आओ कदम बढ़ाएँ….पाठशाला, जीवन के सुनहरे भविष्य का प्रवेश द्वार
गर्मी की लंबी छुट्टियों के पश्चात विद्यालय फिर से गुलजार होने लगे हैं। नन्हें-मुन्हें बच्चों की हँस्ती-मुस्काती टोलियाँ, नन्हीं कलियॉं, बचपन की मस्तियॉं, गांवों-कस्बों-शहरों की गलियॉं, सखी-सहेलियाँ, हंसी-ठिठोलियॉं, इस दौर की रंगीनियॉं फिर से मन के पंखों में उड़ान भरने को लालायित हैं।
विद्यालय के दिन जीवन के सबसे सुहावने दिनों में से एक होते हैं जहॉं घर-परिवार की चारदीवारी से बाहर बच्चों की सामाजिक दुनिया से जुड़ने की शुरूआत होती है। इस दौर में निश्चिंतता, बेफिक्री, कौतूहल, उल्लास, उमंग सबका एक साथ समागम होता है। यह लंबे जीवन संघर्ष के लिए आधार तैयार होने का समय होता है।
रोटी, कपड़ा और मकान मानव जीवन विकास के सबसे मूल तत्व हैं। इन सभी जरूरी तत्वों के साथ-साथ शिक्षा व चिकित्सा भी जीवन के लिए बेहद जरूरी है। इनमें से यदि शिक्षा को छोड़ दें तो जीवन उस बगैर चाबी वाले खिलौने की तरह हो जाएगी जो उचित दिशा में सही तरीके से आगे न बढ़ पाए बल्कि हमेशा ठोकरें खाता रहे। खिलौने में भरे गए चाबी की तरह शिक्षा उचित दिशा में सही तरीके से जीवन रूपी गाड़ी को गतिमान रखता है। किसी शिक्षाविद् ने कहा है कि “शिक्षा जिंदगी की तैयारी है।” और औपचारिक शिक्षा की शुरूआत विद्यालय से ही होती है इसलिए विद्यालय की ओर बढ़ाया गया कदम जिंदगी का आधार तैयार करता है। पाठशाला का द्वार जीवन के सुनहरे भविष्य गढ़़ने का प्रवेश द्वार होता है।
मानव संसाधन किसी भी देश की सबसे बड़ी पूँजी होती है और बच्चे उस राष्ट्र के भविष्य। देश का भविष्य आने वाली पीढ़ियों पर ही निर्भर करता है। आने वाली पीढ़ी के लिए साफ हवा, पानी, मिट्टी, रोटी, कपड़ा और मकान के साथ-साथ अच्छी शिक्षा भी अनिवार्य है। यदि पीढ़ियॉं सही शिक्षा से वंचित रह जाएँ तो आने वाला भविष्य निश्चित ही अँधकारमय हो जाता है इसलिए प्रयास किया जाना चाहिए कि बच्चों को सुलभता के साथ अच्छी शिक्षा मिले।
शिक्षा से बच्चों के व्यक्तित्व में निखार आता है वे समाज के लिए बहुपयोगी बनते हैं। उनके सोच-विचार में व्यापकता आती है, व्यापक सोच से ही मानवीय संवेदनाओं में विस्तार होता है और वे मानवता की ओर कदम बढ़ाते हैं। शिक्षा प्राप्ति से विभिन्न मानवीय गुणों में विकास के साथ-साथ विनयशीलता बढ़ती है। वह तर्क व चेतना के माध्यम से अंतर्मन के कपाट खोलता है इसलिए शिक्षा अनवरत चलती रहे यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
शिक्षा प्राप्ति के लिए भी तमाम चुनौतियों से गुजरना होता है। इन सब चुनौतियों के बीच इसे अनवरत जारी रख पाना भी बेहद मुश्किल होता है। इसके लिए स्कूल, शिक्षक, पालक, परिवार, शासन और समुदाय सब की सामुहिक जिम्मेवारी बनती है कि बच्चों को शिक्षा प्राप्ति के मार्ग में कोई बाधा ना आए। इस बात पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए कि शिक्षा प्राप्ति में विद्यालय और शिक्षक के समान पालक व परिवार की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
बच्चों की शिक्षा को सामूहिक जिम्मेदारी मानकर चलना चाहिए। स्कूल के बाद पालकों की बहुत बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि वे इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे किसी भी तरह किताबों से दूर न रह पाएँ। यदि बच्चों को किताबों से जोड़कर न रख पाएँगे तो धीरे-धीरे उनकी आदतें बिगड़ती जाएँगी और वे पुस्तकों से विमुख होते जाएँगे जो अंतत: आगे चलकर बेहद नुकसानदेह होगा। बच्चे टीवी, मोबाइल, खेलकूद में ही मस्त ना रहें बल्कि इन सब के बीच आपस में तालमेल बनाते हुए चलें, इन सब बातों का ध्यान रखा जाना भी पालकों के लिए बेहद जरूरी है।
परिवार बच्चों की प्रथम पाठशाला है जहॉं वे सबसे अधिक समय तक अभिभावकों के संरक्षण में रहते हैं। शिक्षक के साथ-साथ अभिभावक भी उनके प्रमुख मार्गदर्शक होते हैं अत: अभिभावकों की जिम्मेदारी भी एक शिक्षक से कम नहीं। हमारा उद्देश्य बच्चों के सीखने की प्रक्रिया में सहयोग करना है और यह सहयोग शिक्षक, पालक या समाज कहीं से भी मिले, तत्पर रहनी चाहिए।
शिक्षा प्राप्ति जीवन का प्रमुख उद्देश्य है। यह उद्देश्य किसी भी परिस्थिति में ना छूटे यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। शिक्षा की ज्योत सदैव-सदैव प्रज्जवलित होती रहे आइए इसके लिए विद्यालय की ओर कदम बढ़ाएँ….
राकेश नारायण बंजारे
खरसिया.