जिले में लकड़ी तस्करों का साम्राज्य! प्रशासन मौन, विभागों की मिली-भगत से हरियाली पर संकट

भाजपा नेताओं ने खोला राज — बिना दस्तावेज के चल रहा लाखों का अवैध कारोबार, अधिकारी एक-दूसरे पर डाल रहे जिम्मेदारी?
सूरजपुर। कौशलेन्द्र यादव। जिले में नीलगिरी और अन्य कीमती प्रजातियों के पेड़ों की अवैध कटाई और तस्करी पिछले दो साल से लगातार जारी है। हरियाली बचाने की तमाम बातें करने वाला प्रशासन इस समय लकड़ी माफियाओं के सामने नतमस्तक नजर आ रहा है। माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे खुलेआम जंगलों से पेड़ों को काटकर ट्रैक्टर और ट्रक के जरिये बाहर भेज रहे हैं, जबकि जिम्मेदार अधिकारी कार्रवाई करने के बजाय एक-दूसरे पर जिम्मेदारी टालते नजर आ रहे हैं। जिला मुख्यालय सहित जिले के कई इलाकों में नीलगिरी, सागौन, आम, सिमर और अन्य प्रजातियों के पेड़ों की कटाई कर बड़े पैमाने पर लकड़ी का भंडारण किया गया है। ग्रामीणों ने बताया कि यह धंधा उत्तर प्रदेश से जुड़े माफियाओं के संरक्षण में चल रहा है, जो यहां से लकड़ियों की खेप बाहर भेजते हैं। कई बार स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया, तो उन्हें धमकियां दी गईं।

भाजपा नेता पहुंचे मौके पर, उजागर किया गोरखधंधा
सोमवार को भाजपा नेता बबलू गुप्ता को जब अवैध लकड़ी भंडारण की सूचना मिली, तो वे मौके पर पहुंचे और पूरे प्रकरण को उजागर किया।उन्होंने तत्काल जिला प्रशासन और संबंधित विभागों के अधिकारियों को सूचना दी। कुछ देर बाद नायब तहसीलदार और वन परिक्षेत्र अधिकारी मौके पर पहुंचे।
वहां उन्होंने बिना नंबर वाले ट्रैक्टर, ट्रक और बड़ी मात्रा में एकत्रित लकड़ियों को देखा।
हैरानी की बात यह रही कि इतनी बड़ी मात्रा में अवैध लकड़ी मिलने के बावजूद दोनों अधिकारी कुछ मिनट की जांच के बाद बिना किसी ठोस कार्रवाई के लौट गए।

जिम्मेदारी टालने में जुटे अधिकारी — “हम नहीं, वे करेंगे कार्रवाई”
जब अधिकारियों से सवाल किया गया कि कार्रवाई क्यों नहीं की गई, तो वन विभाग ने कहा कि यह मामला राजस्व विभाग के अधिकार क्षेत्र का है, जबकि राजस्व विभाग ने जवाब दिया कि कार्रवाई वन विभाग करेगा।इस तरह दोनों विभागों ने जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डाल दी, जबकि मौके पर लकड़ियों के किसी भी प्रकार के दस्तावेज मौजूद नहीं थे।

स्थानीय लोगों ने उठाए सवाल
स्थानीय ग्रामीणों ने पूछा —
“जब दस्तावेज नहीं मिले, वाहन बिना नंबर के हैं, और लकड़ी खुलेआम जमा है, तो कार्रवाई से पीछे क्यों हटे अधिकारी? आखिर प्रशासन बचा किसे रहा है?”

राजस्व विभाग की मनमानी और दोहरा रवैया
जिले में राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर पहले से ही सवाल उठते रहे हैं।
शराब पीकर वाहन चलाने वालों पर जहां ₹10,000 से अधिक का जुर्माना लगाया जाता है, वहीं अवैध बालू परिवहन में पकड़े गए ट्रैक्टरों पर भी ₹10,000 से अधिक का जुर्माना कर उन्हें 10–15 दिनों तक खड़ा रखा जाता है। लेकिन लकड़ी माफियाओं पर सिर्फ ₹500 से ₹2000 तक का मामूली चालान काटकर उन्हें छोड़ दिया जाता है।
यह दोहरा रवैया अब जनता के बीच बड़ी चर्चा का विषय बन गया है।
लोग पूछ रहे हैं —“क्या कानून सिर्फ आम जनता के लिए है और माफियाओं के लिए छूट?”
भाजपा नेताओं ने लगाया मिली-भगत का आरोप, की शासन स्तर पर कार्रवाई की मांग
भाजपा नेता बबलू गुप्ता ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा “अवैध लकड़ी तस्करी शासन और प्रशासन की मिली-भगत से चल रही है। अगर अधिकारियों का संरक्षण नहीं होता, तो इतने बड़े स्तर पर बिना दस्तावेज लकड़ी भंडारण और परिवहन संभव ही नहीं है।” उन्होंने आगे कहा कि “अगर जिले के अधिकारी इस पर शीघ्र ठोस कार्रवाई नहीं करते, तो भाजपा इस मुद्दे को शासन स्तर तक उठाएगी और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग करेगी।”
जनता पूछ रही — आखिर कार्रवाई करेगा कौन?
वर्तमान हालात में जनता के मन में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर इस अवैध कारोबार पर कार्रवाई करेगा कौन? वन विभाग और राजस्व विभाग की आपसी “पिंग-पोंग” ने स्थिति को और संदेहास्पद बना दिया है। जिले के कई समाजसेवी संगठनों ने प्रशासन से मांग की है कि दोनों विभागों की संयुक्त टीम बनाकर तत्काल जांच और बड़ी कार्रवाई की जाए, अन्यथा आने वाले दिनों में यह मामला जन-आंदोलन का रूप ले सकता है।





