रही है।।

बताया जा रहा है कि मैनपुरी की रहने वाली महिलाओं का गुनाह सिर्फ इतना है कि उनकी पुश्तैनी जमीन पर किसी ने कब्जा कर लिया। जिले में संपूर्ण समाधान दिवस था। मतलब इस दिन जिसमें पीड़ितों की शिकायतों की सुनवाई सीधे कलेक्टर साहब, एसपी साहब के साथ ही पुलिस प्रशासन के तमाम अधिकारी कर्मचारी करते हैं, ऐसा संपूर्ण समाधान दिवस था। मैनपुरी के थाना किशनी में, महिला अपनी बेटी को लेकर पहुंची।

उम्मीद थी साहब लोग सुनेंगे, न्याय मिलेगा, लेकिन यहां तो मामला ही उल्टा हो गया। न्याय मिलने के बजाय खुद ही जेल जाने की नौबत आ गई। दरअसल महिला ने कलेक्टर साहब के सामने अपनी शिकायत रखते हुए थोड़ी ऊंची आवाज में बात करने लगी। (कारण यह था कि,महीनों थाने से,चौकी से, तहसील से, बिना सुनवाई बार-बार भगाए जाने के परेशान होकर बेचारी महिला हताश हो गई थी।)

कलेक्टर साहब को उसका ऊंची आवाज में बोलना अच्छा नहीं लगा। दोनों में थोड़ी बहस हुई। माहौल गरमा गया। कलेक्टर साहब ने तुरंत महिला और उसकी बेटी को गिरफ्तार करके जेल में डालने का हुक्म सुना दिया। कलेक्टर साहब का हुक्म सुनते ही वहां मौजूद अफसर सन्न रह गए। फरियादियों के होश फाख्ता हो गए। अब साहब का आदेश था तो मां बेटी को तत्काल गिरफ्तार करके पुलिस जीप में बैठाकर ले जाया गया।

वर्ष 2018 की एक घटना जो उत्तराखंड में घटित हुई थी यहां आपका ध्यान लाना चाहूंगा।।हुआ यू था कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत 28 जून 2018 के दिन जनता दरबार में बैठे थे। यहां एक उम्र दराज महिला शिक्षिका उत्तरा पंत बहुगुणा अपनी फरियाद लेकर आई थी। उन्होंने सीएम से कहा वो अपनी समस्या को बार विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों से कह चुकी हैं। लेकिन समाधान नहीं हुआ । थकहार कर आपकी जनता दरबार फरियाद लगा रही हूं। महिला शिक्षिका  उत्तरा पंत ने बताया कि 20 वर्षों से उत्तरकाशी के एक प्राइमरी स्कूल में तैनात है और लंबे समय से अपने ट्रांसफर करने की मांग कर रही है. लेकिन अब तक उनका ट्रांसफर नहीं हुआ। बात करते हुए महिला शिक्षिका ने अपना सारा गुस्सा जनता दरबार में मौजूद अधिकारियों पर निकाल दिया। इस बात पर मुखिया चिढ़ गए और फरियादी महिला शिक्षिका पर भड़क कर उसे सस्पेंड कर  दिया l।

कुछ इसी तरह की घटना
13 अक्टूबर 2021
उत्‍तर प्रदेश के
रौनापार थाना क्षेत्र में घटी
यहां पीड़ित परिवार जब न्‍याय की गुहार लेकर पुलिस के सामने पहुंचा तो पीड़ित परिवार के एक सदस्‍य को sp ने थप्‍पड़ जड़ दिया।

जानकारी के अनुसार, रौनापार थाना क्षेत्र की रहने वाली एक 10 वर्षीय बच्ची सुबह घर से कुछ दूरी पर रास्ते में अर्धनग्न अवस्था में मिली थी। आशंका जताई गई कि बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ है। वहीं हालत गंभीर मे घायल होने की वजह से रात में ही बच्ची की मौत हो गई। मामले में जांच की तत्परता की जगह किए जाने की जगह एस एच ओ ने आनन फानन अपने खर्च पर बच्ची का अंतिम संस्कार करा दिया।

इस बात से दुखी मृतिका का पीड़ित परिवार ग्रामीणों के साथ न्याय की गुहार लेकर एस.पी. ऑफिस पहुंचा। इसी दौरान एस पी ऑफिस से निकल रहे थे। इसी बीच पीड़िता के परिवार का एक अत्यंत दुखी युवक उनके वाहन के सामने आ गया,ताकि किसी तरह एस पी साहब को रोककर फरियाद पत्र दिया जा सके। इधर पूरी घटना को भली भांति जान रहे पुलिस अधीक्षक ने पीड़ित परिवार के प्रति संवेदना रखने के बजाय पीड़ितों पर भड़क उठे और वाहन से उतरकर लोगों के सामने ही फरियादी युवक की थप्पड़ों से जमकर पिटाई कर दी। मीडिया कर्मियों ने घटना को जब अपने कैमरे में कैद किया तब sp को अपनी गलती का एहसास हुआ। हालांकि कुछ करने की जगह वो मौके से निकल गए।

इधर पहली घटना में मामला सोशल मीडिया से होते हुए लखनऊ में सत्ता के गलियारों तक जा पहुंचा,तो वहां हड़कंप मच गया। उधर, कलेक्टर साहब को भी लगा, कुछ ज्यादा ही हो गया है। उन्होंने कुछ देर बाद महिला और उसकी बेटी को छोड़ने का आदेश दिया लेकिन तब तक फरियादी महिलाओं का देश की कानून व्यवस्था से भरोसा टूट चुका था। बाकियों की तरह उन्हें एहसास हो चुका था कि हमारे देश में न्याय मांग कर पाना उनके नैतिक अधिकार की जगह साहब लोगों के मूड पर ज्यादा निर्भर करता है।

जबकि भारतीय लोक सेवा आयोग या भारतीय पुलिस सेवा में चुनकर कलेक्टर या पुलिस अधीक्षक बनने वाले ज्यादातर लोग इन पीड़ित लोगों की तरह सामान्य या गरीब परिवार से आते हैं।

नोट- उक्त घटनाएं हमें ये शिक्षा देती है कि कलेक्टर साहब/sp  तो छोड़िए SDM या तहसीलदार साहब या थाने के दरोगा अर्थात बड़ा बाबू के सामने भी कभी ऊंची आवाज में बात नहीं करनी चाहिए। न बहस की जुर्रत करनी चाहिए।

वो खुद को जनता का सेवक कहते जरूर हैं। लेकिन हैं,इस लोकतंत्र में वो हमारे माई-बाप हैं। ऊंची आवाज और बहस से उनका इगो हर्ट हो जाता है। इसके बाद आपका बड़े से बड़ा दुख_दर्द  भी तेल लेने चला जाएगा साथ ही आपके आत्मसम्मान के साथ आपके जान_माल को भी खतरा हो जाएगा।।

संकलित लेख_

नितिन सिन्हा
संपादक
खबर_सार

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