छत्तीसगढ़

सेवा से हटाए जाने के बाद डॉ प्रिंस जायसवाल ने खटखटाया उच्च न्यायालय का दरवाजा,अंतरिम राहत से अदालत ने किया इंकार

सूरजपुर। जिला अस्पताल में पदस्थ रहे संविदा डॉक्टर प्रिंस जायसवाल को सेवा से हटाए जाने के बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, लेकिन उन्हें वहां से अंतरिम राहत नहीं मिल सकी है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल की एकलपीठ में हुई, जिसमें कोर्ट ने अंतरिम राहत देने से इंकार करते हुए राज्य सरकार और अन्य पक्षों को तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

याचिकाकर्ता डॉ. प्रिंस जायसवाल की ओर से अधिवक्ता पवन श्रीवास्तव ने कोर्ट में तर्क रखा कि उनकी सेवा समाप्ति राज्य शासन की वर्ष 2018 की मानव संसाधन नीति के विरुद्ध की गई है, जो आज भी प्रभाव में है। उन्होंने कहा कि डॉ. जायसवाल को बिना किसी पूर्व सूचना और सुनवाई के सेवा से हटा दिया गया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।

याचिका में बताया गया है कि डॉ. जायसवाल को 29 मई 2015 को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत जिला आरएमएनसीएचए सलाहकार के पद पर संविदा आधार पर नियुक्त किया गया था। उन पर आरोप है कि उन्होंने मास्टर ऑफ फिजिकल हेल्थ की डिग्री की फर्जी अंकसूची साबरमती यूनिवर्सिटी (पूर्व में कैलॉर्क्स टीचर्स यूनिवर्सिटी), अहमदाबाद से प्रस्तुत की। हालांकि, अधिवक्ता का कहना है कि कलेक्टर सूरजपुर द्वारा की गई जांच में विश्वविद्यालय ने अंकसूची को प्रमाणिक बताया था और जांच को बंद करने की अनुशंसा की गई थी। बावजूद इसके, एक निजी शिकायतकर्ता संजय कुमार जायसवाल की शिकायत पर दोबारा जांच शुरू की गई और डॉक्टर को सेवा से हटा दिया गया।

राज्य सरकार ने हटाने को ठहराया जायज

राज्य सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता सुयशधर बडगैया और उत्तरदाता क्रमांक 2 की ओर से अधिवक्ता सी.जे.के. राव ने जवाब दाखिल करते हुए कहा कि डॉ. प्रिंस जायसवाल एक संविदा कर्मचारी थे और उन्हें डिग्री की प्रामाणिकता साबित करने के लिए पर्याप्त अवसर दिया गया था। लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके, इसलिए नियमानुसार उनकी सेवा समाप्त की गई।

कोर्ट ने कहा- गंभीर आरोप, नहीं दी जाएगी अंतरिम राहत

कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि याचिकाकर्ता संविदा नियुक्ति पर थे और उन पर फर्जी दस्तावेजों के जरिए नियुक्ति लेने का गंभीर आरोप है। ऐसे में अंतरिम राहत देने का कोई औचित्य नहीं बनता। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट के जिन निर्णयों का हवाला याचिकाकर्ता ने दिया, वे इस मामले की परिस्थितियों से मेल नहीं खाते।

तीन सप्ताह में मांगा जवाब, अगली सुनवाई बाद में

न्यायालय ने राज्य सरकार सहित सभी पक्षों को तीन सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। उसके बाद इस मामले की अगली सुनवाई की जाएगी।

शिकायतकर्ता बोले- सत्य की हमेशा जीत होती है

मामले में शिकायत करने वाले संजय कुमार जायसवाल ने कोर्ट के आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मैं माननीय न्यायालय के निर्णय का स्वागत करता हूं। सत्य की हमेशा जीत होती है, यह निर्णय उसी का प्रमाण है।”

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