एफ आर एशाखा में पदस्थ कर्मचारी एसडीएम कार्यालय में कर रहे बाबूगिरी — क्या आदिवासी अधिकारों के प्रति हो रही है अनदेखी

मनीष सिंह धुर्वे ने सवाल उठाया था लेकिन अधिकारीयों के कान में जूं नहीं रेंगी |
गौरेला – पेंड्रा-मरवाही जिले में वन अधिकार अधिनियम 2006 (एफ आर ए) के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु एफ आर ए सेल की गंभीर उपेक्षा सामने आई है।एफ आर ए सेल में पदस्थ कर्मचारी केदार श्यामले द्वारा अपना मूल कार्य छोड़कर लगातार एसडीएम कार्यालय में लिपिकीय कार्य (बाबूगिरी) किया जा रहा है। यह न केवल एफ आर एकानून की आत्मा के साथ अन्याय है, बल्कि आदिवासी समुदाय के अधिकारों को लेकर शासन की मंशा पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है।
पांचवीं अनुसूची आदिवासी बहुल इस जिले में सामुदायिक वनाधिकार (सीएफ आर) व्यक्तिगत वन अधिकार (आइएफ आर) जैसे अहम प्रावधानों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी एफ आर ए सेल के कर्मचारियों पर है, लेकिन जिन कर्मचारियों को इस उद्देश्य से नियुक्त किया गया है, वे ही अपने दायित्वों से मुंह मोड़ते नजर आ रहे हैं। ऐसे में यह आशंका स्वाभाविक है कि अधिकारियों का मौन समर्थन भी इस लापरवाही में शामिल है।
मुख्य सवाल:
क्या एफ आर ए सेल के कर्मचारी अपने मूल कार्य को छोड़कर अन्य कार्यालयों में तैनात रह सकते हैं?
क्या जिला प्रशासन इस बाबत कोई जवाबदेही तय करेगा?
क्या आदिवासी समाज और अन्य पारम्परिक वन निवासियों के अधिकारों को लेकर यह प्रशासनिक उपेक्षा नहीं है?
क्याएफ आर ए सेल के कर्मचारियों के प्रगति रिपोर्ट जांची जाती है ?
वन अधिकार कानून जैसे ऐतिहासिक कानून का मजाक बनाकर रख दिया गया है, जो आदिवासी समाज और अन्य पारम्परिक वन निवासियों को उनके पारंपरिक जंगलों, जमीन और संसाधनों पर अधिकार दिलाने का माध्यम है। यह घटना न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि आदिवासियों के अधिकारों के प्रति एक असंवेदनशील रवैये को भी सामने लाती है।
मनीष सिंह धुर्वे
जिला अध्यक्ष सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग
मो.: 8109834011
ईमेल: dhurvemanishsingh@gmail.com