रायगढ़

अदानी की गुंडई ने रायगढ़ में मचाया बवंडर: पत्रकारों पर हमला, पुलिस की खामोशी पर जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर!!

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अदानी की गुंडई ने छेड़ा रायगढ़ में रण: पत्रकारों पर हमला, पुलिस की खामोशी पर जनता का तूफान!!

रायगढ़@खबर सार :- रायगढ़ में अदानी कंपनी की गुंडागर्दी ने सारी मर्यादाएं तार-तार कर दीं! 6 अगस्त, 2025 को कलेक्ट्रेट परिसर में पत्रकारों पर जानलेवा हमला, गाली-गलौज और खुलेआम मौत की धमकियों ने कॉरपोरेट दबंगई की सारी हदें पार कर दीं। अदानी के कथित गुर्गों और मठाधीशों ने फर्जी ग्रामसभा और विस्थापन के सवालों से बचने के लिए न सिर्फ पत्रकारों को डराया-धमकाया, बल्कि गुंडई का ऐसा नंगा नाच किया कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ तक दहल गया। इस काले कांड की वीडियो रिकॉर्डिंग ने अदानी की करतूतों की पोल खोल दी, लेकिन पुलिस की गूंगी-बहरा रवैया देखकर जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर है। आखिर पुलिस किसके इशारे पर नाच रही है?

मामला तब और भड़का, जब 6 अगस्त को महाजेनको के पोस्टर थामे कुछ लोग, जो खुद को ग्रामीण बताकर गारे पेलमा खदान के समर्थन में कलेक्टर से मिलने पहुंचे, पत्रकारों के सवालों पर बगलें झांकने लगे। जैसे ही पत्रकारों ने विस्थापन और फर्जी ग्रामसभा की सच्चाई कुरेदनी शुरू की, अदानी के कथित कर्मचारी भूखे भेड़ियों की तरह टूट पड़े। इन गुंडों ने पत्रकारों को “गुंडा” कहकर जलील किया, जान से मारने की धमकियां दीं और सरेआम दहशत फैलाई।

मौके पर मौजूद पुलिस ने जैसे-तैसे भीड़ को रोका, लेकिन जैसे ही पत्रकार लौटने लगे, अदानी के गुर्गों ने फिर से धमकियों का तूफान खड़ा कर दिया। चक्रधर नगर थाने में लिखित शिकायत के बावजूद, पुलिस ने एक डंडा तक नहीं चलाया। उल्टा, ये गुंडे अब पत्रकारों को फोन कर राजीनामा करने की धमकी दे रहे हैं। सवाल गूंज रहा है—क्या अदानी का रसूख इतना भारी है कि कानून भी उसके सामने घुटने टेक दे?

प्रेस क्लब ने 8 अगस्त को पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन सौंपकर फौरन कार्रवाई की गुहार लगाई, लेकिन 25 दिन बीतने के बाद भी न एक गिरफ्तारी, न कोई जवाब! स्थानीय लोगों का सब्र अब जवाब दे रहा है। एक ग्रामीण ने तल्ख लहजे में कहा, “क्या ये सरकार है या अदानी की कठपुतली? फर्जी ग्रामीणों को आगे कर हमारी जमीन छीनी जा रही है, और पत्रकारों को कुचलने की साजिश रची जा रही है। पुलिस की चुप्पी देखकर लगता है, कानून की आंखों पर अदानी ने पट्टी बांध दी है!” ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी फर्जी ग्राम सभाओं के जरिए स्थानीय लोगों को दबा रही है, जबकि असली पीड़ितों की आवाज कुचली जा रही है।

फॉलोअप: गिरफ्तारी न होने की साजिश या डर? पुलिस की चुप्पी ने खोली पोल

25 दिन बाद भी कोई गिरफ्तारी न होना पुलिस की नीयत पर सवाल खड़ा कर रहा है। क्या पुलिस अदानी के दबाव में आरोपियों को बचाने की रणनीति बना रही है, या फिर डर के मारे कान में रुई ठूंसे बैठी है? वीडियो सबूत, गवाह और शिकायत के बावजूद पुलिस की यह ढिलाई साफ चीख रही है कि या तो कॉरपोरेट का रसूख हावी है, या फिर पुलिस जानबूझकर मामले को दबाने में जुट गई है। पत्रकारों को धमकी भरे फोन कॉल्स का सिलसिला जारी है, और कुछ सूत्रों का दावा है कि अदानी के गुर्गे पुलिस की शह पर खुलेआम दबंगई दिखा रहे हैं।

प्रेस क्लब ने अब आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने गुस्से में कहा, “अदानी की गुंडई और पुलिस की चुप्पी अब लोकतंत्र पर काला धब्बा बन चुकी है। अगर 48 घंटे में आरोपियों को सलाखों के पीछे नहीं डाला गया, तो रायगढ़ की सड़कों पर पत्रकार और जनता का सैलाब उतरेगा।” स्थानीय लोग भी अब खुलकर सामने आ रहे हैं। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने चेतावनी दी, “यह सिर्फ पत्रकारों का मसला नहीं, यह हर उस ग्रामीण की आवाज का सवाल है, जिसे अदानी की लूट ने बर्बाद कर दिया। पुलिस अगर अब भी नहीं जागी, तो जनता का गुस्सा आग बनकर भड़केगा।”

विपक्ष भी इस मामले को जोर-शोर से उठा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने X पर तंज कसते हुए कहा, “रायगढ़ में पत्रकारों पर हमला और पुलिस की नाकामी यह साबित करती है कि छत्तीसगढ़ में अब कॉरपोरेट राज चल रहा है। अदानी के गुंडों को खुली छूट और पुलिस की चुप्पी शर्मनाक है।” यह बयान तब और गूNJता है, जब हाल ही में बघेल के बेटे की गिरफ्तारी को अदानी के खिलाफ आवाज उठाने की सजा से जोड़ा जा रहा है।

रायगढ़ की गलियों में अब एक ही सवाल गूंज रहा है—क्या अदानी के गुर्गे कानून को यूं ही ठेंगा दिखाते रहेंगे? क्या पुलिस की चुप्पी कॉरपोरेट की कठपुतली बनने का सबूत है? जनता और पत्रकार अब इंसाफ की आखिरी जंग लड़ने को तैयार हैं। अगर पुलिस ने जल्द कार्रवाई नहीं की, तो यह मामला न सिर्फ रायगढ़, बल्कि पूरे देश में कॉरपोरेट दबंगई और प्रेस की आजादी के खिलाफ एक बड़े आंदोलन की चिंगारी बन सकता है। समय तेजी से बीत रहा है, और रायगढ़ की जनता का सब्र अब टूटने की कगार पर है।

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