P.D.S घोटाले का ‘चना-चोर’ खेल ग्रामीणों का गुस्सा फूटा, खाद्य इंस्पेक्टर की ‘चुप्पी’ पर सवाल

रायगढ़@दीपक शोभवानी : रायगढ़ जिले के खरसिया विकासखंड की ग्राम पंचायत फरकानारा में एक ऐसा घोटाला उजागर हुआ है, जो न सिर्फ गरीबों के हक पर डाका डाल रहा है, बल्कि पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर रहा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी PDS दुकान में लाखों रुपये की हेराफेरी का सनसनीखेज मामला सामने आया है। ग्रामीणों ने PDS संचालक पर ‘चना-चोर’ का ठप्पा लगाते हुए गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि महीनों से चना के नाम पर सिर्फ आंखों में धूल झोंकी जा रही है, जबकि सरकारी कागजों में चना बंट चुका है। यह ‘कागजी चना’ का खेल आखिर कब तक चलेगा?
ग्रामीणों की आवाज में गुस्सा और बेबसी साफ झलक रही है। एक ग्रामीण, रामाधीन निषाद, ने तल्ख लहजे में कहा, “हम भूखे मर रहे हैं, और ये लोग हमारा राशन लूट रहे हैं। चना के नाम पर बस टरकाया जा रहा है। इस संचालक का लाइसेंस कैंसिल करो, नहीं तो हम सड़क पर उतरेंगे!” दूसरी ओर, PDS संचालक का दावा है कि उसने चना बांटा है, लेकिन जब ग्रामीणों ने पूछा कि चना गया कहां, तो जवाब में सिर्फ बहाने और धमकियां मिलीं।
मामला तब और तूल पकड़ गया जब मीडियाकर्मी सच्चाई जानने फरकानारा पहुंचे। PDS संचालक ने न सिर्फ सवालों से मुंह मोड़ा, बल्कि उल्टा मीडियाकर्मियों को धमकाते हुए कहा, “खबर को यहीं दबा दो, वरना मैं तुम्हारी तस्वीर खींचकर खाद्य इंस्पेक्टर को भेज दूंगा।” यह धमकी सुनकर हर कोई हैरान रह गया। आखिर खाद्य इंस्पेक्टर का नाम क्यों? क्या यह सिर्फ एक हड़काने की चाल थी, या इसके पीछे कोई बड़ा ‘खेल’ चल रहा है? ग्रामीणों का तो साफ कहना है कि इस घोटाले की जड़ें गहरी हैं और इसमें ऊपरी स्तर के लोग भी शामिल हो सकते हैं।
स्थानीय सरपंच ने भी इस मामले में आग में घी डालने वाला बयान दिया। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक दुकान का मसला नहीं, बल्कि हमारी सरकार की साख पर हमला है। PDS में भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। खाद्य इंस्पेक्टर बार-बार आते हैं, लेकिन उनकी आंखों पर पट्टी बंधी रहती है। न घोटाला दिखता है, न भ्रष्टाचार। आखिर इतनी मेहरबानी क्यों?” सरपंच ने यह भी खुलासा किया कि फरकानारा ही नहीं, बल्कि आसपास की कई ग्राम पंचायतों में यही हाल है। खाद्य इंस्पेक्टर की जांच हमेशा ‘खाली हाथ’ क्यों रहती है? क्या यह महज संयोग है, या इसके पीछे कोई ‘सेटिंग’ है?
ग्रामीणों का गुस्सा अब सातवें आसमान पर है। एक बुजुर्ग ग्रामीणी, बसंती निषाद, ने कहा, “हमारा राशन हमारा हक है। इसे लूटने वाले चोर हैं। हम चुप नहीं बैठेंगे।” ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से इस घोटाले की जांच की मांग की है। उनका कहना है कि जब तक दोषियों को सजा नहीं मिलती, वे चैन से नहीं बैठेंगे।
यह घोटाला सिर्फ चने की चोरी का मसला नहीं, बल्कि गरीबों के विश्वास के साथ खिलवाड़ है। सवाल यह है कि आखिर यह ‘कागजी राशन’ का खेल कब तक चलेगा? खाद्य इंस्पेक्टर की चुप्पी और निष्क्रियता के पीछे क्या राज है? क्या यह भ्रष्टाचार का एक बड़ा नेटवर्क है, जो ग्रामीणों के पेट पर लात मार रहा है? लेकिन ग्रामीणों का सब्र अब जवाब दे रहा है। अगर जल्द ही कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मामला सड़कों पर उतर सकता है।
क्या फरकानारा के ग्रामीणों को उनका हक मिलेगा, या यह घोटाला भी कागजों में दबकर रह जाएगा? यह सवाल हर किसी के मन में गूंज रहा है। फिलहाल, सबकी नजर प्रशासन के अगले कदम पर टिकी है।