विकासात्मक विकलांगताओं वाले बच्चों के माता-पिता के लिए सहयोग प्रणाली पर एनआईटी राउरकेला का शोध

राउरकेला – राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) राउरकेला के मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रामकृष्ण बिस्वाल और उनके वरिष्ठ शोधार्थी श्री अभिजीत पाठक ने विकासात्मक विकलांगताओं वाले बच्चों की परवरिश का उनके माता-पिता पर पड़ने वाले प्रभाव की समीक्षा की है।
यह शोध जो एशिया पैसिफिक जर्नल ऑफ सोशल वर्क एंड डेवलपमेंट में प्रकाशित हुआ है, इस बात की जांच करता है कि ऐसे बच्चों की निरंतर देखभाल करते रहने का उनके माता-पिता के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है और अंततः यह उनके जीवन की समग्र गुणवत्ता पर कैसे असर डालता हैं।
परिणामस्वरूप माता-पिता, खास कर माताएं भावनात्मक तौर पर अंदर से थक जाती हैं। उन्हें सिरदर्द, अल्सर, क्रॉनिक दर्द और थकान जैसी अन्य समस्याएं रहती हैं क्यांेंकि अक्सर माताएं ही देखभाल की बड़ी ज़िम्मेदारियां संभालती हैं। इन समस्याओं की वजह से वे देखभाल करने की क्षमता खोने लगती हैं।
विकासात्मक विकलांगताओं वाले बच्चों का पालन-पोषण करना एक विशेष और अक्सर जीवनभर चलने वाली चुनौती होती है। बुनियादी आत्म-देखभाल सिखाने से लेकर व्यवहारिक और संवेदनशील समस्याओं को संभालने तक, माता-पिता ऐसी परिस्थितियों का सामना करते हैं जिनका अनुभव अन्य लोग शायद कभी न करें। इसका परिणाम गहरी भावनात्मक थकावट और सिरदर्द, अल्सर, लगातार दर्द और थकान जैसे शारीरिक लक्षणों के रूप में होता है। यह विशेष रूप से माताओं में अधिक देखा जाता है, जो अक्सर देखभाल की ज़िम्मेदारियों का बड़ा हिस्सा निभाती हैं। समय के साथ, यह शारीरिक समस्याएं उनकी सामना करने की क्षमता को और भी कम कर देती हैं।
इन अनुभवों को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने ऐसे 400 माता-पिता का सर्वेक्षण किया जिनके बच्चे ऑटिज़्म, अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी), सेरेब्रल पाल्सी और बहु-विकलांगता जैसी समस्याओं से ग्रस्त थे। इसके लिए एनआईटी राउरकेला की रिसर्च टीम ने सांस्कृतिक रूप से अनुकूल उपकरणों और अत्याधुनिक सांख्यिकीय तकनीकों का उपयोग करके यह पता लगाया कि माता-पिता के शरीर, मनोदशा और रिश्तों पर इस तनाव से होने वाले प्रभाव में उनके शारीरिक स्वास्थ्य की महत्वपूर्ण भूमिका है।
शोध के प्रमुख निष्कर्षों के बारे में बताते हुए डॉ. रामकृष्ण बिस्वाल ने कहा, ‘‘विकलांगों के अधिकारों को को सही रूप से मान्यता दी गई है, लेकिन ऐसे लोगों की देखभाल करने वालों के अमूल्य योगदान की अक्सर अनदेखी हो जाती है। शारीरिक-मानसिक विकास में अक्षम बच्चों के माता-पिता पर उनकी देखभाल का सारा भार पड़ना उचित नहीं है।
यह परिवार के अन्य लोगों, पड़ोसियों और पूरे समाज की साझा ज़िम्मेदारी है। ऐसे बच्चों की देखभाल में हमेशा एक चुनौती बनी रहती है। लेकिन इस कठिन सफर में यदि भरोसे के लोगों और समुदायों का किसी पूर्वाग्रह के बिना समर्थन मिले तो देखभाल करने वालों को शक्ति, राहत और उनके अथक प्रयास को मान्यता मिल सकती है। आइए हम उनके अधिकारों को मान्यता दें और यह सुनिश्चित करें कि उन्हें भी एक सम्मानजनक और संतोषप्रद जीवन का अनुभव मिले।“’
भारत में यह चुनौतियां अधिक गंभीर हैं जिसके, समाज में हेय दृष्टि से देखा जाना, विशेष देखभाल के बारे में जानकारी की कमी और इस सुविधा का सीमित होना, जैसे कई कारण हैं। ऐसे में बहुत-से माता-पिता अपने समुदायों से अलग-थलग महसूस करते हैं और उन्हें विस्तृत परिवार से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलता है। आज बहुत-से क्षेत्रों में संबंधित स्वास्थ्य सेवा, चिकित्सा और राहत सेवाएं सीमित हैं।
अध्ययन में यह देखा गया कि शारीरिक स्वास्थ्य आंशिक रूप से ही यह बताता है कि देखभाल के तनाव से माता-पिता का स्वास्थ्य कैसे प्रभावित होता है, लेकिन इसमें आर्थिक तनाव जैसी चुनौतियों को शामिल नहीं किया गया है।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बायोसाइकोसोशल मॉडल का उपयोग किया, जो यह मानता है कि स्वास्थ्य में शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक शक्तियों के बीच जटिल परस्पर प्रक्रिया की साझेदारी है। यह मॉडल शोधकर्ताओं को तनाव के परस्पर संबधित प्रभावों को समझने और यह जानने में सक्षम बनाता है कि किस तरह तनाव के कारण और इसके प्रभाव बढ़ाने वाले कारक दोनों के अनुसार शारीरिक स्वास्थ्य प्रक्रियाएं प्रभावित होती हैं।
शोधकर्ता यह सुझाव देते हैं कि विकासात्मक विकलांगताओं वाले बच्चों की देखभाल करने वाले माता पिता की स्वास्थ्य जांच और तनाव प्रबंधन भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। शोधकर्ता यह भी सुझाव देते हैं कि समुदाय-आधारित ‘वन-स्टॉप’ सहायता केंद्र बनाए जाने चाहिए जहाँ प्रभावित परिवारों को एक जगह चिकित्सा, मानसिक स्वास्थ्य सेवा और वित्तीय सहायता मिल सके।
इस अध्ययन का सार यह स्मरण दिलाना है कि शारीरिक-मानसिक विकास में असमर्थ बच्चों को समर्थन देने का अर्थ पूरे परिवार को सहायता देना है। यदि देखभाल करने वाले खुद परेशान, समाज से अलग-थलग और शारीरिक रूप से अस्वस्थ होंगे तो बच्चों की देखभाल प्रभावित होगी। हालांकि ऐसे परिवार सशक्त और खुशहाल हो सकते हैं, यदि उन्हें किफायती स्वास्थ्य सेवा, समुदाय में समावेश की भावना और लक्ष्य बना कर मानसिक स्वास्थ्य सेवा सहित उचित सहायता व्यवस्था मिले।
Research paper link: https://www.tandfonline.com/doi/abs/10.1080/29949769.2025.2521058
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