छत्तीसगढ़रायगढ़

“बीपीएससी छात्रों के संघर्ष में रोजगार अधिकार अभियान की बुलंद आवाज़” प्रेस नोट जारी

बीपीएससी छात्रों के आंदोलन के समर्थन में रोजगार अधिकार अभियान की गई टीम ओर से जारी प्रेस नोट:

* दमन के बजाय वार्ता कर छात्रों के सवालों को हल करे बिहार सरकार
* पुनर्परीक्षा आयोजन की छात्रों की मांग के विरुद्ध बीपीएससी व सरकार का पक्ष तर्कसंगत नहीं
* गर्दनी बाग धरना स्थल में रोजगार अधिकार अभियान टीम ने छात्रों से मुलाकात की

पटना। रोजगार अधिकार अभियान टीम ने करीब एक पखवाड़े से गर्दनी बाग धरना स्थल में जारी आंदोलन में बीपीएससी छात्रों से मुलाकात कर समर्थन किया। छात्रों से मुलाकात में पटना दौरे पर आए रोजगार अधिकार अभियान के कोआर्डिनेटर राजेश सचान के साथ पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता अशोक कुमार व एडवोकेट मणि लाल आदि शामिल रहे।

रोजगार अधिकार अभियान की ओर से जारी बयान में कहा गया कि पुनर्परीक्षा आयोजन की छात्रों की मांग के विरुद्ध बीपीएससी व सरकार का पक्ष तर्कसंगत नहीं है। भीषण सर्दी और बेहद विपरीत परिस्थितियों में छात्र धरने पर बैठे हुए हैं और उनकी वाजिब मांगों को सुना नहीं जा रहा है। लाठीचार्ज और भीषण ठंड में वाटर कैनन से हमला जैसी कार्रवाई छात्रों पर की गई जो निहायत गलत है। बिहार सरकार से मांग की है कि छात्रों के दमन के बजाय वार्ता कर उनके सवालों को तत्काल हल करे।

बयान में आगे कहा गया कि बीपीएससी सचिव के द्वारा दिए गए बयान के मुताबिक पटना के बापू भवन परीक्षा केंद्र की पुनर्परीक्षा में स्केलिंग लागू करने का बात की गई है जोकि नॉर्मलाइजेशन की ही एक प्रक्रिया है। दरअसल पूरा विवाद ही नॉर्मलाइजेशन को लेकर है जिसे लागू करने का युवाओं द्वारा शुरू से ही विरोध किया जा रहा है।

नार्मालाईजेशन को तभी लागू करने की आवश्यकता पड़ती है जब किसी परीक्षा को कई शिफ्टों में कराया जाता है जिससे हर शिफ्ट के पेपर का स्तर भी भिन्न होगा। हर शिफ्ट के छात्रों के प्राप्त अंकों के औसत आदि के आधार पर उन्हें प्राप्त वास्तविक अंकों में बदलाव किया जाता है। इस नार्मालाईजेशन के लिए जो सांख्यिकी पद्धति अपनाई जाती है उसके लिए तय फार्मूला का बीपीएससी द्वारा सार्वजनिक करने से इंकार करना ही गहरा संदेह पैदा करता है। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग और रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड की परीक्षाओं में नार्मालाईजेशन में अनियमितता के तमाम गंभीर आरोप पूर्व में लगे हैं।

लेकिन इस नार्मालाईजेशन विवाद से पैदा हो रहे गहरे संदेह को दूर करने और पूरी परीक्षा को पारदर्शी बनाने के सवाल पर बीपीएससी व सरकार मौन है। कुछ परीक्षा केंद्र में आधा एक घंटा पेपर देरी से पहुंचता है, कम संख्या में पेपर पहुंचता है। यहां तक कि कुछ परीक्षा केंद्र में पेपर बाहर से मंगवाया गया तो बंडल खुला हुआ मिलता है। लेकिन ऐसी घोर लापरवाही किस स्तर पर हुई और ऐसे गंभीर मामलों में किसी की जवाबदेही तय कर उसे सजा दी गई।

इसका जवाब बीपीएससी व बिहार सरकार के पास नहीं है। दरअसल बिहार हो या उत्तर प्रदेश अथवा केंद्र व अन्य राज्यों में जो चयन प्रक्रिया संबंधी विवादों की बाढ़ आ गई है, वह सुनियोजित कोशिश दिखती है और असली मकसद है कि भर्तियों को जानबूझकर कर उलझाए रखना और सरकारी विभागों में भारी संख्या में रिक्त पदों पर आऊटसोर्सिंग व संविदा के तहत बेहद कम वेतनमान पर काम कराना। बिहार में ही करीब पांच लाख पद सरकारी विभागों में रिक्त पड़े हुए हैं। वहीं देश भर में रिक्त पदों की संख्या अनुमानतः एक करोड़ है। रिक्त पदों को भरने व बेरोज़गारी की समस्या को हल किया जा सकता है बशर्ते उचित अर्थनीति बने। युवाओं से भी अपील की कि चयन प्रक्रिया संबंधी विवादों को समग्रता में देखना चाहिए।

रोजगार अधिकार अभियान की ओर से बीपीएससी छात्रों के आंदोलन के समर्थन में अपील भी जारी की गई है। जिसका बड़े पैमाने पर धरनारत छात्रों, सिविल कोर्ट, नागरिक समाज व अन्य स्थानों में वितरण किया गया।

रोजगार अधिकार अभियान की ओर से

एडवोकेट अशोक कुमार

Advertisement
Advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button