छत्तीसगढ़

पहले संघर्ष फिर विराम, और उसके बाद की कहानी

योगेश कबूलपुरिया, खरसिया की कलम से

तेजी से अशांत हो रहे क्षेत्र में भारत को संतुलन बनाने के लिए कई नाजुक चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। पहलगाम में की गई हिंदू पर्यटकों की बर्बरतापूर्वक हत्या के बाद सीमा पर बढ़ा सैन्य टकराव, फिर अस्थायी संघर्ष विराम, आतंकवाद की निरंतर छाया और छिटपुट झड़पें, पाकिस्तान के साथ जारी तनाव जैसी तमाम चुनौतियां लंबे समय से नई दिल्ली के कूटनीतिक धैर्य और जनता के ध्यान की परीक्षा ले रही हैं।

नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन हो या फिर सीमा पार से होने वाली भड़काऊ बयानबाजी, ये तनाव अक्सर सुर्खियों में रहने के साथ ही राजनीतिक विमर्श पर हावी रहते हैं। अप्रत्याशित रूप से बदले इस परिदृश्य में भारत को सैन्य रूप से जो करना चाहिए था, ठीक वही उसने किया और करना भी चाहिए था, लेकिन इसके बावजूद उसे किसी तरह के उकसावे में आने के बजाय रणनीतिक धैर्य का परिचय देते हुए अपनी विकास संबंधी चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए, जिनका सामना उसके एक अरब से ज्यादा नागरिक अब भी कर रहे हैं।

इस्लामाबाद से आने वाली प्रत्येक तीखी प्रतिक्रिया, विशेषकर जब राष्ट्रीय गौरव की बात हो, तब हर ओर से सशक्त कूटनीति और दंडात्मक कार्रवाई की मांग उठने लगती है। विरोधी का मकसद ही यह है कि मौखिक या सांकेतिक रूप से भारत को उकसाकर अपने जाल में फंसाया जाए, ताकि उसका ध्यान अपनी प्राथमिकताओं से भटक जाए। वर्तमान में असली युद्धक्षेत्र सिर्फ क्षेत्रीय नहीं है, बल्कि विकासात्मक, तकनीकी और मानवीय भी है।

आर्थिक प्रगति, तकनीकी नवाचार व वैश्विक प्रभाव में प्रभावी उन्नति के बावजूद भारत अब भी गंभीर आंतरिक चुनौतियों से जूझ रहा है। हाल में जारी हुई 2025 यूएनडीपी ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट (ए मैटर ऑफ चॉइस : पीपल एंड पॉसिबिलिटीज इन द एज ऑफ एआई) भारत की प्रगति को रेखांकित करती है, पर कई मोर्चों पर प्रगति की असमानता को भी बताती है।

भारत 2022 से 2023 के बीच मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में तीन स्थान ऊपर उठकर 133 से 130वें पायदान पर पहुंच गया, पर असमानता के कारण उसका एचडीआई स्कोर 30.7 फीसदी कम हो गया, जो एशिया में सबसे अधिक गिरावट वाले देशों में से एक है। यद्यपि कुछ भारतीय बहुत अच्छा कर रहे हैं, पर लाखों ऐसे हैं, जो नहीं कर पा रहे हैं।

आयुष्मान भारत और जल जीवन मिशन जैसी योजनाओं की सराहना करनी चाहिए, जिनकी वजह से बीते करीब डेढ़ दशक में जीवन प्रत्याशा सार्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई है, बहुआयामी गरीबी घटी है और 41.5 करोड़ लोग गरीबी से ऊपर उठ गए हैं। फिर भी, स्वास्थ्य (जीडीपी का 3% से कम) व शिक्षा (जीडीपी का 5% से कम) पर अपेक्षाकृत कम खर्च असमानताओं को बढ़ाता है,

जिससे भारत के कई युवा ज्ञान संचालित दुनिया के लिए तैयार नहीं हो पाते हैं। देश का श्रम बल महत्वपूर्ण रूप से अब भी अनौपचारिक और अल्प रोजगार वाला है। भारत की डिजिटल साक्षरता दर-जिसमें बुनियादी उपयोग से परे साइबर सुरक्षा जागरूकता, ऑनलाइन शिष्टाचार और कौशल भी शामिल हैं-लगभग 37 फीसदी है, जिसमें शहरी और ग्रामीण विभाजन बहुत अधिक है। ये कोई मनगढ़ंत आंकड़े नहीं हैं, बल्कि ये वास्तविक अग्रिम मोर्चे हैं, जिन पर भारत को अपनी महत्वपूर्ण लड़ाई में पार पाना है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) द्वारा तेजी से संचालित हो रही दुनिया में हमें बुनियादी विज्ञान सीखने और शोध के लिए वित्त पोषण बढ़ाने की जरूरत है, लेकिन शुद्ध विज्ञान में पर्याप्त निवेश के बिना स्टेम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमैटिक्स) में कोई प्रभावी काम नहीं हो सकता है।

रणनीतिक धैर्य, इसलिए कमजोरी और आत्मसंतुष्टि की निशानी नहीं है, क्योंकि इसमें प्राथमिकताओं की पहचान शामिल होती है। यह भी समझना होगा कि पाकिस्तान के हर मौखिक उकसावे पर प्रतिक्रिया देना हमारे रणनीतिक हित में नहीं है। यह उन लाखों लोगों को पीछे धकेल देता है, जो अब भी विकास के फल की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

उदाहरण के लिए, भारत की आकांक्षाएं वैश्विक विनिर्माण हब, डिजिटल आर्थिक महाशक्ति और नवीकरणीय ऊर्जा में अगुआ बनने की हैं। इन सभी. लक्ष्यों को हासिल करने के लिए स्थायित्व, विदेशी निवेश, नवाचार और कुशल मानव पूंजी की जरूरत है। भू-राजनीतिक व्याकुलता, खासकर रणनीतिक तौर पर पटरी से उतरे हुए पड़ोसी के साथ, इन सभी महत्वाकांक्षाओं को बेपटरी कर सकता है। निवेशक उकसावे के बजाय पूर्वानुमान को प्राथमिकता देते हैं।

राजनयिक, सहयोगी और साझेदार प्रतिशोधात्मक बयानबाजी की अपेक्षा संयम को महत्व देते हैं। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत को यह पहचानना होगा कि वैश्विक परस्पर निर्भरता के दौर में सॉफ्ट पावर और आंतरिक लचीलापन अक्सर अधिक मायने रखता है। दुनिया न केवल सैन्य शक्ति पर नजर रखती है, बल्कि यह भी देखती है कि कोई राष्ट्र अपने सबसे कमजोर लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है, अपने युवाओं को कैसे शिक्षित करता है और अपने पर्यावरण को कैसे बनाए रखता है।

एक आत्मविश्वासी राष्ट्र को हर आलोचना पर तीव्र प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं होती, वह इसका जवाब अपनी कामयाबियों से देता है। इसका मतलब यह नहीं है कि भारत को अपनी जायज सुरक्षा चिंताओं को दरकिनार कर देना चाहिए। पाकिस्तान का लगातार आतंकवादी संगठनों को समर्थन देना और उसका सीमा पार आतंकवाद को लेकर संदिग्ध कदम वाकई वास्तविक चुनौतियां हैं।

भारत को हमेशा सतर्क रहने की जरूरत है और जब भी सुरक्षा हितों को खतरा उत्पन्न हो, तो निर्णायक कार्रवाई के लिए तैयार रहना चाहिए। हालांकि, उसे प्रतिक्रियात्मक शक्ति बनने से भी बचना चाहिए। सुरक्षा केवल टैंकों और मिसाइलों में ही निहित नहीं है-यह सामाजिक एकजुटता, आर्थिक समावेशन और संस्थागत ताकत में समान रूप से समाहित है। कई मायनों में, पाकिस्तान की अपनी घरेलू विफलताएं हैं, जो उसकी सबसे बड़ी कमजोरियां हैं।

उसकी अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है, उसकी संस्थाएं खोखली हो रखी हैं और उसका राजनीतिक परिदृश्य हमेशा अस्थिर रहता है। इसके उलट, भारत के पास दृष्टि और क्षमता के माध्यम से अपना कद परिभाषित करने का अवसर है। इसलिए एक ऐसे पड़ोसी के साथ वाकयुद्ध में उलझना, जो नतीजों से ज्यादा इस नाटक से लाभ उठाता है, भारत के लिए लाभदायक नहीं है। अतः भारत की राजनीति को शोरगुल से ऊपर उठना चाहिए।

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