गोंचा पर्व की शुरुआत चन्दन जात्रा से ।
आज से भगवान जगन्नाथ का अनसर काल शुरु –
आज इंद्रावती नदी के जल से भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और स्वामी बलभद्र का अभिषेक कर चंदन जात्रा की रस्म पूरी की गई।
इसके साथ ही आज से गोंचा महापर्व की शुरुआत हुई।
इसके साथ ही 17 जुलाई तक मनाए जाने वाले गोंचा महापर्व का आगाज हुआ। चंदन जात्रा पूजा विधान पूरे विधि-विधान के साथ श्रीजगन्नाथ मंदिर में संपन्न किया गया। विगत 600 सालों से भी अधिक समय से मनाए जा रहे इस महापर्व की रस्मों के साक्षी बनने काफी संख्या में लोग मंदिर परिसर में मौजूद रहे और पूजा विधि के साथ प्रभु के दर्शन लाभ प्राप्त किये ।
दोपहर बाद पूजा विधि की शुरुआत स्थानीय जगन्नाथ मंदिर परिसर में हुई। भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के विग्रहों को चंदन और पवित्र जल से स्नान करवाया गया। भगवान सालीग्राम की विधि-विधान से पूजा संपन्न हुई। इसके पश्चात भगवान के विग्रहों को पवित्र मंडप में स्थापित किया गया। आज से भगवान अनसर काल में चले जाएंगे। इस दौरान वे आमजनों को दर्शन नहीं देंगे । क्योंकि इस बीच वे अस्वस्थ रहेंगे औए उनका इलाज चलता रहेगा ।
महेंद्रनाथ जोशी, सदस्य, गोंचा समिति
गोंचा महापर्व समिति और 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के लोगों की आस्था के इस पर्व के कई रंग हैं। कहा जाता है कि बस्तर के महाराजा पुरुषोत्तम देव ने 1400 ईस्वी में जगन्नाथपुरी से तीनों भगवान की मूर्तियां लाकर यहां स्थापित की थी। तब से यह परंपरा चली आ रही है।
गोंचा पर्व का प्रमुख आकर्षण रथ परिक्रमा और तुपकी चालन है।
बांस की पोली नली में मालकांगिनी का बीज जिसे यहां तुपकी कहा जाता है भरकर उसे यश किया जाता है जिससे बीज निकलने के दौरान फट्ट की आवाज आती है ।तुपकी चालन की प्रथा बस्तर के अलावा और कहीं नहीं होती । इसलिए यहां के गोंचा या गुंडिचा पर्व का अलग ही रंग है जिसे देखने न केवल पूरे संभाग से बल्कि देश- प्रदेश और वदेशों से भी लोग आते हैं।
तुपकी का वास्तविक शब्द तुपक है जिसका अर्थ बन्दूक होता है ।
इस तरह भक्त अपने इष्ट को इस बन्दूक के जरिये सलामी देकर उनका स्वागत करते हैं ।